द्रोपदी हों या नुपुर शर्मा जब एक नारी के अपमान पर समाज मौन धारण कर लेता है तो निश्चित ही महाभारत का वो युद्ध होता है , जिसमे आंतरिक राक्षस हों या अंतरराष्ट्रीय राक्षस , धर्म के समक्ष सब की पराजय ही होती है । आज भारत के बहुसंख्यक समाज को गम्भीरता से सोचना पड़ेगा जब बहुसंख्यक हिन्दू समाज की एक बेटी नुपुर को बलात्कार करने की , उसके परिवार की हत्या करने की चेतावनी दी जा सकती है । उस बिटिया के विरुद्ध मुस्लिम देशों द्वारा भारत सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दवाब बनाकर कार्यवाही करवाई जा सकती है ।तो आने वाले उस समय में क्या होगा जब वर्तमान का बहुसंख्यक भविष्य का अल्पसंख्यक बन जाएगा । भारत में महादेव के शिवलिंग को गुप्तांग कहना , हिन्दू देवियों पर अभद्र टिप्पणी करना , मंदिरों को खंडित करना , शोभा यात्राओं पर प्रहार करना ईशनिंदा नही है परन्तु मुस्लिम समाज की किताबों पर तर्कसंगत चर्चा करना ईशनिंदा है । भारत का हिन्दू समाज कब तक मजहबी धमकी व कमलेश तिवारी की निर्मम हत्याओं जैसी घटनाओं से डरकर सहमा रहेगा । यदि नूपुर शर्मा द्वारा कही गयी किसी भी बात में कोई असत्यता है तो लोकतांत्रिक तरीके से तर्कसंगत बात होनी चाहिए जिससे समाज को भी स्पष्टता प्राप्त हो सके । भारत एक लोकतांत्रिक देश है कतर की तरह कोई शरीयत कानून वाला इस्लामिक देश नही , जो भारत के
राजदूत को बुलाकर भारत सरकार से माफी की मांग कर सके । यदि नुपुर शर्मा पर इस्लामिक दबाव के चलते कोई भी कार्यवाही होती है तो निश्चित ही यह भारत के लोकतंत्र की पराजय व शरीयत कानून की जीत होगी । क्योंकि अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलकर कोई भी एक पक्षीय कार्यवाही करना सशक्त लोकतंत्र का प्रमाण नहीं हो सकता । इस तरह तो किसी भी मौलाना के अपमानजनक शब्दों का विरोध करना दंडनीय अपराध बन जाएगा । किसी भी राजनीतिक दल का प्रवक्ता कुछ भी तथ्य रखने का साहस ही नहीं कर पाएगा । यह देश अब लोकतंत्र से चलेगा या शरीयत से यह देश के बहुसंख्यक समाज को तय करना होगा । क्योंकि प्रत्येक बात पर ईशनिंदा का आरोप लगाकर हत्या करना , बलात्कार करने की धमकी देना , शासन व प्रशासन को धता बता देना यह सब शरीयत के ही लक्षण हैं।
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