*राष्ट्र-चिंतन*
*मुस्लिम आबादी स्वयं कोर्ट,* *पुलिस और सरकार बन जाती है*
*आचार्य श्री विष्णुगुप्त*
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देश में एक और नमाजी हिंसा की करतूत सामने आयी। एक बार फिर नमाजियों की बर्बर भीड़ हिंसा के लिए सड़कों पर उतर आयी। अब नमाजी हिंसा देश में हिन्दू-मुस्लिम युद्ध करा कर ही दम लेगी? नमाजी भीड़ को कोर्ट, पुलिस और सरकार का भय क्यों नहीं होता? अगर नमाजी भीड़ की प्रतिक्रिया में गोधरा कारसेवक जलाओ कांड बनाम गुजरात दंगों की प्रतिक्रिया हुई तो फिर देश में कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी खतरनाक होगी, इसकी कल्पना भी की जा सकती है क्या? नमाजियों के पास एकाएक हथियार और पत्थर कहां से आ जाते है? क्या मस्जिदें नमाज पढ़ने की जगह के साथ ही साथ हथियार और पत्थर भंडारण की जगह भी बन गयी हैं?
निश्चिततौर पर उत्तर प्रदेश के कानपुर में नमाजी भीड़ की हिंसा न केवल डरावनी है बल्कि कानून का खिल्ली उड़ाने वाली है। यह हिंसा डाइरेक्ट एक्शन का परीक्षण है। मुस्लिम लीग ने आजादी के पूर्व हिन्दुओ के खिलाफ डायरेक्ट एक्शन का अभियान चलाया था। डायरेक्ट एक्शन अभियान में केरल, पश्चिम बंगाल सहित पंजाब और सिंघ आदि क्षेत्रों में हिन्दुओं का कत्लेआम किया गया था। अब फिर से डायरेक्ट एक्शन अभियान का परीक्षण जारी है। यह सिर्फ कानपुर की नमाजी हिंसा की बात नहीं है बल्कि देश के कई दर्जन जगहों पर ऐसी हिंसा हो चुकी है। खासकर हिन्दू त्यौहारों पर मुस्लिम हिंसा कहर बन कर टूट रही है। दिल्ली के जहांगीरपुरी, राजस्थान के करौली सहित दर्जनों जगहों पर हिन्दू पर्व त्यौहारों पर मुस्लिम दंगाइयों की हिंसा बरपी है। राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट, कर्नाटक, केरल आदि प्रदेशों में हिन्दू नेताओं और हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या सरेआम होती है। ऐसी हिंसा कोई अप्रत्याशित होती नहीं है। ऐसी हिंसा एक साजिश के तहत होती है। साजिश मंें कौन-कॉन मुस्लिम संगठन शामिल होते रहे हैं, उसकी पहचान भी जगजाहिर होती रही है। फिर भी कानून का कड़ा परीक्षण नहीं होता है। कानपुर की नमाजी हिंसा में पीएफआई का नाम सामने आया है। दिल्ली दंगों में भी पीएफआई का नाम आया था और प्रमाण मिला था। पीएफआई जैसे दर्जनों मुस्लिम संगठन हैं जो नमाजी भीड़ की हिंसा के पीछे खड़े होते रहे हैं। यूपी में आदित्य योगीनाथ की सरकार है जो देशद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए जानी जाती है। नमाजी भीड़ की हिंसा पर अगर जरूरी और कड़ी कार्रवाई नहीं हुई तो फिर भारत को अफगानिस्तान, पाकिस्तान, लेबनान और सीरिया बनने से कौन रोक सकता है?
नमाजी भीड़ की हिंसा पर अब राजनीतिक अवाज भी उठने लगी है। नमाजी भीड़ की हिंसा पर दबी जबानों और अप्रत्यक्ष ही सही पर अवाज उठने के सकारात्मक परिणाम भी निकलेंगे। इसकी शुरूआत बसपा की सुप्रीमो मायावती ने की है। मायावती का बयान है कि कानपुर हिंसा के दोषियों को छोड़ा नहीं जाना चाहिए, दोषियों पर कड़ी कारवाई होनी चाहिए। मायावती एक कदम आगे बढ़ते हुए कहती है कि प्रधानमंत्री और राष्टपति के दौरे के समय में इस तरह की हिंसा बहुत खतरनाक है। उल्लेखनीय है कि जिस दिन कानपुर में नमाजी भीड़ की हिंसा हुई उस दिन कानपुर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्टपति का कार्यक्रम निर्धारित था। नमाजी हिंसक भीड़ का नेतृत्व करने वाले लोगों और हिंसा की साजिश मंें लगे मुस्लिम संगठनों को यह मालूम था कि प्रधानमंत्री और राष्टपति के कार्यक्र्रम के दिन हिंसा से उन्हें प्रचार खूब मिलेगा और संदेश यह भी जायेगा कि हम प्रधानमंत्री और राष्टपति से भी नहीं डरते हैं। यह भी सही है कि नमाजी हिंसा हमेशा बेखौफ होकर सिर पर बोलती है। नमाजी हिंसा के दहशतगर्दो को प्रधानमंत्री और राष्टपति का भी डर नहीं होता है।
अगर कोई यह कहता है कि नमाजी भीड़ की हिंसा साजिशपूर्ण नहीं होती तो उन्हें कुछ प्रश्नों का उत्तर जरूर देना चाहिए। फिर एकाएक नमाजी भीड़ हिंसक क्यों होती है? साप्राहिक नमाज के दिन ही ऐसी हिंसा क्यों होती है? नमाजी लोग मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए आते हैं फिर उनके पास हथियार कहां से आता है। उनके पास हजारों पत्थर कहां से उपलब्ध हो जाते हैं। क्या मस्जिदों मे हथियार पहले से ही रखे हुए होते है? अगर मस्जिद में पहले से ही हथियार और पत्थर रखे होते है तो देश के कानून व्यवस्था के लिए और भी हिंसक और खतरनाक संकेत हैं। अगर हथियार और पत्थर बाहर से लाकर रखे जाते हैं तो इसके पीछे भी गंभीर और खतरनाक साजिश होने की बात सच होती है। कानपुर की नमाजी भीड़ ने सड़कों पर कितने पत्थर फेंके हैं, यह भी जगजाहिर है। नमाजी भीड़ ने कोई एक-दो पत्थर नहीं फेंके बल्कि हजारों पत्थर फेके है। नमाजी भीड़ की पत्थरबाजी से दर्जनों लोग घायल हुए हैं। खासकर राहगीर इनके निशाने पर रहे हैं। इनकी पत्थरबाजी की चपेट मंें आने वाली महिलाओं का बयान है कि उनके सिर पर हेलमेट नहीं होता तो वे सीधे मौत के हवाले हो जाती। उल्लेखनीय है कि नमाजी भीड़ दो पहिये वाहनों पर सवार लोगों को भी हिंसक निशाना बनायी थी।
जिस प्रश्न को लेकर नमाजी भीड़ हिंसा बरपायी उस प्रश्न के लिए जिम्मेदार को कानूनी पाठ पढ़ाया जा सकता है। कानूनी कार्रवाई करने के लिए शांति पूर्ण ढंग से आंदोलन किया जा सकता है, धरणा-प्रदर्शन किया जा सकता है। नुपूर शर्मा ने किस संदर्भ और कितनी खतरनाक बात बोली है, इसका परीक्षण न तो मुस्लिम आबादी कर सकती है और न ही नमाजी भीड़ कर सकती है। यह काम कोर्ट और सरकार का है। पर ऐसे प्रश्नों को लेकर कोई आज से नहीं बल्कि कबिलाई समाज के समय से ही ऐसी हिंसा हो रही है। जब अरब समाज कबिलाई था तब खिलाफ में बोलने पर इसी तरह की हिंसा होती थी। अरब के कबिलाई समाज की ऐसी हिंसा अराजकता की ओर ढकेल देती थी, मानवता को शर्मसार करती थी। अरब की कबिलाई समाज की हिंसा आज के आधुनिक समाज में भी जारी है। डेनमार्क के कार्टूनिस्ट कर्ट वेस्टरगार्ड ने एक विवादित कार्टून बनाया था। कर्ट वेस्टरगार्ड के खिलाफ दुनिया के मुस्लिम समाज काफी गर्म हुआ था। चाकचौबंद पुलिस सुरक्षा कर्ट वेस्टरगार्ड की मृत्यु हुई थी। मृत्यु से पूर्व उनका सार्वजनिक जीवन समाप्त हो गया था। फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दों ने विवादित कार्टून छापा था। मुस्लिम हिंसकों ने हमला कर पत्रिका शार्ली एब्दों के कार्यालय को जला दिया और उसके कई पत्रकारों को मौत का घाट उतार दिया था। फ्रांस में ही सैमुअल नामक शिक्षक की हत्या कर दी गयी थी। सैमुअल पर विवादित कार्टून विद्यार्थियों को दिखाने का आरोप था। भारत में भी इस प्रकार की कई हत्याएं हुई है। इसी श्रेणी में हिन्दू नेता कमलेश तिवारी की हत्या मुस्लिम हिंसक युवकों ने की थी। पाकिस्तान में ऐसी हत्याओं की लंबी-चौड़ी सूची है। सजा देना कोर्ट का काम है, सजा दिलाना सरकार का काम है। पर मुस्लिम आबादी स्वयं कोर्ट, पुलिस और सरकार बन जाती है।
इस तरह की नमाजी हिंसा के खिलाफ प्रतिक्रिया होनी शुरू हो गयी तो फिर देश की स्थिति कितनी खतरनाक हो सकती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। देश सीधेतौर पर हिन्दू-मुस्लिम के हिंसक संघर्ष के चपेट में आ सकता है, देश में गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। प्रतिक्रिया में हिंसा नहीं होगी, यह खुशफहमी ठीक नहीं है। गोधरा कारसेवक जलाओ कांड सबको मालूम है। गोधरा ट्रेन पर इसी तरह मुस्लिम आबादी ने हमला कर 70 से अधिक कारसेवकों को जिंदा जला दिया था। फिर गोधरा कांड की कैसी हिंसक प्रतिक्रिया गुजरात में हुई थी, यह भी उल्लेखनीय है। गुजरात दंगों एक हजार से अधिक लोग मारे गये थे, अरबो की संपत्तियां नष्ट हुई थी। आज भी गुजरात दंगे की चर्चा राजनीति को गर्म कर देती है। अगर नमाजी हिंसा की प्रतिक्रिया गुजरात दंगों की तरह हुई तो फिर नुकसान का अनुमान लगाया जा सकता है। अति सर्वत्र वर्जते। मुस्लिम आबादी को अब नमाजी हिंसा की अति से बचने की जरूरत है।
नमाजी हिंसा बेखौफ क्यों होती है? नमाजी हिंसा कानून, पुलिस, कोर्ट और सरकार को सीधे चुनौती क्यों देती है? इसलिए कि नमाजी हिंसा करने वालों को भाजपा विरोधी दलों, सेक्युलर जमात और अरब से समर्थन हासिल होता है, इन पर पैसों की बरसात होती है। बड़े-बड़े वकील खड़े होकर इनके पक्षधर हो जाते हैं। बडे-बडे वकीलों और मीडिया के दबावों के सामने कानून भी अंधा हो जाता है, फिर नमाजी-मुस्लिम हिंसा शामिल लोग रातोरात हीरो बन जाते हैं। शाहरूख पठान दिल्ली दंगों में पुलिस और राहगीरों पर गोलियां चलायी थी, उसकी तस्वीर बहुत ही कुचर्चित हुई थी। जब शाहरूख खान को जमानत मिली तो वह मुस्लिम आबादी और मीडिया का हीरो बन गया। अब देश में ऐसी नमाजी हिंसा पर रोक लगना जरूरी है।
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