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कविता

गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या — 9, क्षत्रिय धर्म

क्षत्रिय – धर्म

माधव बोले पार्थ सुन – क्षत्रिय धर्म आख्यान ।
राष्ट्रधर्म समाविष्ट है, इसके बनकर प्राण ।।

क्षत्रिय धर्म सबसे बड़ा – इससे बड़ा न कोय।
जो इसका पालन करे – वह ना कायर होय ।।

क्षत्रिय क्षरण को रोकता – पतन से लेत उबार ।
दुर्बल का सहायक बने , करें दुष्ट संहार ।।

क्षत्रिय तेरा धर्म है , तू जान सके तो जान ।
अर्जुन ! धर्म से भाग मत, तू कहना मेरा मान ।।

आर्यों को भूमि मिली , तू भोग सके तो भोग।
अपना धर्म निभायकर, तू कर प्रभु से योग।।

ऐश्वर्याभिलाषी हो वही जो धर्म मार्ग अपनाय।
बल – वीर्य – युक्त ही , जगत में सिद्धि पाय ।।

सर्व – जन हितकारी बने – वही राजा हो योग्य।
व्यवस्था दे संसार को, वही जन राज के योग्य ।।

जो जन धर्म को छोड़ दें, जीवन हो अभिशाप।
ऐसा मत कर पार्थ ! तू , तेरा जीवन है निष्पाप ।।

जैसा जिसका स्वभाव है, हो वैसा उसका धर्म ।
स्वभाव से तू है क्षत्रिय , समझ धर्म का मर्म ।।

निज धर्म को छोड़कर – जो अपनाता पर धर्म।
कभी नहीं आगे बढ़े – बिगड़ते उसके कर्म ।।

युद्ध करना धर्म है , और तेरा यही स्वभाव ।
इसको मत कभी भूलना क्यों लावे भटकाव ।।

यदि क्षत्रिय जन सहने लगे दुष्टों का व्यवहार।
धर्म नष्ट होगा यहां और मचेगी हाहाकार ।।

उठ खड़ा हो बावरे , और निज धर्म पहचान।
पाप का भागी क्यों बने घटती तेरी शान।।

इतिहास तुझे कायर कहे यदि छोड़ गया मैदान।
हथियार उठाकर हाथ में कर शत्रु शरसंधान।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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