अभिव्यक्ति के मामले में दोहरा मापदण्ड क्यों?

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सुरेश हिन्दुस्थानी
किसी शायर ने कहा है कि- तुम कत्ल करो तो चर्चा नहीं होती, हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम। वर्तमान में हमारे देश में कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है। देश में जिस प्रकार से वैमनस्य बढ़ाने वाला वातावरण बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, वह निश्चित ही देश की उस सांस्कृतिक अवधारणा को तार तार करने वाला ही कहा जा सकता है, जिसमें विविधता में एकता के दर्शन होते हैं। जिसमें सांप्रदायिकता की चौड़ी होती हुई खाई को मिटाने का साहस है। इस प्रकार का वातावरण बनाने में जहां देश के ही कुछ व्यक्ति शामिल होते दिखाई देते हैं, वहीं यह भी देखने में आता है कि कुछ भारत विरोधी शक्तियां ऐसे प्रयासों में आग में घी डालने का काम करने वाली होती हैं। हम यह समझने में अक्सर भूल कर बैठते हैं कि ऐसा कोई भी प्रयास जहां भारत के सांप्रदायिक सौहार्द की भावना पर क्रूरता पूर्वक प्रहार कर रहा है, वहीं भारत के उन कदमों में बेड़ियां डालने का प्रयास कर रहा है, जो मूल भारत की ओर निरंतर बढ़ रहे हैं। हम यह भली भांति जानते हैं कि अब भारत अपने स्वत्व को पहचानने लगा है, अपने विस्मृत गौरव को आत्मसात भी करने लगा है। विदेशी शक्तियों का यह सुनियोजित हस्तक्षेप भारत को महाशक्ति बनने से रोकने का ही कदम है। यहां सवाल यह नहीं है कि विदेशी शक्तियां ऐसा क्यों कर रहीं हैं? सवाल तो यह है कि भारत के जिम्मेदार नागरिक इनके द्वारा जो नैरेटिव सेट किया जा रहा है, उसके बहकावे में क्यों आ जाते हैं? विदेशी शक्तियां यह कभी नहीं चाहतीं कि भारत अपने पुरातन और स्वर्णिम विरासत को प्राप्त करने की ओर आगे बढ़े। इसलिए यहां के सामाजिक ताने बाने को बिगाड़ने का खेल चल रहा है। हम यह भली भांति जानते हैं कि विदेशियों ने भारत को अपने स्वत्व से अलग करने का भरपूर प्रयास किया। इसके लिए भारतीय समाज में फूट डालो और राज करो की नीति भी अपनाई गई। जिसके कारण भारत की सामूहिक शक्ति का बिखराव हुआ और भारत अपनी शक्ति को भूल गया। आज भी विदेशी शक्तियों का भारत को देखने का अंग्रेजों जैसा ही दृष्टिकोण है।
अभी हाल ही में नूपुर शर्मा के एक बयान को लेकर जिस प्रकार का वातावरण बनाने का प्रयास किया गया, वह समय निकलने के साथ ही अब ऐसा दृश्य दिखा रहा है, जो किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा भी हो सकता है। इसका मूल कारण नूपुर शर्मा नहीं, बल्कि भारत की वह बढ़ती ताकत है, जो कई देशों को एक झटके में छोटा कर रही है। वास्तविकता यह है कि भारत ने किसी को छोटा करने का प्रयास नहीं किया, बल्कि भारत ने अपने मूल को पहचानते हुए अपने आपको इतना बड़ा कर लिया है कि बहुत से देश भारत के समक्ष छोटे नजर आने लगे हैं। इन देशों को यह सहन नहीं हो रहा है कि भारत की ताकत क्यों बढ़ रही है। यहां मेरे यह लिखने का तात्पर्य यह कतई नहीं है कि हम नूपुर शर्मा का समर्थन कर रहे हैं और न ही देशवासी ऐसी किसी बात का समर्थन ही करेंगे। मुख्य सवाल यहां यह भी है कि नूपुर शर्मा को ऐसा बोलने के लिए उकसाया गया। अगर टीवी चैनल पर हुई बहस को पूरा देखा जाए तो यह सच सामने आ जाएगा। सवाल यह भी है कि पूरी बहस को एक पक्षीय क्यों बनाया जा रहा है, जबकि ज्ञानवापी मामले को लेकर भगवान शिव के बारे में क्या कहा गया, इस मामले को भी बताया जाता। अगर कल के दिन जिसे फव्वारा बताया जा रहा है, वह वास्तव में शिवलिंग निकला, तब क्या यह टीवी चैनल वाले इसे सही रूप में प्रस्तुत करने का सामर्थ्य दिखाएंगे। टीवी चैनल वाले ऐसे बहस के कार्यक्रमों पर विराम लगाने का प्रयास करें, जिससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है। और विशेष बात यह है कि उकसाने वाले प्रयास तो बिलकुल नहीं होना चाहिए।
यह सही है कि भारत का मुसलमान भारतीय संस्कृति का पालन करने वाला है, लेकिन उसे हिन्दुस्तान की मुख्य धारा से अलग करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है। इसी कारण आज देश में मुसलमानों को धर्म के नाम पर भड़काकर हिन्दू धर्म के विरोध में खड़ा करने का प्रयास करते हुए भारत से दूर किया जा रहा है। गरीबी और झोंपड़ी में रहने वाला मुसलमान उनके बहकावे में आकर अपने परिवार को विकास की धारा में शामिल नहीं कर पा रहा है। इसके विपरीत इनके नाम पर राजनीति करने वाले मुसलमान अपने आपको संपन्न जरूर बनाते जा रहे हैं। इसी कारण वह इस सत्य को भी स्वीकार करने का साहस भी नहीं दिखा पा रहा कि विदेशी आक्रांता औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तहस नहस किया। इसके प्रमाण भी हैं, जो इसकी सत्यता को उजागर करते हैं। फिर इस सच्चाई को झुठलाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है। इसी प्रकार के तथ्य अयोध्या की राम जन्म भूमि और भगवान सोमनाथ मंदिर के बारे में भी हैं। इस सत्य को भारत का मुसलमान भी जानता है, लेकिन वह इस मामले में तथ्यों को स्वीकार क्यों नहीं कर रहा, यह बड़ा सवाल है। भारत का मुसलमान भारत का ही बनकर रहे और भारत के प्रामाणिक तथ्यों को खुले रूप में स्वीकार करे, यह समय की मांग भी है और भारत की एकता बनाए रखने का आवश्यक कदम भी है। आज इस सत्य को भी समझने की आवश्यकता है कि विदेशी ताकतों ने भारत को मटियामेट करने का काम किया है। यह कार्य बहुत लम्बे समय से चल रहा है। हम जानते हैं कि भारत के पास समाज की असीम ताकत है, लेकिन यह ताकत केवल तब ही दिखाई देगी, तब समाज में एकता के भाव का प्रदर्शन होगा। समाज की फूट हमेशा दुखदायी होती है। इसी फूट के कारण भारत ने बहुत बड़ा नुकसान भी झेला है।
भारत में सर्व धर्म समभाव की अवधारणा वाली संस्कृति पुरातन काल से चली आ रही है। इसका आशय यही है कि सभी धर्म और संप्रदाय के नागरिकों को सभी की आस्था और श्रद्धा का सम्मान करना चाहिए, लेकिन विसंगति यही है ऐसा व्यवहार करने की केवल हिन्दू समाज से ही अपेक्षा की जाती है। अन्य समाज पर इसे न तो लागू करने का प्रयास किया जाता है और न ही वह समाज स्वयं होकर ऐसा करने का साहस दिखाता है। इसके पीछे जो कारण है उसमें मुस्लिम समाज का कोई दोष नहीं है। दोष उनका है जो राजनीतिक फायदा उठाने के लिए इनको भ्रमित कर रहे हैं या फिर वे कट्टरपंथी मुसलमान हैं, जो इनके आधार पर अपनी राजनीति को चमकाना चाहते हैं। भारत देश में यह बहुत बड़ी विसंगति ही कही जाएगी कि हिन्दू धर्म के खिलाफ बोले जाने वाले किसी भी बयान को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के नाम पर समर्थन दिया जाता है, लेकिन हिन्दू समाज का कोई भी व्यक्ति अगर तथ्य आधारित कोई टिप्पणी कर देता है तो उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाकर प्रचारित किया जाता है। इस बात को अभी लोग भूले नहीं होंगे कि हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र बनाने वाले मकबूल फिदा हुसैन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम देकर उसे संवर्धित करने का प्रयास किया गया। स्वाभाविक ही है कि ऐसे कारणों से हिन्दू आस्था आहत होती है। देश में दोहरी भूमिका की राजनीति ने बहुत बड़ा नुकसान किया है। अब समय आ गया है कि ऐसी राजनीति बंद होना चाहिए, क्योंकि आज का भारत बदल रहा है, भारत को दुनिया सलाम कर रही है। हम इस परिवर्तन के सहयोगी बनें और दुनिया में साहस के साथ खड़ा होने का सामर्थ्य पैदा करें। इसी में हम सबकी भलाई है और इसी में भारत की भलाई है।
लेखक राष्ट्रीय चिंतक व विचारक हैं
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सुरेश हिन्दुस्थानी, वरिष्ठ पत्रकार
द्वारा- श्री राजीव उपाध्याय अधिवक्ता
हरिहर मंदिर के पास, सूबे की गोठ
कैलाश टाकीज के पीछे
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