बजबजाती नालियाँ, गंदगी व सड़ान्ध से वातावरण दूषित, मच्छर और मक्खियों की भरमार। आन्त्रशोथ, क्षयरोग, यकृत रोग, गुर्दे की खराबी आदि समस्त शारीरिक संक्रामक बीमारियों का जनक दूषित जलापूर्ति। बिजली के नंगे तार लटकते हर गली-मोहल्लों में जैसे सर पर मंडराती मौत। बाँस-बल्लियों के सहारे की जा रही विद्युतापूर्ति। खुले में असुरक्षित रखे हुए ट्रान्सफार्मर। विद्युत अनापूर्ति, आपूर्ति का समय निश्चित नहीं। परिषदीय विद्यालयों में छप्पर, टाट पट्टी, ब्लैक बोर्ड नहीं, शिक्षक नदारद, बच्चों की कमी। मिड डे मील का ठण्डा पड़ा चूल्हा। एम.डी.एम. बना भी तो मिलते कीड़े, कंकड़, पत्थर। प्राकृतिक आपदाओं से त्रस्त किसान सदमे में आकर कर रहा आत्महत्या। कर्ज के बोझ तले दबा गरीब तबका, रोजी-रोटी की तलाश में पलायन को मजबूर।
सरकारी/खैराती अस्पतालों में चिकित्सक नही। ओपीडी में लगी लम्बी कतार। वार्डों में बेड नहीं, टूटे बेड पर गद्दे तो क्या चद्दर भी नहीं। स्ट्रेचर खस्ताहाल। जरूरी दवाएँ, एण्टी रैबीज वैक्सीन, आक्सीजन सिलेण्डर नहीं। बावजूद इसके अस्पतालों में जगह नहीं। चौतरफा गंदगी का साम्राज्य। धूम्रपान के पक्षधर जिम्मेदार माननीय। टीन एज में जींस-टीशर्ट, ग्लैक्सी, टैब, जेब में भारी नोट का फैशन। देशी, मिलावटी शराब से मरने वालों की संख्या अधिक, स्वाइन फलू डेंगू से मरने वाले कम। हल्दी में पीली मिट्टी, मिर्च पाउडर में ईंट का चूरा, धनिया-गरम मसाला में घोड़े की लीद, कॉफी में हाथी की वीट का बढ़ता चलन। पशु तस्करी जारी।
चोरी, छिनैती चरम पर, दुष्कर्मियों के पाप का नहीं भर रहा है घड़ा। अगवा होती किशोरियाँ। गाँवों/शहरों में शौचालय नहीं। साइकिल तक लॉक में सुरखित नहीं। निषिध व सार्वजनिक स्थानों पर उड़ते बीड़ी, सिगरेट के धुएँ, गुटखा-तम्बाकू की पीक यत्र-तत्र-सर्वत्र विद्यमान। स्कूल कॉलेज भवनों से सटी सजी गुटखा-पान की दुकानें। विभागों में ट्रान्सफर नीति पर अमल नही। जन प्रतिनिधि पूँजीपतियों को लाभ पहुँचा रही हैं सरकारी योजनाएँ। थानों में सक्रिय दलाल। प्रशासन एवं पुलिस मकहमे के अधिकारी और कर्मचारी सत्तारूढ़ पार्टी के बने एजेन्ट। माँगों को लेकर धरना-प्रदर्शन जारी। नतीजा सिफर। इस तरह के वक्तव्य में एक साथ कई पेंच, रूकावट के लिए खेद, फिर भी मेक इन इण्डिया व राइजिंग उत्तर प्रदेश।