इस्लामिक देशों को पाकिस्तान का असली चेहरा पहचानन ही होगा
ललित गर्ग
अब समय आ गया है कि इसका सही-सही मूल्यांकन हो कि इन कट्टरपंथी ताक़तों की जड़ में कौन-सी विचारधारा या मानसिकता काम कर रही है। वह कौन-सी विचारधारा है जो नन्हीं हिन्दू बच्चियों का अपहरण कर उन्हें मुस्लिम बनाने को अल्लाह की इच्छा करार देती है?
भारतीय मुसलमानों को लेकर घड़ियाली आंसू बहाने और अभी हाल में पैगंबर मोहम्मद साहब को लेकर की गईं टिप्पणियों के बहाने आसमान सिर पर उठाने तथा इस्लामी जगत को भारत के खिलाफ उकसाने वाला पाकिस्तान अपने यहां अल्पसंख्यकों का किस प्रकार दमन, दोहन, उत्पीड़न कर रहा है, इसका ताजा प्रमाण है कराची में एक मंदिर में किया गया हमला। इस हमले के दौरान न केवल प्रतिमाओं को तोड़ा गया, बल्कि लूटपाट-मारपीट भी की गई। पड़ोसी देश में हिन्दू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की यह एक और त्रासद एवं विडम्बनापूर्ण घटना है। इस घटना में सबसे पहले कुछ मोटरसाइकिलों पर दर्जन भर लोग आए और मंदिर पर हमला कर दिया, बाद में और लोग आए तथा हमलावर भीड़ में तब्दील हो गए। हमलावर हिंदुओं के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। इस घटनाक्रम से कराची के हिंदू समुदाय में काफी दहशत एवं असुरक्षा है। ऐसी अमानवीय एवं त्रासद घटनाओं का विरोध केवल भारत में ही नहीं, दुनिया में होना चाहिए।
इन दिनों पाकिस्तान पूर्व बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के बयानों पर भारत को ज्ञान दे रहा है लेकिन उसके अपने मुल्क में हिंदू और सिख जैसे अल्पसंख्यकों और उनके पूजा-स्थलों की स्थिति बेहद दयनीय है। पिछले बाइस महीनों में कराची में मन्दिर पर यह दसवां हमला है। उससे पहले भी पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर भीड़ हमला करती रही है और वहां की सरकारें चुप्पी साधे रही हैं। अक्सर हिंदू मंदिर व हिंदू जनमानस कट्टरवादी एवं उन्मादी उपद्रवियों के हमले का शिकार होते रहते हैं। पाकिस्तान सरकार इन पर नियंत्रण की बात तो करती है किन्तु हिंदुओं के हमलावरों पर नियंत्रण कर पाने में सफल नहीं हो पाती। इससे लगता है कि सरकार की कथनी और करनी में फासला है एवं वह पूर्वाग्रहों एवं आग्रहों से ग्रस्त है। आज पाकिस्तान एवं अन्य कट्टरवादी मुस्लिम राष्ट्रों में सचमुच इसकी महती आवश्यकता है कि इस्लाम को मानने वाले शांति-पसन्द लोग आगे आएं और खुलकर कहें कि सभी रास्ते एक ही ईश्वर की ओर जाते हैं, अपने-अपने विश्वासों के साथ जीने की सबको आज़ादी है और अल्लाह के नाम पर किया जाने वाला खून-ख़राबा अधार्मिक है, अमानवीय है एवं अपवित्र है।
अब समय आ गया है कि इसका सही-सही मूल्यांकन हो कि इन कट्टरपंथी ताक़तों की जड़ में कौन-सी विचारधारा या मानसिकता काम कर रही है। वह कौन-सी विचारधारा है जो नन्हीं हिन्दू बच्चियों का अपहरण कर उन्हें मुस्लिम बनाने को अल्लाह की इच्छा करार देती है? वह कौन-सी विचारधारा है जो विद्यालयों-पुस्तकालयों-प्रार्थनाघरों-मन्दिरों पर हमला करने में बहादुरी देखती है और हज़ारों निर्दोषों का ख़ून बहाने वालों पर गर्व करती है? वह कौन-सी विचारधारा है जो दूर देश में हुए किसी घटना-निर्णय के विरोध में अपने देश के अल्पसंख्यकों के घर जलाने, उन पर हिंसक हमले करने में सुख या संतोष पाती हैं? अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है, उनके मंदिरों पर हमले केवल कट्टरपंथी मुस्लिम ही नहीं करते बल्कि आम लोग भी करते हैं। पिछले कुछ सालों में ये हमले कई गुना बढ़ गए हैं। यह हमला मानसिकता को पनपाने में सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका है।
पाकिस्तान में हिन्दुओं को तरह-तरह से उत्पीड़ित किया जाता है। अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उन्हें पहले जबरन मुसलमान बनाया जाता है और फिर छल-बल का सहारा लेकर उनके अपहर्ता से ही उनका निकाह करा दिया जाता है। इसमें पुलिस, प्रशासन से लेकर अदालतें तक उन तत्वों का सहयोग करने को तत्पर रहती हैं, जो इन लड़कियों का अपहरण करते हैं। ऐसे मामलों में पाकिस्तान सरकार या तो चुप रहना पसंद करती है या फिर ऐसे जबरिया निकाह को कट्टरपंथी मुल्लाओं की तरह अल्लाह की मर्जी बताकर कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। पाकिस्तान में सरकार मंदिरों पर कोई खास ध्यान नहीं दे रही है। कई पुराने मंदिर या तो नष्ट कर दिए गए हैं, या फिर उनकी हालत बहुत बुरी है। यही हाल अन्य अल्पसंख्यकों का भी है। उदारवादी पत्रकार पीरजादा सलमान जैसे लोगों का मानना है कि लोग यह बात नहीं समझा पा रहे हैं कि इन हमलों के कारण वे देश की सांस्कृतिक धरोहर भी नष्ट कर रहे हैं, कराची के मालीर इलाके में एक मंदिर हुआ करता था। आर्किटेक्चर के लिहाज से यह एक शानदार इमारत थी। मंदिर में हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियों पर बहुत ही बारीकी से काम किया गया था। जब मंदिर पर हमला हुआ तब लोगों ने ये मूर्तियां भी तबाह कर दी। ये केवल पूजा पाठ की जगह नहीं थीं, बल्कि यह पाकिस्तान की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर थी। अपनी ही धरोहर को नष्ट करना पाकिस्तान के मानसिक दिवालियापन का द्योतक है। स्थिति कितनी भयावह है, इसे इससे समझा जा सकता है कि कुछ समय पहले जब खैबर पख्तूनख्वा में एक मंदिर को जलाने वालों पर अदालत ने जुर्माना लगाया, तो उसे हिंदुओं को ही भरना पड़ा। यह अंधेरगर्दी इसलिए हुई, क्योंकि हिंदुओं को धमका कर उन पर यह दबाव बनाया गया कि अमन-चैन बनाए रखने के लिए बेहतर यही होगा कि वे दोषियों पर लगाया गया जुर्माना खुद भरें। उन्हें ऐसा करना पड़ा।
दुनिया के किसी कोने में मुसलमानों के साथ हुई किसी मामूली या बड़ी घटना को लेकर अपने ही देश के ग़ैर इस्लामिक बंधु-बांधवों, पास-पड़ोस का अंधा विरोध, स्थानीय समाज के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन, अराजक रैलियां, उत्तेजक नारे, मज़हबी मजलिसें समझ से परे हैं? ऐसी मानसिकता को किस तर्क से सही ठहराया जा सकता है? पंथ-विशेष की चली आ रही मान्यताओं, विश्वासों, रिवाजों के विरुद्ध कुछ बोले जाने पर सिर काट लेने की जिद्द, फरमान और सनक सभ्य समाज में कभी नहीं स्वीकार की जा सकती। आधुनिक समाज संवाद और सहमति के रास्ते पर चलता है। समय के साथ तालमेल बिठाता है। किसी काल विशेष में लिखे गए ग्रंथों, दिए गए उपदेशों, अपनाए गए तौर-तरीकों को आधार बनाकर तर्क या सत्य का गला नहीं घोंटता। चांद और मंगल पर पहुंचते क़दमों के बीच कट्टरता की ऐसी ज़िद व जुनून प्रतिगामी एवं संकीर्ण मानसिकता की परिचायक है। इस्लाम का कट्टरपंथी धड़ा आज भी इस संकीर्ण एवं मध्ययुगीन मानसिकता से बाहर आने को तैयार नहीं। नतीजतन वह विश्व मानवता के लिए एक ख़तरा बनकर खड़ा है। आस्था के नाम पर यह उचित नहीं कि जो-जो हमसे सहमत नहीं हैं, उन्हें दुनिया में रहने व जीने का अधिकार ही नहीं। यह घोर अलोकतांत्रिक एवं अवैज्ञानिक सोच होगी। अराजकता का व्याकरण और मूर्खताओं का तर्कशास्त्र गढ़ने में माहिर लोग भी इसकी पैरवी नहीं कर सकते।
पाकिस्तान में ईसाइयों के साथ हिंदुओं एवं सिखों के उत्पीड़न का सिलसिला एक लंबे अर्से से कायम है, लेकिन न तो विश्व समुदाय इस पर ध्यान देने को तैयार है और न ही वह इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी), जो पाकिस्तान के इशारे पर भारत के मामलों में अनावश्यक दखल देने को उतावला रहता है। बीते दिनों इस्लामी देशों में जो भारत विरोधी माहौल बनाया गया, उसमें पाकिस्तान की तो एक बड़ी भूमिका थी ही, ओआइसी का भी हाथ था। भारत ने तब उचित ही पाकिस्तान के साथ ओआइसी को फटकार लगाई थी। अब कराची में मंदिर पर हमले की घटना को लेकर उसे फिर से ओआइसी को आईना दिखाना होगा। इसी के साथ ही इस संगठन के अन्य देश खासकर कतर एवं मलेशिया अपने गिरेबान में झांकें? अन्य सच्चे इस्लामिक राष्ट्रों से भी यह सवाल है कि वे पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है, उस पर अपना मुंह खोलें और पाकिस्तान का असली चेहरा पहचानने की जहमत उठायें। इस्लामिक कट्टरपंथी ताक़तें पूरी दुनिया में अमन और भाईचारे का माहौल बिगाड़ने का काम कर रही हैं। जबकि इस्लाम के नाम पर दुनिया के हर कोने में हो रहे आतंकवादी हमलों एवं वारदातों के विरुद्ध इस्लाम के अनुयायियों के बीच से ही आवाज़ उठनी चाहिए। पाकिस्तान जैसे इस्लाम को धुंधलाने वाले राष्ट्र की गुमराह करने वाली बातों से दूरी बनाई जानी चाहिए। उसके द्वारा मज़हब के नाम पर किये जा रहे ख़ून-खराबे का खंडन करना चाहिए था। उसे सच्चा इस्लाम न मानकर कुछ विकृत मानसिकता का प्रदर्शन माना-बतलाया जाना चाहिए था।
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