उगता भारत ब्यूरो
आज बन्दा बैरागी का बलिदान दिवस है। कितने हिन्दू युवाओं ने उनके अमर बलिदान की गाथा सुनी है? बहुत कम। क्योंकि वामपंथियों द्वारा लिखे गए पाठ्यक्रम में कहीं भी बंदा बैरागी का भूल से भी नाम लेना उनके लिए अपराध के समान है। फिर क्या वीर बन्दा वैरागी का बलिदान व्यर्थ जाएगा ?क्या हिन्दू समय रहते जाग पाएगा ?क्या आर्य हिन्दू जाति अपने पुर्वजों का ऋण उतारने के लिये संकल्पित होगी ?
इस लेख के माध्यम से जाने बंदा बैरागी के अमर बलिदान की गाथा।
बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 को ग्राम तच्छल किला, पुंछ में श्री रामदेव के घर में हुआ। उनका बचपन का नाम लक्ष्मणदास था। युवावस्था में शिकार खेलते समय उन्होंने एक गर्भवती हिरणी पर तीर चला दिया। इससे उसके पेट से एक शिशु निकला और तड़पकर वहीं मर गया। यह देखकर उनका मन खिन्न हो गया। उन्होंने अपना नाम माधोदास रख लिया और घर छोड़कर तीर्थयात्रा पर चल दिये। अनेक साधुओं से योग साधना सीखी और फिर नान्देड़ में कुटिया बनाकर रहने लगे।
इसी दौरान गुरु गोविन्द सिंह जी माधोदास की कुटिया में आये। उनके चारों पुत्र बलिदान हो चुके थे। उन्होंने इस कठिन समय में माधोदास से वैराग्य छोड़कर देश में व्याप्त मुस्लिम आतंक से जूझने को कहा। इस भेंट से माधोदास का जीवन बदल गया। गुरुजी ने उसे बन्दा बहादुर नाम दिया। फिर पाँच तीर, एक निशान साहिब, एक नगाड़ा और एक हुक्मनामा देकर दोनों छोटे पुत्रों को दीवार में चिनवाने वाले सर हिन्द के नवाब से बदला लेने को कहा।
बन्दा हजारों सिख सैनिकों को साथ लेकर पंजाब की ओर चल दिये। उन्होंने सबसे पहले श्री गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने वाले जल्लाद जलालुद्दीन का सिर काटा। फिर सरहिन्द के नवाब वजीरखान का वध किया। जिन हिन्दू राजाओं ने मुगलों का साथ दिया था, बन्दा बहादुर ने उन्हें भी नहीं छोड़ा। इससे चारों ओर उनके नाम की धूम मच गयी।
उनके पराक्रम से भयभीत मुगलों ने दस लाख फौज लेकर उन पर हमला किया और विश्वासघात से 17 दिसम्बर, 1715 को उन्हें पकड़ लिया। उन्हें लोहे के एक पिंजड़े में बन्दकर, हाथी पर लादकर सड़क मार्ग से दिल्ली लाया गया। उनके साथ हजारों सिख भी कैद किये गये थे। इनमें बन्दा के वे 740 साथी भी थे, जो प्रारम्भ से ही उनके साथ थे। युद्ध में वीरगति पाए सिखों के सिर काटकर उन्हें भाले की नोक पर टाँगकर दिल्ली लाया गया। रास्ते भर गर्म चिमटों से बन्दा बैरागी का माँस नोचा जाता रहा।
काजियों ने बन्दा और उनके साथियों को मुसलमान बनने को कहा; पर सब ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। दिल्ली में आज जहाँ हार्डिंग लाइब्रेरी है,वहाँ 7 मार्च, 1716 से प्रतिदिन सौ वीरों की हत्या की जाने लगी। एक दरबारी मुहम्मद अमीन ने पूछा – तुमने ऐसे बुरे काम क्यों किये, जिससे तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है ?
बन्दा ने सीना फुलाकर सगर्व उत्तर दिया – मैं तो प्रजा के पीड़ितों को दण्ड देने के लिए परम पिता परमेश्वर के हाथ का शस्त्र था। क्या तुमने सुना नहीं कि जब संसार में दुष्टों की संख्या बढ़ जाती है, तो वह मेरे जैसे किसी सेवक को धरती पर भेजता है।
बन्दा से पूछा गया कि वे कैसी मौत मरना चाहते हैं ? बन्दा ने उत्तर दिया, मैं अब मौत से नहीं डरता; क्योंकि यह शरीर ही दुःख का मूल है। यह सुनकर सब ओर सन्नाटा छा गया। भयभीत करने के लिए उनके पाँच वर्षीय पुत्र अजय सिंह को उनकी गोद में लेटाकर बन्दा के हाथ में छुरा देकर उसको मारने को कहा गया।
बन्दा ने इससे इनकार कर दिया। इस पर जल्लाद ने उस बच्चे के दो टुकड़े कर उसके दिल का माँस बन्दा के मुंह में ठूँस दिया; पर वे तो इन सबसे ऊपर उठ चुके थे। गरम चिमटों से माँस नोचे जाने के कारण उनके शरीर में केवल हड्डियाँ शेष थी। फिर 9 जून, 1716 को उस वीर को हाथी से कुचलवा दिया गया। इस प्रकार बन्दा वीर बैरागी अपने नाम के तीनों शब्दों को सार्थक कर बलि पथ पर चल दिये।
बंदा बैरागी जैसे महान वीरों ने हमारे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। खेदजनक बात यह है कि उनकी बलिदान से आज की हमारी युवा पीढ़ी अनभिज्ञ है। यह एक सुनियोजित षड़यंत्र है कि जिन जिन महापुरुषों से हम प्रेरणा ले सके उनके नाम तक विस्मृत कर दिए जाये। इस लेख को इतना शेयर कीजिये कि भारत का बच्चा बच्चा बंदा बैरागी के महान बलिदान से प्रेरणा ले सके।
सन 1710 में बंदा बैरागी द्वारा सतयुग शासन की स्थापना करने पर तम्बाकू, शराब,अफीम, मांस, मछली पर प्रतिबन्ध लगाने का हुकुमनामा जारी किया गया।
यह स्पष्ट रूप से वेदों के आदेश का पालन था। वेद कहते है समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाना राजा का कर्त्तव्य है।
बंदा बहादुर का हुकुमनामा हिंदी और पंजाबी में पढ़िए।
ॐ फ़तेह दर्शन
श्री सच साहिब जी का हुकुम है सरबत खालसा
जौनपुर का गुरु राखो गुरु जपना जन्म स्वर्गा
तुसी अकाल पुरख जी का खालसा हो
5 हथियार बाण के हुकुम देखदिया दर्शनी आवो
खालसा ही रेहत रहना
भांग,तम्बाकू, अफ़ीम, पोस्ट, दारू कोई नहीं खाना। मांस, मछली और प्याज नहीं खाना।
आसा सतयुग वार्ताया है।
आप विच प्यार करना मेरा हुकुम है।
जो खालसा दी गत रहेगा
गुरु उसदी भली करेगा
दिनांक-पोष 13, सम्वत 1
ਬਾਬਾ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਦਾ ਹੁਕਮ ਨਾਮਾ :-
ਇੱਕ ਓਂਕਾਰ ਫਤਿਹ ਦਰਸ਼ਨ
ਸਿਰੀ ਸਚੁ ਸਾਹਿਬ ਜੀ ਕਾ ਹੁਕਮ ਹੈ ,
ਸਰਬਤ ਖਾਲਸਾ ਜਉਨ ਪੁਰ ਕਾ ਗੁਰੂ ਰਖੋਗੁਰੂ ਗੁਰੂ ਜਪਣਾ ਜਮਨ ਸਵਾਰੇਗਾ,
ਤੁਸੀ ਸਿਰੀ ਅਕਾਲ ਪੁਰਖ ਜੀ ਕਾ ਖਾਲਸਾ ਹੋ,
ਪੰਜ ਹਥਿਆਰ ਬਨੁ ਕੈ ਹੁਕਮੁ ਦੇਖਦਿਆਂ ਦਰਸ਼ਨੀ ਆਵੌ,
ਖਾਲਸੇ ਦੀ ਹਰਤ ਰਹਿਣਾ, ਭੰਗ, ਤਮਾਕੂ, ਅਫੀਮ, ਦਾਰੂ, ਪੋਸਤ ਨਹੀਂ ਖਾਣਾ, ਮਾਸੁ , ਮੱਛੀ , ਪਿਆਜ ਨਹੀਂ ਖਾਣਾ।
ਚੋਰੀ ਜ਼ਾਰੀ ਨਹੀਂ ਕਰਨੀ ਅਸਾਂ ਸਤਯੁਗ ਵਰਤਾਇਆ ਹੈ,
ਆਪ ਵਿੱਚ ਪਿਆਰ ਕਰਨਾ ਮੈਰਾ ਹੁਕਮ ਹੈ।
ਜੋ ਖਾਲਸੇ ਦੀ ਗਤ ਰਹੇਗਾ ਉਸ਼ਦੀ ਗੁਰੂ ਭਲੀ ਕਰੇਗਾ।।
ਮਿਤੀ ਪੋਹ 13 ਸੰਮਤ ਪਹਿਲਾਂ 1..