ओ३म्
-गुरुकुल पौंधा के उत्सव का दूसरा दिवस
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देहरादून स्थिति गुरुकुल पौंधा का 22वां वार्षिकोत्सव प्रगति पर है। दिनांक 4-6-2022 को उत्सव का दूसरा दिन था। इस दिन प्रातः सामवेद वेदपारायण यज्ञ पांच यज्ञ-वेदियों में किया गया। 4 ब्रह्मचारियों ने वेदमन्त्रों का पाठ किया। यजमानों ने स्वाहा बोलकर यज्ञ में आहुतियां प्रदान की। यज्ञ के ब्रह्मा डा. सोमदेव शास्त्री, मुम्बई थे। यज्ञ का संचालन गुरुकुल के विद्वान आचार्य डा. यज्ञवीर जी कर रहे थे। यज्ञशाला एवं उसके सामने का भाग ऋषिभक्त-यज्ञप्रेमियों से भरा हुआ था। यज्ञ के ब्रह्मा जी भी यज्ञ के मध्य आवश्यकता होने पर उपदेश कर रहे थे। ब्रह्मा जी ने डा. यज्ञवीर जी से भी वेदोपदेश करने को कहा। डा. यज्ञवीर जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि वेदमन्त्र का अर्थ जानने वाला मनुष्य ही कल्याण को प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि देव उन मनुष्यों को कहते हैं जो दूसरे को अपने स्वामित्व की वस्तुएं व धन आदि पदार्थ देते रहते हैं। आचर्य यज्ञवीर जी ने कहा कि कवि क्रान्तदर्शी को कहते हैं। कवि का अर्थ होता है कि जो दूर तक देखता है। आचार्य जी ने श्रोताओं को कहा कि वह सब वेदों की शिक्षाओं को जाने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। यज्ञ के ब्रह्मा डा. सोमदेव जी ने कहा कि यज्ञवेदि में अग्नि यज्ञ पूर्ण होने तक प्रज्जवलित रहनी चाहिये। हम यज्ञ में जो आहुतियां दे रहे हैं वह अग्नि में जल कर सूक्ष्म हो जानी चाहियें। यज्ञ में धुआं नहीं होना चाहिये। इन बातों का ध्यान सभी यजमानों को रखना चाहिये। यज्ञ पूर्ण होने के बाद गुरुकुल के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी का उपदेश हुआ।
स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने कहा कि चार वेदों में सब सत्य विद्यायें बीज रूप में निहित हैं। वेदों में प्रश्नोत्तर विद्या भी है। स्वामी जी ने प्रश्न किया कि भुवन की नाभि क्या है? उन्होंने वेदमन्त्र बोलकर उत्तर दिया कि यह यज्ञ ही इस लोक की नाभि है। स्वामी जी ने कहा कि नाभि केन्द्र बिन्दु को कहते हैं। हमारे शरीर का केन्द्र बिन्दु नाभि ठीक रहना चाहिये। उन्होंने कहा कि जिस मनुष्य की नाभि अपने ठीक स्थान पर नहीं है, अपने स्थान से इधर उधर खिसक गई है, वह मनुष्य स्वस्थ नहीं रह सकता। स्वामी जी ने कहा कि हमारे आंख, कान व नाक आदि हमारे शरीर में देव हैं। शरीर के सभी देवों को यज्ञ करके प्रबुद्ध रखना चाहिये। ऐसा करने से यजमान की आयु, प्राणशक्ति तथा धन-धान्य व सम्पत्ति आदि में वृद्धि होगी। बच्चे अच्छे संस्कारों से युक्त होंगे। स्वामी जी ने कहा कि हमारे घरों में गाय, घोड़ा, ऊंट, हाथी, कुत्ता व बिल्ली आदि पशु भी होने चाहिये। स्वामी जी ने गुरुकुल के उत्सव में पधारे स्त्री पुरुषों को यहां से संस्कार लेकर जाने को कहा। उन्होंने लोगों को पाखण्डों और अन्धविश्वासों से दूर रहने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि जो मनुष्य शुभ काम करता है उसका पतन नहीं होता। स्वामी जी ने सभी अतिथियों को साधुवाद एवं बधाई दी। गुरुकुल के आचार्य डा. धनंजय जी ने जानकारी दी कि स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के द्वारा हैदराबाद में एक नया गुरुकुल चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ किया गया है। उन्होंने अन्य सूचनायें भी सभा में दी। इसके बाद शान्ति पाठ कर यज्ञोपासना के सत्र का समापन किया गया।
उत्सव का अगला सत्र प्रातः 10.30 बजे आरम्भ हुआ। प्रथम भजनोपदेशक श्री ऋषिपाल जी ने तीन भजन सुनाये। उनका गाया एक भजन था ‘कर भजन ईश्वर का सुख पाने के लिए’। केरल में संचालित गुरुकुल के आचार्य श्री हीराप्रसाद शास्त्री जी ने भी एक भजन प्रस्तुत किया। इस भजन के बोल थे ‘कर दूर दुरित जगत के भद्र गुणों को पास बुलाओगे, मन मन्दिर में सत्संग लगा तब दर्शन ईश्वर के पाओगे।’ इस भजन के बाद व्याख्यान एवं भजनों का कार्यक्रम आरम्भ हआ। आज के व्याख्यानों का विषय था ‘राष्ट्र निर्माण में हमारी भूमिका’। कार्यक्रम का संचालन गुरुकुल के पूर्व स्नातक डा. रवीन्द्र कुमार जी आर्य ने किया। पहला व्याख्यान देते हुए गुरुकल गोमत, उत्तर प्रदेश के आचार्य स्वामी श्रद्धानन्द जी ने गुरुकुल को तीर्थ स्थल बताया। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज वर्णव्यवस्था को मानता है। वैदिक समाज व्यवस्था वर्णों पर आधारित है। इन वर्णों की भूमिका राष्ट्र निर्माण में सहायक हो सकती है। स्वामी जी ने कहा कि जब सब वर्णों के लोग अपनी भूमिका का पालन करेंगे तो राष्ट्र का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्र देश के सब लोगों का है। स्वामी जी ने बताया कि राष्ट्र निर्माण में पहली बाधा ज्ञान की बाधा है। ज्ञान व विज्ञान की भूमिका राष्ट्र निर्माण में प्रमुख है। इसकी पूर्ति ब्राह्मण अपनी भूमिका ठीक निभाकर पूरी कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में ज्ञान को बढ़ाना चाहिये। राष्ट्र की दूसरा बाधा अभाव की है। अभाव होने से राष्ट्र में अराजकता फैलती है। वैश्यों को अभाव को दूर करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि राष्ट्र की तीसरी बाधा अन्याय की है। राष्ट्र में किसी से भी अन्याय नहीं होना चाहिये। क्षत्रियों का काम अन्याय को दूर करना है। अध्यापक ब्राह्मण की भमिका में होते हैं। हमें राष्ट्र को बदमान करने वाले काम नहीं करने चाहिये। स्वामी जी ने जापानियों के देशक्ति के कार्यों की सराहना की। स्वामी जी ने कहा कि मां और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान होती हैं। हमारी संस्कृति वैदिक संस्कृति है और यह संसार में सबसे प्राचीन है। वैदिक धर्म से प्राचीन मत व धर्म कोई नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि संस्कृति को धारण करने से राष्ट्र का निर्माण होगा। स्वामी जी ने अपने व्याख्यान में अन्य भी अनेक महत्वपूर्ण बाते कहीं। उनके बाद श्री मलखान सिंह जी ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘तुझे मनवा जिसकी तलाश है अति निकट तेरे उसका तो वास है।’
श्री योगेन्द्र याज्ञिक, होशंगाबाद ने अपने व्याख्यान में बताया कि देश की आजादी के बाद पत्रकारों से पूछने पर प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद जी ने कहा था कि वह अपने देश के प्रत्येक नागरिक को चरित्रवान देखना चाहते हैं। ऐसा होने पर देश का निर्माण व विकास अपेक्षा के अनुरूप हो सकेंगे। श्री याज्ञिक जी ने कहा कि पांच हजार वर्ष पूर्व का भारत उन्नति की सर्वोच्च स्थिति में था। उन्होंने कहा कि राजा हरिश्चन्द्र तथा राजा कर्ण जैसे दानी राजा हमारे देश में हुए। आचार्य याज्ञिक जी ने कहा कि उन्नति की सीमा होती है परन्तु अवनति की सीमा नहीं होती। उन्होंने कहा कि आज कोई अपने कर्तव्य का निर्वाह करने को तैयार नहीं है। देश की व्यवस्था को देशवासियों को ही सुधारना होगा। राष्ट्र की उन्नति तब होगी जब देश का प्रत्येक नागरिक अपने कर्तव्य को समझेगा और उसका पालन करेगा। आचार्य याज्ञिक जी ने कहा कि इतिहास में हमारा नाम राष्ट्र को बनाने वाले लोगों में होना चाहिये। हमारा नाम राष्ट्र को बरबाद करने वाले लोगों में नहीं होना चाहिये। इसलिये हमें राष्ट्र निर्माण के कार्यों को ही करना चाहिये। आचार्य जी ने लोगों को अपनी संस्कृति का पालन करने को कहा। उन्होंने श्रोताओं को जापानियों की देशभक्ति के किये जाने वाले कार्यों का भी परिचय दिया। उन्होंने कहा कि जापान के लोग साधारण किस्म का चावल खाते हैं क्योंकि उनके देश में वही चावल होता है। श्री योगेन्द्र याज्ञिक जी ने अपने देश की खाने पीने की स्वदेशी चीजों पर गौरव करने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि अपने परम्परागत स्वदेशी भोजन पर गौरव कीजिए। अपनी मातृभाषा एवं हिन्दी व संस्कृत पर भी गौरव कीजिए।
आचार्या कल्पना आर्या जी ने भी सभा को सम्बोधित किया। आरम्भ में उन्होंने गायत्री मन्त्र का पाठ कराया। उन्होंने कहा कि हमें देश तथा समाज की समस्याओं के समाधान के लिये आचार्य चाणक्य के विचारों से सहायता लेनी चाहिये। आचार्या जी ने कहा कि आचार्य चाणक्य जी के अनुसार यदि हमारे सामने समस्यायें हैं, उन समस्याओं की जो मनुष्य अनदेखी करते हैं, उन समस्याओं पर ध्यान नहीं देते वह अविद्वान तथा मूर्ख होते हैं। बहिन जी ने देश के सामने आसन्न संकटों से श्रोताओं का परिचय कराया और कहा कि यदि राष्ट्र को बचाना है तो कुछ करने के लिए कमर कस लीजिए। आचार्या कल्पना जी ने कहा कि हमें अपने राष्ट्र तथा समाज की चिन्ता करनी चाहिये तथा जो बातें हमारी जाति के वर्तमान एवं भविष्य को बिगाड़ने वाली हैं, उनके समाधान के लिये प्रयत्न करने चाहियें। डा. रवीन्द्र कुमार जी ने राजधर्म हमें क्या प्रेरित करता है, इस विषय पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किये।
सत्र की समाप्ति से पूर्व पं. आर्य भजनोपदेशक श्री नरेशदत्त आर्य जी ने दो भजन प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि जिस देश में पक्षपात होता है उस देश की उन्नति नहीं होती। आर्य जी ने पक्षपात के उदाहरण भी दिये। इसी के साथ प्रातःकालीन यज्ञ एवं सत्संग का सत्र समाप्त हुआ। इसके बाद अपरान्ह 3.30 बजे पुनः यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ के बाद श्री योगेन्द्र याज्ञिक जी का वैदिक समाजवाद विषय पर एक प्रभावशाली व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि मनुष्यों के समुदाय को समाज कहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मनुष्यों का बिना प्रयोजन किसी एक स्थान पर इकट्ठा होना समाज नहीं कहलाता। उन्होंने यह भी बताया कि प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिन्स ने एक कार्यक्रम में कहा था कि मनुष्य की सबसे बड़ी खोज यह की कि उसने मनुष्य समाज का निर्माण किया। इस विषय को उन्होंने अपने व्याख्यान में विस्तार से समझाया। आचार्य जी ने विद्युत की खोज के इतिहास की भी चर्चा की और इसे समाज से जोड़ा। आचार्य जी ने कहा कि जिस समाज में ब्राह्मण आदि चार वर्ण अपने अपने कर्तव्यों का आचरण नहीं करते वह समाज वैदिक समाज नहीं कहलाता। इस अवसर पर गुरुकुल सम्मेलन भी हुआ। इस सम्मेलन में श्री सक्षम आर्य, ब्र. विश्वामित्र, ब्र. तृप्तकिशोर आर्य, सौरभ आर्य, हर्षित आर्य तथा सार्थ आर्य आदि ब्रह्मचारियों ने कविता पाठ, भजन, देशभक्ति से ओतप्रोत व्याख्यान आदि अनेक प्रस्तुतियां दीं। इस सत्र को आर्यजगत की विदुषी बहिन डा0 सूर्यादेवी चतुर्वेदा जी तथा आचार्य वीरेन्द्र शास्त्री जी, सहारनपुर ने भी सम्बोधित किया। रात्रि की समा में उत्सव में पधारे भजनोपदेशकों श्री ऋषिराज जी, श्री दिनेश पथिक जी, श्री नरेशदत्त आर्य जी, श्री मुकेश शास्त्री जी आदि के प्रेरक भजन एवं गीत हुए। रात्रि 10.00 बजे सभा समाप्त हुई। कार्यक्रम में देश के अनेक भागों से बड़ी संख्या में लोग पधारे हुए हैं। सब बन्धुओं के लिए भोजन एवं निवास की उत्तम व्यवस्था की गुरुकुल की ओर से की गई है। गुरुकुल के उत्सव ने एक ऋषि मेले का रूप ले लिया है। अनेक प्रकाशकों की प्रकाशित नयी व पुरानी पुस्तकों सहित वैदिक धर्मियों के उपयोग की प्रायः सभी वस्तुयें हवन कुण्ड, ओ३म् ध्वज आदि यहां उपलब्ध हैं जिसे मूल्य देकर विक्रताओं से प्राप्त किया जा सकता है। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य