आचार्य अपने आचरण से छात्रों को सदाचरण की शिक्षा देता हैः डा. सोमदेव शास्त्री

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ओ३म्
-गुरुकुल पौंधा देहरादून का 22वां वार्षिकोत्सव सोल्लास सम्पन्न-

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देहरादून स्थित गुरुकुल पौंधा का तीन दिवसीय 22वां वार्षिकोत्सव आज दिनांक 5-6-2022 को सोल्लास सम्पन्न हुआ। आज की मुख्य विशेषता यह थी आयोजन में एम.डी.एच. मसालों के स्वामी महाशय राजीव गुलाटी जी के प्रतिनिधि श्री अनिल अरोड़ा जी पधारे और उन्होंने बताया कि महाशय राजीव गुलाटी जी अपनी ओर से गुरुकुल के भोजन आदि कार्यों का पोषण करेंगे। आर्यसमाज के नेता श्री आर्यवेश भी समारोह में उपस्थित थे। प्रमुख विद्वानों में डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. योगेन्द्र याज्ञिक, डा. सूर्यादेवी चतुर्वेदा, डा. आचार्या अन्नपूर्णा, पं. इन्द्रजित् देव, आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री, पं. नरेशदत्त आर्य, पं. दिनेश पथिक, पं. कुलदीप आर्य, पं. दधीचि, पं. ऋषिराज जी, ब्रह्मचारी सौरभ आर्य आदि विद्वान एवं भजनोपदेशक उपस्थित थे जिनके व्याख्यानों एवं भजनों से श्रोताओं को ज्ञान से पूर्ण व्याख्यान एवं भक्ति गीत सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आयोजन में अनेक पुस्तकों का विमोचन हुआ, अनेक विद्वानों का सम्मान हुआ, गुरुकुल के स्नातकों के सम्मान सहित आचार्यों का सम्मान भी किया गया। लोगों ने अपनी अपनी सामथ्र्य एवं भावना के अनुरूप गुरुकुलीय शिक्षा को सफल करने के लिए अर्थदान भी दिया। आयोजन में अनेक पुस्तक एवं उपयोगी सामग्रियों के विक्रेता बन्धु भी पधारे थे। गुरुकुल में पधारे अतिथियों के लिये भोजन एवं आवास की उत्तम व्यवस्था की गई थी। सभी आये अतिथियों ने गुरुकुल में दुर्लभ सत्संग का लाभ उठाया और सन्ध्या एवं यज्ञ करने सहित वैदिक साहित्य के स्वाध्याय की प्रेरणा ग्रहण की। कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा।

दिनांक 5-6-2022 को समापन दिवस पर प्रातः सामवेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति की गई। यज्ञ पांच वेदियों में सम्पन्न किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा आर्यसमाज के सुप्रसिद्ध विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई थे। यज्ञ में गुरुकुल के आचार्य डा. यज्ञवीर जी भी आरम्भ से समाप्ति तक उपस्थित रहे और उन्होंने वेदमन्त्रों पर आधारित सदुपदेश किया। गुरुकुल के चार ब्रह्मचारियों ने निरन्तर तीन दिन तक सामवेद के मन्त्रों का पाठ कर यजमानों से यज्ञ में आहुतियां डलवायीं। यज्ञ की समाप्ति पर यज्ञ प्रार्थना की गई। ब्रह्मा जी ने सभी यजमानों तथा ऋषिभक्तों को वैदिक वचन बोलकर आशीर्वाद प्रदान किया। यज्ञ के ब्रह्मा डा. सोमदेव शास्त्री ने इस अवसर पर कहा कि तीन दिनों से चला आ रहा सामवेद पारायण यज्ञ आज समाप्त हुआ। उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा कि ईश्वर सब यजमानों पर हर क्षण और हर पल सुखों की वर्षा करते रहें। ईश्वर धरती जैसी सहनशीलता हमें प्रदान करें। हम सभी के मनों में उदारता हो। हम सब ऐश्वर्य सम्पन्न हों। सूर्य व चन्द्र की तरह हम भी लोगों को प्रेरणा दें सकें। परमात्मा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हम सब नित्य प्रति यज्ञादि शुभ कर्म करते रहें। इन वचनों के साथ आचार्य धनंजय जी और गुरुकुल के आचार्य शिवकुमार जी ने सभी यजमानो ंतथा यज्ञशाला में उपस्थित ऋषिभक्तों पर जल के छींटे दिए। यज्ञ के पश्चात गुरुकुल के उत्सव का आयोजन जिसमें मुख्यतः विद्वानों के उपदेश, भजन एवं विद्वानों का सम्मान आदि कार्य सम्पन्न किये गये, आरम्भ हुआ। कार्यक्रम के आरम्भ मंः आर्य भजनोपदेशक महाशय दधीचि जी का एक भजन हुआ। उन्होंने तन्मय होकर भजन गाया। भजन के बोल थे ‘तुझे मानव बनाया था तू क्या बन गया, तूने अपने जीवन को सुधारा नहीं।’ कार्यक्रम का संचालन डा. रवीन्द्र आर्य जी ने बहुत योग्यतापूर्वक एवं प्रभावशाली ढंग से किया।

सत्संग में स्वामी श्रद्धानन्द, आचार्य गुरुकुल, गोमत, अलीगढ़ का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली के संस्कारों से मनुष्य राष्ट्रवादी होने के साथ उच्च गुणों से युक्त बनता है। अंग्रेजों ने गुरुकुलों पर प्रतिबन्ध लगाया। उन्होंने कहा कि स्वामी प्रणवानन्द जी द्वारा 8 गुरुकुलों का संचालन करना एक साहसिक कदम है। संसार की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत को बचाने में गुरुकुलों का योगदान महत्वपूर्ण है। स्वामी जी ने कहा कि यदि हमें वेद, उपनिषद, दर्शन आदि वैदिक साहित्य की रक्षा करनी है तो हमें गुरुकुलों की रक्षा करनी होगी। विश्व के लगभग 100 विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है। स्वामी जी ने कहा कि गुरुकुलों का मुख्य उद्देश्य मानव का निर्माण करना है। हमारे गुरुकुलों में वेदपाठी तथा संस्कृत बोलने वाले विद्वान बनाये जाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि गुरुकुल का विद्यार्थी सब प्रकार के कार्यों को कर सकता है। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए स्वामी श्रद्धानन्द जी ने कहा कि यदि मानवता को बचाना है तो हमें गुरुकुलों को सब प्रकार का सहयोग देना होगा।

स्वामी श्रद्धानन्द जी के बाद सहारनपुर से पधारे वैदिक विद्वान आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी का उद्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि गुरुकुल शब्द का अर्थ गुरु का परिवार होता है। जो मनुष्य सदाचार को ग्रहण कराता है उसे आचार्य कहते हैं। आचार्य का जीवन व उसकी क्रियायें बोलती हैं अर्थात् शिक्षा देती हैं। आचार्यों का सम्मान करना अनिवार्य होना चाहिये। किसी मनुष्य का विद्या को प्राप्त होकर आचार्य बनना महत्वपूर्ण कार्य है। मनुष्य को संस्कार मिलना गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति में ही सम्भव है। वीरेन्द्र शास्त्री जी ने आचार्य की महत्ता बताई। आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री ने कहा कि एक कमिश्नर का पुत्र एक अध्यापक से ट्यूशन पढ़ता था। एक दिन वह अध्यापक घर आया तो कमिश्नर ने उस अध्यापक को झुक कर अभिवादन किया। लोगों द्वारा पूछने पर उसने कहा कि मेरा पुत्र इस घटना को देखकर अपने अध्यापक का सम्मान करेगा, इस दृष्टि से मैंने ऐसा किया है। आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी ने कहा कि संस्कार केवल गुरुकुलों में ही मिलते हैं। सरकारी स्कूलों में संस्कारों से रहित शिक्षा मिलती है। आचार्य जी ने कहा कि वेद विद्या के लिए दिया गया दान उत्तम दान होता है। सभी ऋषिभक्तों को गुरुकुलों का सहयोग करने का आह्वान भी शास्त्री जी ने अपने व्याख्यान के अन्त में किया।

डा. रघुवीर वेदालंकार जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि यहां गुरुकुल में ज्ञान की गंगा बह रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यहां उपस्थित लोग अपने घरों को जाते समय अपने मन में सुख व शान्ति का अनुभव करेंगे। आचार्य रघुवीर वेदालंकार जी ने कहा कि परमात्मा ने हमें कर्म करने के लिये भेजा है। उन्होंने कहा कि हमें कर्म करते हुए व्याप्त होना है। आचार्य जी ने कहा कि यदि हम सामाजिक हित के कार्यों को निःस्वार्थ भाव से नहीं करेंगे तो हमारा नाम व्यापक नहीं होगा। उन्होंने कहा कि गुरुकुल वाले ऐसे ही कार्य करते हैं। डा. रघुवीर वेदालंकार जी के बाद डा. सोमदेव शास्त्री जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि मां के विचारों के अनुरूप गर्भस्थ शिशु के विचार बनते हैं। आचार्य सोमदेव शास्त्री जी ने गुरुकुलीय शिक्षा के स्वरूप पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जीवन को श्रेष्ठ बनाने का कार्य गुरुकुल के आचार्य करते हैं। मनुष्य जीवन का विकास व उन्नति आत्मिक शक्ति के द्वारा भी होती है। उन्होंने कहा कि आत्मिक शक्ति और आध्यात्मिक शक्ति दोनों एक हैं। गुरुकुल का आचार्य अपने आचरण से अपने छात्र व छात्राओं को सदाचरण की शिक्षा देता है। आचार्य हर समय अपने शिष्यों की हर प्रकार से उन्नति के प्रति सजग रहता है। गुरुकुलों में ही आचार्य अपने छात्र के पूर्ण विकास के लिए चिन्ता करता है व उसे सफल करता है। उन्होंने कहा कि मानव निर्माण में गुरुकुलों का महनीय योगदान है।

उत्सव में पधारी विदुषी आचार्य डा. सूर्यादेवी जी ने कहा कि हमारी बुद्धि ज्ञान से सम्पन्न होनी चाहिये। हमारी प्रज्ञा के अनुसार हमारा कार्य होना चाहिये। उन्होंने कहा कि जहां सब मिल जुल कर रहते हैं उसे कुल कहते हैं। हमं परिवार में संगठित होकर रहना आना चाहिये। अपनी इन्द्रियों को हमें हमेशा ही धर्म में लगाना चाहिये। इन्द्रियों को धर्म में रखना तथा अधर्म से हटाना भी हमारा कर्तव्य है। आचार्या जी ने कहा कि हमें पराक्रमी होना चाहिये। आचार्या सूर्या देवी जी के व्याख्यान के बाद पं. नरेशदत्त आर्य जी का एक भजन हुआ। उनके गाये भजन के बोल थे ‘जिन पुरुषों का मन करता है विद्या में विलास, उनके मन में हो जाता है प्रकाश, करते हैं जो अविद्या का नाश वो धन्य है।’

युवा वैदिक विद्वान आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक, गुरुकुल होशंगाबाद ने अपने सम्बोधन में कहा कि मनुष्य को अपने स्वभाव को सदुपदेशों का श्रवण करने वाला बनाकर रखना चाहिये। आचार्य जी ने कहा कि मानवता की रक्षा तथा देश की दुर्गति को रोकने का दूसरा उपाय नहीं है। दुर्गति को हम आर्यसमाज के द्वारा वेद प्रचार कर कम व दूर कर सकते हैं। आचार्य जी ने ऋषि शब्द के बारे में विचार प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि जिनके जीवन से रजोगुण व तमोगुण दूर हो गये हैं, असत्य जिनके जीवन में नहीं है तथा परोपकार जिनके जीवन में है, ऐसे अनेकानेक गुण व अन्य सभी गुणों से युक्त मनुष्य का नाम ऋषि है। ऋषि पहले अर्थ को जान लेता है। वह अर्थ के अनुसार शब्द का निर्माण कर देता है। आचार्य जी ने कहा कि विश्वामित्र जी पहले स्वयं ऋषि बने, अपने पिता सहित अपनी पांच पीढ़ियों को ऋषि बनाया। उन्होंने कहा कि पूर्व काल में ऋषि सबसे श्रेष्ठ व आदरणीय माना जाता था। आचार्य जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने अविद्या को शोक का कारण बताया है। उन्होंने बताया कि अग्नि में सूर्य के गुण अधिक हैं। इसलिये अग्नि नीचे की ओर न जाकर सूर्य की ओर जाती है। यह हमारे ऋषियों का ज्ञान है। इसी को आर्ष कहते हैं। आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक जी ने कहा कि गुरुकुल के जो स्नातक अपनी शिक्षा पूरी कर सरकारी कार्यों में नियुक्तियां प्राप्त कर लेते हैं उनका कर्तव्य है कि वह वर्ष में एक बार एक महीने के लिए गुरुकुल आकर छोटे विद्यार्थियों को पढ़ाया करें। इसके बाद आचार्य योगेन्द्र याज्ञिक को पं. राजवीर शास्त्री सम्मान से अलंकृत किया गया।

गुरुकुल के उत्सव में प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी आर्यवेश जी का भी सम्बोधन हुआ। उन्होंने कहा कि जब तक देश में गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को पूरी तरह से लागू नहीं किया जायेगा तब तक भारत विश्वगुरु का स्थान प्राप्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि किसी मत ने मानव के निर्माण की योजना हमें नहीं दी है। स्वामी आर्यवेश जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने संस्कार विधि ग्रन्थ को लिखकर हमें मानव निर्माण की योजना दी है। स्वामी जी ने सोलह संस्कारों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बच्चे वैसे बनते हैं जैसा वह सुनते, देखते हैं तथा दूसरों की संगति उनको मिलती है। स्वामीजी ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने बच्चे के जन्म से पूर्व ही माता के गर्भ में संस्कारों का विधान किया है। स्वामी जी ने सीमन्तोनयन संस्कार पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा गर्भस्थ शिशु की मां के मन तथा बुद्धि का बच्चे के मन व बुद्धि पर प्रभाव पड़ता है। स्वामी जी ने आगे कहा कि गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली में अध्ययन करने पर बच्चे के पूर्वजन्म के बुरे संस्कार कमजोर पड़ कर गुरुकुल में प्राप्त हुए वेदों के संस्कार आगे जा जाते हैं। ऐसे मनुष्यों से समाज की उन्नति अधिक अच्छी होती है। स्वामी जी ने तप व दीक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सब ब्रह्मचारियों को गुरुकुलों में तपस्वी बनाया जाता है। आचार्य विद्यार्थी को विद्या पूरी होने पर दीक्षा देता है। महाभारत व पूर्व काल में सबसे योग्य स्नातक ब्राह्मण कहलाते थे, उनसे कम योग्य क्षत्रिय तथा इनसे कम विद्या व सामथ्र्य वाले छात्रों को वैश्य व शूद्र आदि का वर्ण दिया जाता था। स्वामी जी ने उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे गुरुकुलों का एक विद्यार्थी श्री आनन्द कुमार आईपीएस परीक्षा उत्तीर्ण करके गृह मन्त्रालय में एक उच्च पदस्थ अधिकारी के गरिमापूर्ण पद तक पहुंचे थे। स्वामी जी ने कहा कि जो मनुष्य आत्मा परमात्मा को नहीं जानता, देश के गौरवपूर्ण इतिहास को नहीं जानता तथा जो सत्यनिष्ठ नहीं है, ऐसे मनुष्य के बड़ा अधिकारी बन जाने पर भी उससे लाभ कम तथा हानि अधिक होती है। स्वामी जी ने गुरुकुलों के विस्तार के सुझाव दिए। उन्होंने गुरुकुलीय शिक्षा को समर्पित स्वामी प्रणवानन्द जी के देश, धर्म तथा संस्कृति के प्रति समर्पण को नमन किया।

कार्यक्रम में गुरुकुल के प्रतिभाशाली छात्रों का परिचय भी दिया गया। अनेक प्रतिभाशाली छात्रों का अभिनन्दन किया गया। गुरुकुल ने अपने आचार्यों एवं ब्रह्मचारियों के सहयोग से प्रकाशित संस्कृत, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा के एक त्रिभाषा-कोश का लोकार्पण किया। गुरुकुल के उत्सव में आज एमडीएच मसालों के स्वामी श्री राजीव गुलाटी जी को आना था। वह अपनी व्यवस्तताओं के कारण गुरुकुल में नहीं पहुंच सके। उन्होंने अपने विशेष प्रतिनिधि श्री अनिल अरोड़ा जी को गुरुकुल भेजा। आचार्य धनंजय जी तथा स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने श्री राजीव गुलाटी जी तथा श्री अनिल अरोड़ा जी के गुरुकुल के प्रति प्रेम एवं सहयोग की भावनाओं को रेखांकित किया। आचार्य धनंजय जी ने बताया कि श्री राजीव गुलाटी जी ने गुरुकुल के पोषण में सभी प्रकार से सहायता का आश्वासन दिया है। हम उनका आभार व्यक्त करते हैं। गुरुकुल की ओर से श्री अनिल अरोड़ा का विधिपूर्वक सम्मान वा अभिनन्दन किया गया। आज की सभा में विदुषी आचार्य डा. अन्नपूर्णा जी सहित ठाकुर विक्रम सिंह जी तथा गुरुकुल के क्षेत्र के विधायक श्री सहदेव पुण्डीर जी के सम्बोधन भी हुए। आयोजन की समाप्ति के बाद गुरुकुल के छात्रों ने व्यायाम-सम्मेलन में अनेक प्रकार के व्यायाम प्रदर्शित किये। सभी अतिथियों के लिए आज विशेष भोजन की व्यवस्था की गई थी। अनेक प्रकार की सामग्री एवं पुस्तकों के स्टाल भी गुरुकुल परिसर में लगाये गये थे जहां से आगन्तुक अतिथियों ने खरीदारी की। बहुत बड़ी संख्या में वैदिक धर्म एवं संस्कृति के प्रेमी एवं अनुयायी गुरुकुल के उत्सव में पधारे। देहरादून की सभी आर्यसमाजों के अधिकारी एवं सदस्य भी उत्सव में पधारे और उत्सव को सफल बनाया। गुरुकुल की ओर से स्वामी प्रणवानन्द सरसवती जी तथा आचार्य डा. धनंजय जी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद किया है। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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