लो, फिर आ गया हूँ, मैं
राहुल गाँधी की वापसी राष्ट्रीय मज़ाक बन गई है। टीवी चैनलों और अखबारों की उछल-कूद के मज़े जनता खूब ले रही है। सोनिया-परिवार के दरबारदारी अपने महान नेता का हार्दिक स्वागत कर रहे हैं। स्वागत हार्दिक है और हृदय सीने में होता है, इसलिए सीने का फूलना तो जरूरी है। बेचारे लुटे-पिटे कांग्रेसियों का सीना फूलकर 56 इंच का हो जाए तो अच्छा ही है। 56 दिन की छुट्टी और 56 इंच के सीने का संयोग कितना अद्भूत है ?इससे भी बड़ी बात यह है कि नरेन्द्र मोदी के 56 इंच के सीने से अब टकराने में राहुलजी को आसानी होगी। अब भारत 56-56 इंच के दो सीनों का दंगल रोज़ देखेगा!
राहुल और मोदी, दोनों ने पैदल चलना नहीं सीखा है। दोनों हेलिकाप्टरों से उतारे गए पंछी हैं। एक को गुजरात के गांधीनगर हेलिपैड पर अटलजी ने उतार दिया था और दूसरे को राजीव गांधीनगर के जैलिपेड पर उसकी माताजी ने उतार दिया था। एक चतुर पायलट की तरह हेलिपैड से उड़ता-उड़ता दिल्ली में आ बैठा और दूसरा जैलिपेड में चिपकता-फिसलता बर्मा जा पहुँचा ! बर्मा में पता नहीं, उसने क्या किया? कहते हैं कि विपश्यना की! सत्यनारायण गोयनका की विपश्यना का कोर्स सिर्फ दस दिन का होता है। राहुलजी ने 56 दिन लगा दिए याने 10-10 दिन के 5 कोर्स पूरे किए और एक आधा किया। यह उनके दरबारियों की करतूत है कि उनका छठा कोर्स अधूरा छूट गया। उन्होंने 19 अप्रैल की तारीख क्यों तय कर ली? उनको क्या पता था कि उनके महान नेता कहाँ छिपे हैं? वर्ना उनसे पूछ लेते ! इतना गुरु-गंभीर कोर्स छोड़कर अब राहुल बाबा को फिर राजनीति की चक्कलस में फंसना पड़ेगा ।
राहुल बाबा के लिए राजनीति तो बिल्कुल ‘नॉन-सेंस’ है लेकिन क्या करें ? सोनियाजी गद्दी पर किसे बिठाएँ ? राहुल के पिता और दादा की उम्र के लोग भी सिर्फ नौकर-चाकर बनकर रह गए हैं। नेशनल कांग्रेस याने एन सी (NC) याने नौकर-चाकर कांग्रेस! एन याने नौकर। सी याने चाकर। बड़े-बड़े राजा महाराजा, सेठ-सामंत, ज्ञानी-ध्यानी,नायक-महानायक कितने महान हैं? उन्हें कोई अहंकार ही नहीं है। वे सब सदैव साष्टांग दंडवत की मुद्रा में रहते हैं। उनसे भी महान उनके नेता हैं, जिन्होंने अपनी माँ और अपनी पार्टी को कह दिया है कि ‘ले ले अपनी लकुट कमरिया, बहुत ही नाच नचायों।‘तो फिर वापस क्यों आ गए? इस पर नेता जी ने यह शेर पढ़ दिया-“ मुझको निकाल कर पछता रहे हैं, आप ! महफ़िल में इस ख़याल से फिर आ गया हूँ, मैं।