देश में इस समय कई ऐसी राजनीतिक पार्टियां मौजूद हैं , जो आगामी लोकसभा के चुनाव में जीतने के लिए खुद को सबसे बड़ा सेकुलर और विरोधी को सम्प्रदायवादी साबित करने में लगी हुई हैं , ताकि मुस्लिम वोट उनकी पार्टी को मिल सके , लेकिन सभी जानते हैं कि सेकुलर शब्द एक विदेशी आयातित शब्द है , जिसका न तो किसी भारतीय भाषा में समानार्थी शब्द मिलता है , और न कोई सटीक परिभाषा ही मिल सकी है . व यदि हैम कहें कि सेकुलर शब्द एक ऐसा हथियार है जिसका उपयोग हिंदुओं के गले कटने के लिए ही बनाया गया है . हालाँकि खुद को विद्वान् कहने वाले कुछ भाषाशास्त्रियों ने सेकुलरजम (Secularism) का अनुवाद “सर्वधर्म समभाव ” भी किया है , यदि यह अर्थ सही है ,तो हिन्दू हजारों साल पहले से आज तक सेकुलर ही है . और यदि सेकुलरिज्म का अर्थ “धर्मनिरपेक्ष “है . तो इसका आशय है कि , जिसे धर्म की कोई अपेक्षा जा जरुरत नहीं हो . यानि सेकुलरिज्म का सही नास्तिकता है ,
वैसे सेकुलर शब्द लैटिन भाषाके सेकुलो (Seculo) शबद से बना है , जिसका अर्थ सांसारिक ( Worldly ) या भौतिकतावादी होता है .जो अरबी जो भाषा के शब्द ” अल मानिया – “علمانية “बिलकुल समानार्थी है, यद्यपि सेकुलरिज्म की विचारधारा अधिक पुरानी नहीं है , लेकिन बौद्ध काल में भारत और प्राचीन यूनान में ऐसी विचारधारा और लोग मौजूद थे जिनके सभी लक्षण यानि कुलक्षण वर्त्तमान सेकुलर नेताओं से बिलकुल मिलते है , भारतीय दर्शन ग्रंथों में ऐसे लोगों को ” लोकायत ” कहा गया है , और इस विचारधारा का प्रवर्तक ” बृहस्पति ” नाम का व्यक्ति था , जिसे ” चार्वाक ” भी कहा जाता है , इसके सिद्धांत को चार्वाक दर्शन कहा गया है , इसका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है ,
1-चार्वाक दर्शन
जिसे लोकायत या लोकायतिक दर्शन भी कहते हैं । लोकायत का शाब्दिक अर्थ है ‘जो मत लोगों के बीच व्याप्त है, जो विचार जनसामान्य में प्रचलित है ।’ इस जीवन-दर्शन का सार निम्नलिखित कथनों में निहित है:चार्वाक शब्द की उत्पति ‘चारु’+’वाक्’ (मीठी बोली बोलने वाले) से हुई है. इन लोगों की खासियत है कि यह लोगों से झूठे वादे करके सिर्फ अपना ही भला करने में लगे रहते है। चाहे यह किसी भी धर्म या दल से सम्बंधित क्यों न हों . चार्वाक का कथन है कि ,
“यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् ।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।।
खाओ-पिओ मौज करो, और उसके लिए सब कुछ जायज है’ की नीति पर चलते हैं । उनके लिए सुखप्राप्ति एकमेव जीवनोद्येश्य रहता है । कोई भी कर्म उनके लिए गर्हित, त्याज्य या अवांछित नहीं होता है । और ऐसे जनों की इस धरती पर कोई कमी नहीं होती है ।
मेरा अपना आकलन है कि इस दुनिया में 90 प्रतिशत से अधिक लोग चार्वाक सिद्धांत के अनुरूप ही जीवन जीते हैं । यद्यपि वे किसी न किसी आध्यात्मिक मत में आस्था की बात करते हैं, किंतु उनकी धारणा गंभीरता से विचारी हुई नहीं होती, महज सतही होती है, एक प्रकार का ‘तोतारटंत’, एक प्रकार की भेड़चाल में अपनाई गयी नीति । चूंकि दुनिया में लोग ऐसा या वैसा मानते हैं, अतः हम भी मानते हैं वाली बात उन पर लागू होती है । अन्यथा तथ्य यह है कि प्रायः हर व्यक्ति इसी धरती के सुखों को बटोरने में लगा हुआ है । अनाप-शनाप धन-संपदा अर्जित करना, और भौतिक सुखों का आनंद पाना यही लगभग सभी का लक्ष्य रह गया है । मानव समाज में जो भी छोटे-बड़े अपराध देखने को मिलते हैं वे अपने लिए सब कुछ बटोरने की नियत से किये जाते हैं । हमारे कृत्य से किसी और को क्या कष्ट होगा इसका कोई अर्थ नहीं है । मेरा काम जैसे भी निकले वही तरीका जायज है की नीति सर्वत्र है
2-भोगवाद ही सेकुलरिज्म है
भोगवाद ,चरम स्वार्थपरायण मानसिकता और अय्याशी ही नास्तिक होने की निशानी है , चाहे ऐसे व्यक्ति किसी भी धर्म से सम्बंधित हों .चार्वाक की उस समय कही गयी बातें आजकल के लोगों पर सटीक बैठती हैं ,चार्वाक ने कहा था ,
न स्वर्गो नापवर्गो वा नैवात्मा पार्लौकिकः
नैव वर्नाश्रमादीनाम क्रियश्चफल्देयिका .
अर्थ -न कोई स्वर्ग है ,न उस् जैसा लोक है .और न आत्मा ही पारलौकिक वस्तु है .और अपने किये गए सभी भले बुरे कर्मों का भी कोई फल नहीं मिलता अर्थात सभी बेकार हो जाते हैं .
अय्याशी करना भी इन लोगों की निशानी है , ऐसे लोग औरतों को भोगने की वस्तु मानते है , और निर्लज्ज होकर कुकर्म करते है , चार्वाक का कथन है कि ,
“मातृयोनि परित्यज विहरेत सर्व योनिषु ”
अर्थात -तुम सिर्फ अपनी माँ को छोड़कर सभी के साथ सहवास कर सकते हो.
3-यूनानी सेकुलर
भारत की तरह यूनान (Greece ) भी एक प्राचीन देश है ,और वहां की संस्कृति भी काफी समृद्ध थी .वहां भी नास्तिक लोगों का एक बहुत बड़ा समुदाय था .जिसे एपिक्युरियनिस्म (Epicureanism)कहा जाता है .जिसे ईसा पूर्व 307 में एपिक्युरस (Epicurus)नामके एक व्यक्ति ने स्थापित किया था .ग्रीक भाषा में ऐसे विचार को “एटारेक्सिया (Ataraxia Aταραξία )भी कहा जाता है .इसका अर्थ उन्माद , मस्ती ,मुक्त होता है .इस दर्शन (Philosophy ) का उद्देश्य मनुष्य को हर प्रकार के नियमों , मर्यादाओं .और सामाजिक . कानूनी बंधनों से मुक्त कराना था .ऐसे लोग उन सभी रिश्ते की महिलाओं से सहवास करते थे . जिनसे शारीरिक सम्बन्ध बनाना पाप और अपराध समझा जाता था .
ऐसे लोग जीवन को क्षणभंगुर मानते थे .और मानते थे कि जब तक दम में दम है हर प्रकार का सुख भोगते रहो .क्योंकि फिर मौका नहीं मिलेगा .जब इन लोगों को स्वादिष्ट भोजन मिल जाता था तो यह लोग इतना खा लेते थे कि इनके पेट में साँस लेने की जगह भी नहीं रहती थी . तब यह लोग उलटी करके पेट खाली कर लेते थे .स्वाद लेने के लिए फिर से खाने लगते थे
4-भारत के सेकुलर
सेकुलर प्राणियों की एक ऐसी प्रजाति है ,अनेकों प्राणियों गुण पाए जाते हैं .गिरगिट की तरह रंग बदलना , लोमड़ी की तरह मक्कारी ,कुत्तों की तरह अपने ही लोगों पर भोंकना ,अजगर की तरह दूसरों का माल हड़प कर लेना .और सांप की तरह धोके से डस लेना .इसलिए ऐसे प्राणी को मनुष्य समझना बड़ी भारी भूल होगी . ऐसे लोग पाखंड और ढोंग के साक्षात अवतार होते हैं .दिखावे के लिए ऐसे लोग सभी धर्मों को मानने का नाटक करते हैं, लेकिन वास्तव में इनको धर्म या ईश्वर से कोई मतलब नहीं होता . अपने स्वार्थ के लिए यह लोग ईश्वर को भी बेच सकते हैं .ना यह किसी को अपना सगा मानते है .और न कोई बुद्धिमान इनको अपना सगा मानने की भूल करे .
वास्तव में आजकल के सेकुलर ही नास्तिक हैं .बौद्ध और जैन नहीं .मुलायम सिंह , लालू प्रसाद ,दिग्विजय सिंह ,और अधिकांश कांगरेसी सेकुलर- नास्तिक है .क्योंकि लोकयतों और यूनानी एपिक्यूरान लोगों के सभी कुलक्षण वर्त्तमान सेकुलर लोगों में मौजूद है . अंत में हम एक श्लोक दे रहे हैं ,
“खात्वा खात्वा देश सम्पदा यावत् किंचित शिष्यते ,
सपरिवार सदा खात्वा न्यायालय किं करिष्यति ?
अर्थात -देश की सम्पदा तब तक खाओ जब तक कुछ भी बाकी रहे ,और अपने परिवार सहित खूब खाओ , कानून क्या करेगा
. बताइये कि वास्तव में सेकुलरों के यही कुलक्षण हैं कि नहीं ?
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