अंबेडकर के नाम पर नौटंकी
डॉ. भीमराव आंबेडकर की 150वीं जयंति मनाने की होड़ लगी हुई है। सभी दल आंबेडकर जी की माला जपने में एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहते हैं । कोई आंबेडकर और गाँधी की जोड़ी बिठा रहे हैं, कोई आंबेडकर और हेडगेवार को साथ-साथ झूला झुला रहें हैं और कोई आंबेडकर और सावरकर को एक ही थाली में जिमाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन वर्तमान नेताओं में से बहुत कम को पता है कि इन तीनों सज्जनों से आंबेडकर जी के संबंध कैसे रहे हैं। उन उलझे हुए संबंधों की गहराई में अभी जाने का समय नहीं है लेकिन एक बात स्पष्ट है कि ये चारों महापुरुष हिन्दू समाज की बुराइयों को दूर करने में लगे हुए थे। चारों चाहते थे कि भारत मजबूत हो, संपन्न हो, सुखी हो और उसमें एकात्म हो। लेकिन हमारे राजनीतिक दलों में अभी जो होड़ लगी हुई है, आंबेडकर जी को ले उड़ने की, उसे देख-देखकर हंसी आती है।
यह तो अच्छा लगता है कि सभी पार्टियों और जातियों के नेता आंबेडकरजी की मूर्ति की आरती उतर रहे हैं और उसे माला पहना रहे हैं। गृहमंत्री राजनाथ सिंह को एक दलित महिला के हाथ से निवाला मुहँ में लेते हुए देखकर रोमांच हो आता है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि स्वयं दलित संगठन और हमारे राजनीतिक दल क्या वाकई आंबेडकर जी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं ? डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तक ‘जाति का उन्मूलन’ क्या इन लोगों ने पढ़ी है ? क्या जन्मना जाति के उन्मूलन के लिए ये लोग अपनी चिट्टी उंगली भी हिलाने को तैयार हैं ? बिलकुल नहीं। भारत के सारे दल जाति-व्यवस्था को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं । उन्होंने आंबेडकर की विचारधारा को शीर्षासन करवा रखा है । जाति के नाम पर चल रहा आरक्षण दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों को अनंत काल के लिए दीन-हीन और दया का पात्र बना रहा है ।यह मुट्ठी भर लोगों की एक नई जात को पैदा कर रहा है ।
जरूरी है कि नौकरियों में आरक्षण को तत्काल ख़त्म किया जाए और शिक्षा में गरीबों और जरूरतमंदों को बिना किसी जाति- भेदभाव के आरक्षण दिया जाए । देश के समस्त राजनीतिज्ञों और सरकारी कर्मचारियों पर यह कठोर नियम लागू हो कि वे जातीय उपनाम हटाएँ। जातीय आधार पर बने सामाजिक संगठनों को गैर-कानूनी घोषित किया जाए हिन्दू समाज की इस बुराई को, जो मुसलमानों और इसाईयों में भी घर कर गई है, जबतक जड़मूल से नहीं उखाड़ा जाएगा, भारतीय समाज में सच्ची एकता और समता पैदा नहीं हो सकती । अभी हमारे राजनीतिक दल आंबेडकर जी के नाम पर जो कर्मकांड और नौटंकी कर रहे हैं, उसका एक मात्र लक्ष्य दलित वोटों को पटाना है । आंबेडकर के सपनों का समाज बनाना राजनीतिज्ञों के बस के बाहर की बात है । इसके लिए हमारे साधू-संतों, समाज-सुधारकों और साहित्यकारों को आगे आना होगा।