लखवी को जेल में रखें या बाहर, कोई खास फर्क नहीं है । वह जेल में रहकर भी पूरी तरह आजाद रहता है । पाकिस्तानी अखबारों के अनुसार उसे जेल में न केवल सारी सुविधाएँ प्राप्त है बल्कि वह एक संतान का पिता भी बन गया है । लखवी और उसके साथियों ने मुंबई में जो कुछ किया, क्या वह पाकिस्तानी फौज और आई.एस.आई. की मदद के बिना हो सकता था ? उसे अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण जेल में बंद तो किया गया है लेकिन सरकारी वकील इतने ढीले-ढाले कर दिए गए हैं कि इन आतंकवादियों को सजा मिलना बहुत कठिन है । पाकिस्तान के राजनेताओं में इतनी हिम्मत कहाँ कि वे अपने देश की ‘असली सरकार’ पर लगाम लगा सकें। फौज सिर्फ उन्ही आतंकवादियों के खिलाफ हैं, जो पाकिस्तान-विरोधी हैं । जो आतंकवादी भारत और अफगानिस्तान को तंग करते हैं, वे तो उसी के बनाए हुए हैं । अपने हाथ के खड़े किए हुए पुतलों को फौज और आई. एस. आई. कैसे ढहा सकती है ? लेकिन इस दुविधा ने पाकिस्तान और उसके नेताओं की इज्ज़त को धूल में मिला दिया है । इधर कुछ दिनों से पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ी है, खास तौर पर यमन में सऊदी अरब को मोहरा न बनने के कारण लेकिन मुंबई हमले के दोषियों ने भारत-पाक संबंधों की गाड़ी को फिर पटरी से नीचे उतार दिया है । पाक सरकार थोड़ी हिम्मत करे तो गाड़ी फिर पटरी पर आ सकती है।
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