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संपादकीय

देश में बना चर्चा और कौतूहल का विषय : कौन बनेगा देश का अगला राष्ट्रपति ?

देश इस समय अपने नए राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया को बड़े गौर से देख रहा है। चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव का पूरा कार्यक्रम घोषित कर दिया है। जिसके अंतर्गत वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के कार्यकाल के पूर्ण होने से पहले सारी प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी । देश के नए राष्ट्रपति के लिए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का नाम सबसे आगे चल रहा है। यद्यपि आरिफ मोहम्मद खान के अतिरिक्त वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू बसपा की मायावती सहित कई अन्य नाम भी दौड़ में बताए जाते हैं। विपक्षी दलों को अभी अपना कोई चेहरा मिला तो नहीं है, परंतु शरद यादव का नाम विपक्षी खेमे की ओर से सबसे आगे है ।वह विपक्ष के संयुक्त प्रत्याशी हो सकते हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई को खत्म हो रहा है। इससे पहले देश का अगला और 15वां राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा। पिछले 45 साल से इसी तारीख को निर्वाचित राष्ट्रपति कार्यभार संभालते रहे हैं। देश के सबसे पहले राष्ट्रपति का संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार चुनाव 13 मई 1952 को हुआ था । जब तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को नई संसद ने संविधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत देश का राष्ट्रपति बनाया था। कुछ समय तक यह चुनाव 13 मई को हर 5 वर्ष में होता रहा ,परंतु राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के अपने कार्यकाल के दौरान मृत्यु हो जाने पर इसमें व्यवधान आ गया । उसके बाद फखरुद्दीन अली अहमद का भी राष्ट्रपति रहते हुए निधन हो गया था। उनके बाद नीलम संजीव रेड्डी को जनता पार्टी सरकार ने देश का राष्ट्रपति बनाया। इतिहास की यह घटना 25 जुलाई 1977 को हुई थी। तब से अब तक यह प्रक्रिया प्रति 5 वर्ष में इसी प्रकार पूर्ण होती आ रही है।
अब पूरे देश के भीतर एक ही कौतूहल और जिज्ञासा का विषय है कि देश का अगला राष्ट्रपति कौन होगा ? यह तो निश्चित है कि वर्तमान में राजग का पलड़ा भारी है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी जिस किसी को चाहेंगे वही देश का अगला राष्ट्रपति होगा। सारा सुविधा संतुलन भाजपा और उसके समर्थक दलों के पक्ष में होने के उपरांत भी इस विषय पर बहुत सोच समझकर ही निर्णय लिया जाएगा। देश की वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत बहुत उम्मीद है कि भाजपा अपने ऊपर से मुस्लिम विरोधी होने का आरोप हटवाने के दृष्टिगत आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर सहमति बनाए परंतु प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली यह बताती है कि जहां पर लोग सोच रहे होते हैं वह उससे हटकर चौंकाने वाला निर्णय ले लेते हैं। इसके उपरांत भी आरिफ मोहम्मद खान जैसे राष्ट्रवादी और स्पष्ट वादी राजनीतिज्ञ को यदि यह अवसर मिलता है तो इसे भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा ही माना जाएगा। यद्यपि इसके लिए वर्तमान उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू का नाम भी बहुत प्रमुखता से लिया जा रहा है।
राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पार्टियों की अपनी तैयारी है, लेकिन यहां बात उस प्रक्रिया की, जिसके बाद देश को अपना प्रथम नागरिक मिलता है।
भारत का कोई भी नागरिक कितनी भी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है। चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 साल की उम्र होना जरूरी है। लोकसभा सदस्य होने की पात्रता और किसी भी लाभ के पद पर न होने के साथ-साथ उम्मीदवार के पास कम से कम 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक विधायक होने चाहिए।
शुरुआत में यह संख्या 2-2 थी यानी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए केवल दो अनुमोदक और दो नॉमिनेट करने वाले विधायकों की जरूरत होती थी, इसलिए उस दौर में यह चुनाव लड़ना बेहद आसान था। करीब 20 साल तक इस नियम का दुरुपयोग भी हुआ।
1974 में संविधान संशोधन करके दो-दो विधायकों की अनिवार्यता को हटाकर यह संख्या 10-10 कर दी गई। फिर 1997 में संशोधन करके इस संख्या को बढ़ाकर 50-50 कर दिया गया यानी अब अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ना चाहता है तो यह जरूरी है कि उसे इस चुनाव में शामिल होने वाले कम से कम 100 विधायक जानते हों।
।देश में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है यानी जनता इसमें वोट नहीं कर सकती है. चुनावी प्रक्रिया में राज्यसभा और विधान परिषद में नामित सदस्य और विधानपार्षद भी शामिल नहीं हो सकते. केवल निर्वाचित राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और विधायक ही वोट दे सकते हैं.। अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री विधान परिषद का सदस्य है तो वह भी राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकता है।
राष्ट्रपति चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत यानी सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली के जरिए मतदान होता है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा का एक सदस्य एक ही वोट कर सकता है।
संविधान के अनुच्छेद के 71 (4) में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राष्ट्रपति पद का चुनाव किसी भी स्थिति में नहीं रुकेगा. अगर किसी राज्य की विधानसभा भंग है या कई राज्यों में विधानसभा सीटें रिक्त हैं तो भी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव तय समय से ही होंगे।
देश के सर्वोच्च नागरिक का चुनाव आम चुनावों की तरह गोपनीय तरीके से होता है. राष्ट्रपति चुनाव में ईवीएम तो नहीं लेकिन बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता है।गोपनीय मतदान का मतलब निर्वाचक अपना वोट किसी को दिखा नहीं सकते। अगर वह ऐसा करते हैं तो उनका वोट रदद हो जाएगा।इसके अलावा अगर किसी राजनीतिक दल को यह पता चल जाए कि उसका कोई सदस्य पार्टी की इच्छा के विरुद्ध वोट कर रहा है तो दल अपने सदस्य के खिलाफ व्हिप जारी नहीं कर सकते।
सामान्य तौर पर जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट पाता है वह अपनी सीट पर विजेता घोषित कर दिया जाता है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में हार या जीत वोटों की संख्या से नहीं बल्कि वोटों की वैल्यू से तय होती है. राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार को सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल मूल्य का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करना होता है।
मौजूदा समय में राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों के वोटों का वेटेज 1098903 है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा के वोट का मूल्य 6,264 है, जो फिलहाल निलंबित है. इसे घटाने के बाद राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए कम से कम 5,46,320 वोट मूल्य की जरूरत होगी।
संविधान के अनुच्छेद 55 में वोटों के मूल्य के बारे में बताया गया है. इनका मूल्य कैसे तय किया जाएगा इसका भी तरीका दिया हुआ है. यूपी में एक विधायक के पास सबसे ज्यादा 208 वोट होते हैं. सभी 403 विधायकों के वोटों की कुल वैल्यू 83824 होती है. इसी तरह सिक्किम के एक विधायक के पास सबसे कम 7 वोट होते हैं. सभी 32 विधायकों के कुल वोटों की वैल्यू 224 होती है. तो सवाल यह है कि इन विधायकों की वैल्यू तय कैसे होती है. आइए जानते हैं-

विधायकों के वोट की वैल्यू: किसी राज्य के विधायक के पास कितने वोट हैं, इसका पता लगाने के लिए उस राज्य की जनसंख्या को राज्य के विधानसभा सदस्यों की संख्या से भाग दे दिया जाता है. इसके बाद जो अंक निकलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है. फिर जो अंक प्राप्त होता है, उसी से राज्य के एक विधायक के वोट का अनुपात निकलता है.
 सांसदों के मतों का मूल्य जानना थोड़ा आसान है। देश के सभी विधायकों के वोटों का जो मूल्य आएगा उसे लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। फिर जो अंक हासिल होता है वही एक सांसद के वोट का मूल्य होता है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0.5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक का इजाफा हो जाता है. यानी एक सांसद के वोट की वैल्यू 708 होती है. यानी कुल 776 सांसदों (543 लोकसभा और 233 राज्यसभा) के वोटों की संख्या  549408 है।
संविधान (84वां संशोधन) अधिनियम 2001 के अनुसार, वर्तमान में राज्यों की जनसंख्या वर्ष 1971 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है जिसमें बदलाव वर्ष 2026 के बाद की जनगणना के आंकड़े प्रकाशित होने के बाद किया जाएगा।
डॉक्टर राकेश कुमार आर्य

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