हुर्रियत की मूल बात तो ठीक है कि जो पंडित सदियों से सबके साथ रहे थे, अब उनकी अलग बस्तियाँ बसाने की क्या जरूरत है? यदि उन्हें अलग बस्तियों में बसाया जाएगा तो उनके और आम कश्मीर के बीच अविश्वास कि खाई हमेशा खिंची रहेगी। इस तर्क में काफी दम है लेकिन किसी भी हुर्रियत नेता ने यह क्यों नहीं कहा कि हिन्दू पंडित लोग और कश्मीरी मुसलमान भाई-भाई हैं। वे सदियों से साथ-साथ रहते आये हैं और अब भी रहेंगे। हुर्रियत का यह कहना है तो हास्यास्पद है कि पंडितों की बस्तियाँ तो यहूदी-बस्तियों कि तरह हो जाएँगी। फलस्तीन में यहूदी तो ताकतवर और हमलावर हैं जब कि कश्मीर में पंडित लोग कमज़ोर और सताए हुए लोग हैं।
मुफ़्ती ने यह योजना इसलिए बनाई है कि डरे हुए पंडित लोगों की घर वापसी आराम से हो सके लेकिन पंडितों की कश्मीर संघर्ष समिति ने इस योजना को रद्द किया है। उसका कहना है कि किसी पंडित को अपना घर कहाँ बनाना है, यह वह खुद तय करे। दूसरे शब्दों में हुर्रियत नेताओं का यह आरोप बेबुनियाद मालूम पड़ता है कि मुफ़्ती संघ के इशारों पर नाच रहे हैं। इसलिए हुर्रियत का यह ऐलान कि वह कश्मीर बंद करेगी, अनावश्यक मालूम पड़ता है। कश्मीर को बंद किये बिना भी मुफ़्ती के गले सही बात उतारी जा सकती थी। हुर्रियत से यही आशा की जाती है कि वह जरा गंभीरता से पेश आए और मुठभेड़ की बजाय बातचीत का रास्ता अपनाए।