मोदी की कूटनीति को ना समझने की नासमझी
दयानंद पांडेय
होता है कई बार कि शेर से लड़ जाने वाले लोग चूहे-बिल्ली से भी डर जाते हैं। कुत्तों से भी। मैं भी डरता हूं चूहे , बिल्ली और कुत्तों से। बहुत डरता हूं। मक्खी और मच्छर से भी। लेकिन शेर से तो नहीं ही डरता। मान लेता हूं कि सरकार चलाने वाले लोग भी डरते होंगे। लेकिन बकौल सेक्यूलर चैंपियंस आज का कुल हासिल यह कि अमरीका से आंख मिला कर बतियाने वाले लोग मुस्लिम देशों के आगे घुटने टेक गए हैं। दंडवत हो गए हैं। नूपुर शर्मा का भाजपा से निलंबन कर मोदी ने थूक कर चाट लिया है। यही सब सेक्यूलर चैंपियंस द्वारा निरंतर परोसा जा रहा है। दिलचस्प यह भी है कि हमारे सेक्यूलर चैंपियंस नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पनसारे, कलबुर्गी की भाषा बोल कर घृणा फैलाने में व्यस्त हो गए हैं। अरसे बाद ऐसी घृणा फैलाने का अवसर उन के हाथ आया है। सेक्यूलर चैंपियंस बता रहे हैं कि तुम्हारे भगवान की मूर्तियों पर रोज पेशाब करता हूं। थूकता हूं। कुल्ला करता हूं। क्या बिगाड़ लिया तुम ने या तुम्हारे भगवान ने हमारा। ताज़ा संदर्भ लिया गया है कि बाबा भी भक्तों को नहीं बचा पाए। बाबा मतलब ज्ञानवापी में शिवलिंग। लेकिन 6 साल की लड़की से निकाह और 9 साल की लड़की से हमबिस्तरी की बात करना तो गुनाह है। ऐसी बात को परदे में रखना ही सेक्यूलरिज्म है। गुड है यह भी।
कुछ सेक्यूलर चैंपियंस इस बात पर भी हर्षित दिख रहे हैं कि कहीं तो मोदी सरकार डरी और घुटने टेक गई। कुछ लोग यह भी ख़बर बांट कर हर्षित हैं कि कतर में उप राष्ट्रपति का डिनर कैंसिल हो गया है। तो कुछ हर्ष जता रहे हैं कि बेचारे उप राष्ट्रपति को भूखे सोना पड़ेगा। कुछ जैसा बोया , वैसा काटा के हर्षातिरेक में निमग्न हैं। समझ नहीं आता कि यह और ऐसे लोग सेक्यूलर चैंपियंस हैं कि निरे कुत्ते हैं। जिन्हें अपने देश के अपमान में इतनी ख़ुशी दिखती है। जो भी हो कानपुर में कुटाई का शोक अब हर्ष के समंदर में तब्दील हो गया है।
क्या तो मुस्लिम देशों में भारतीय लोगों की नौकरी ख़तरे में पड़ गई है। भारतीय सामान का बहिष्कार हो रहा है। आदि-इत्यादि। मोदी की फ़ोटो कूड़ेदान में डाल दिया गया है। मोदी ने माफ़ी मांगी। तरस आता है ऐसे लोगों पर। इन की कुत्तागिरी पर। अफ़सोस कि यह लोग नरेंद्र मोदी की कूटनीति को अभी तक नहीं समझ पाए। लात पर लात खाते जा रहे हैं पर बुद्धि साथ नहीं दे रही। चार क़दम आगे , दो क़दम पीछे की रणनीति भी नहीं समझ पाए। जो चीन और अमरीका को पानी पिला सकता है , वह इन पिद्दी जैसे मुस्लिम देशों को भी घुटने पर लाएगा। देखते रहिए। कोई कूटनीति तात्कालिक नहीं होती। परिणाम तुरंत नहीं मिलता। जब मिलता है तो आंख फटी की फटी रह जाती है। जो लोग घर में अपने बच्चे नहीं संभाल पाते , वह लोग देश संभालने का ज्ञान दे रहे हैं।
एक बात और देख रहा हूं कि सोशल मीडिया पर कमोवेश सारे संघी और भाजपाई राशन-पानी ले कर मोदी सरकार पर हमलावर हो गए हैं। अच्छे दिन की ऐसी-तैसी कर भाजपा को सबक़ सिखाने की बात दहाड़ लगा कर रहे हैं। क्या कभी कोई कम्युनिस्ट कैडर का वर्कर कभी किसी बात पर अपने नेतृत्व पर ऐसा ज़ोरदार हमला कर सकता है ? जैसे आज संघी और भाजपाई हमलावर हैं ? सपने में भी नहीं सोच सकता। कांग्रेस , सपा , बसपा आदि पार्टियों की इस बाबत बात करना बेमानी है। क्यों कि इन पार्टियों में तो राजतंत्र क़ायम है। परिवारों की विरासत हैं यह पार्टियां। तो इन से ऐसी कोई उम्मीद करना दिन में तारे देखना है। संघ प्रमुख भागवत के बयान पर भी संघियों का हमलावर होना दिलचस्प था। तुष्टिकरण और कूटनीति का फ़र्क़ यह लोग भी नहीं समझते। जब आग लगी हो तो पेट्रोल नहीं , पानी डाला जाता है। इतनी सी भी बात नहीं समझते लोग। और बात भोले बाबा की करते हैं।