दयानंद पांडेय
समझ नहीं आता कि भारत में इस्लाम इतना नाज़ुक क्यों है भला ! ज़रा-ज़रा सी बात पर कुम्हला जाता है। जब मन तब दंगा-फ़साद करवा देता है। ठेले पर पत्थर ले कर ऐसे आ जाता है , गोया सब्ज़ी ले कर आया हो। छत पर भी पत्थर सजा कर रखता है। और ऐसे बरसाता हो गोया सोना बरसा रहा हो। पेट्रोल बम भी उस के पास है और तलवार भी। आतंकवाद भी उस के पास है , थूकना आदि और ओ आई सी इत्यादि भी। मंदिरों आदि पर कब्जा वग़ैरह सामान्य बात है। दिलचस्प यह कि अल्पसंख्यक हो कर भी बहुसंख्यक को चांप कर रखता है। जब-तब कहता रहता है कि इस देश में हमें डर बहुत लगता है पर सब को डराने में चैंपियन है। कश्मीर जैसी ज़न्नत को जहन्नुम बनाने में मास्टर है। तब्लीगी , वहाबी , देवबंदी आदि-इत्यादि भी।
यहां तो अपने राम , कृष्ण और शिव में हम ही लोग तमाम नुक़्स , छेद और बीमारी निकालने के अभ्यस्त हैं। बाक़ी लोग भी पेंग मारते रहते हैं। हमारे ही लोग इन की मूर्तियों पर पेशाब कर के खुद अपना बखान लिखने लगते हैं। पूछने लगते हैं कि क्या कर लिया हमारा इन मूर्तियों ने ? फिर भी कोई दंगा-फ़साद नहीं होता कहीं। कोई गिला-शिक़वा भी नहीं। कुछ गिले-शिक़वे हुए भी तो अभिव्यक्ति की आज़ादी तले दब-दबा जाते हैं। फिर भी कुछ मुखर होते हैं तो उन्हें कट्टर हिंदुत्ववादी , भाजपाई , संघी आदि की तोहमत लगा कर सावरकर , गोडसे की याद दिला कर अपमानित कर दिया जाता है। शरिया तले संविधान को दबते बारहा देखते रहते हैं हम लोग। अभ्यस्त हो गए हैं ऐसे पाखंड और पाखंडियों के कुकर्म देखने के लिए। ऐसे पाखंडी लोगों को हम लोग बहुत सम्मान के साथ सेक्यूलर कहा करते हैं।
हम तो गाय की पूजा करते हैं। गऊ माता कहते हैं। पर हमारे ही भाई-चारा वाले भाई गाय का मांस खाने को अपना मौलिक अधिकार बताते हैं। कोई विरोध करता है आस्था के नाम पर तो लोग इसे मॉब लिंचिंग बता कर तूफ़ान मचा देते हैं। लेकिन कोई पत्थरबाज , तलवार लहरा कर राम नवमी के जुलूस पर शहर-दर-शहर पत्थरबाजी कर हमला कर देता है तो लोग गंगा-जमुनी तहज़ीब कर हमारा मन बहला देते हैं। भाई-चारा बता कर हमें मार डालते हैं। अब तो हनुमान जी भी लाचार दिखते हैं , इन के आगे। हम फिर भी चुप रहते हैं। कि कही देश की दुनिया में बदनामी न हो जाए। चुप लगा जाते हैं। क्यों कि कोई ओ आई सी हमारे साथ नहीं होता। अचानक बेबात तेल का दाम दो डालर से बढ़ा कर छह डालर करने वाला हमारे साथ नहीं होता।
हमारे पास हैदराबाद के ओवैसी जैसा भी कोई नहीं है जो झूठ को सौ फीसदी सच बता कर चीख़-चीख़ कर दुनिया भर को बता सके। तेल का दाम पूरी एशिया के लिए दो डालर से छह रुपए हो गया है। लेकिन ओवैसी घुड़पते हुए कहता है , और करो ज्ञानवापी , ज्ञानवापी ! गोया ओ आई सी ओवैसी का बाप हो। जैसे तेल का दाम सिर्फ़ भारत के लिए बढ़ा हो। वह भी ज्ञानवापी-ज्ञानवापी कहने के कारण। इस के पहले 1991 का वर्शिप ऐक्ट हथियार था। अब तेल का दाम है। नहीं है कोई हमारे पास ओवैसी का भाई भी जो पंद्रह मिनट में सौ करोड़ पर भारी कहने की धमकी दे कर सुप्रीम कोर्ट से साक्ष्य के अभाव में बाइज़्ज़त बरी हो जाए। यूट्यूब पर ओवैसी का वह भाषण जस का तस अभी भी उपस्थित है। पर सुप्रीम कोर्ट अंधी हो कर साक्ष्य के अभाव में छोड़ देती है। जानते हैं क्यों ?
क्यों कि इस्लाम बहुत नाज़ुक है।
खैर हम तो ठहरे सहिष्णु। गो कि गाय का मांस खाने को मौलिक अधिकार बताने वाले लोग हम को असहिष्णु और अभिव्यक्ति का गाला घोंटने वाला जब-तब बताते रहते हैं। एक समय आज़म ख़ान भी भारत मां को डाइन कहते नहीं थकते थे। फिर भी कोई क़ानून उन का कुछ नहीं कर पाया। क्यों कि इस्लाम बहुत नाज़ुक है। और सेक्यूलरिज्म का पाखंड बहुत ताक़तवर। इसी लिए वह जयाप्रदा की चड्ढी का रंग भी बता देते थे। चोरी गई भैंस भी घंटों में खोजवा लेते थे। वह तो बुरा हो योगी का। जाने कहां से आ गया यह योगी। आज़म पर ज़ुल्म ढाते हुए जेल भेज दिया। नहीं पट्ठा तो प्रधान मंत्री मैटीरियल बताने लगा था ख़ुद को। कहता था कि अखिलेश चीफ़ मिनिस्टर और मैं प्राइम मिनिस्टर। फिर ख़्वाब देखा नेता विपक्ष बन जाने का। संसद से इस्तीफ़ा इसी समीकरण में दिया। लेकिन अखिलेश भी जल्लाद ठहरा। खुद बन गया नेता विपक्ष।
जाने क्यों मुझे लगता है कि भारत में नाज़ुक इस्लाम को ताक़तवर इस्लाम बनाने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी भाजपा की सरकार बननी ही चाहिए। ताकि योगी जैसा कोई मुख्य मंत्री ओवैसी को आज़म ख़ान बना सके। रही बात ओ आई सी और क़तर जैसे देशों के लिए तो हमारे पास है एक आदमी जो इन लोगों को भी मज़बूत बना देगा। नाज़ुक बनना बंद कर देंगे यह लोग। यक़ीन न हो तो आमिर ख़ान , शाहरुख़ ख़ान को देख लीजिए। इन को भी डर बहुत लगता था कभी। अब एक-एक कर सारी फ़िल्में चित्त हुई जा रही हैं , धड़ाम हुई जा रही हैं तो डर लगना बंद हो गया है। एक पाकिस्तान देख लीजिए। आज़म खान जैसी हालत उस की भी है। बल्कि और बुरी। आज़म ख़ान के पास तो विकल्प है कि जेल से निकल कर दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अपना डिप्रेशन का इलाज करवा सकें। पर पाकिस्तान के पास तो यह विकल्प भी नहीं है। तय मानिए ओ आई सी के सदस्य देशों की भी जल्दी ही पाकिस्तान जैसी स्थिति आनी है। एक तेल ही तो है ओ आई सी के पट्ठों के पास। और है क्या ? खाते तो वह हमारा ही अनाज हैं। फिर तेल के तमाम विकल्प पर तो समूची दुनिया काम कर रही है। ज़्यादा से ज़्यादा दो-चार साल और। तेल देशों की सारी ब्लैकमेलिंग ख़त्म।
अच्छा बार-बार इन तेल देशों में काम करने वालों की , उन के द्वारा भेजे गए विदेशी मुद्रा की बड़ी चर्चा होती है। कौन भारतीय लोग काम करते हैं यहां। और जो मुद्रा यह लोग भेजते हैं , उन का क्या दुरुपयोग होता है ? किन कामों में होता है ? पी एफ आई को भारी फंडिंग के स्रोत भी तो यही हैं। तो इन को भी इतना मज़बूत बना दिया जाए कि लोग इन की चर्चा भी करना भूल जाएं। मसले और भी हैं मज़बूती के। लेकिन पहले इन की कमज़ोरी ठीक करने की ज़रुरत है। ताकि यह सर्वदा नाज़ुक रहने की बीमारी से मुक्त हो जाएं। इन को पाकिस्तान और अफगानिस्तान जितना मज़बूत बना देना है। ओ आई सी समेत सभी की कमज़ोरी का इलाज बहुत ज़रुरी हो गया है। हर्ष की बात है कि हमारे पास एक योग्य चिकित्सक है। जिसे प्राकृतिक , आयुर्वेदिक , यूनानी , होम्योपैथी , एलोपैथी , योग आदि हर चिकित्सा पद्धति का ज्ञान है। उस का अस्पताल भी बहुत अच्छा है।
अच्छा कुछ नाज़ुक लोग और हैं जो बारंबार भारत द्वारा ओ आई सी से माफ़ी मांगने की बात दुहरा रहे हैं। देखिए न विदेश मंत्रालय की यह विज्ञप्ति। सेक्यूलरिज्म के नाम पार विष-वमन करने वाले जितने सर्प या बिच्छू आदि हैं , उन्हें इस में किस वाक्य में भारत सरकार की माफ़ी दिखती है। कोई बताए भी। फिर यह सर्प-बिच्छू ही हैं या ओ आई सी के दल्ले ? मुझे तो इस में ओ आई सी को दी गई चेतावनी दिखती है। और जो आप नहीं जानते तो जान लीजिए कि भारतीय क़ानून के मुताबिक़ चेतावनी भी कनविक्शन है। यानी सज़ा।