“काव्य-मुक्तक”
हमेशा दर्द ही लाते हैं अब तो द्वार के कागज,
नहीं खुशियाँ दिखाते हैं हमें संचार के कागज,
पढूँ हिंदी या अँग्रेजी में मैं किस्सा किसानों का,
भरे हैं मौत की खबरों से सब अखबार के कागज,
जो सावन की बौछारों से अपना घरबार बचाता है,
जो शीतलहर की रातों में जा खेतों में सो जाता है,
उसके घर के बच्चे भी कैसे भूखे रह जाते हैं,
जो अपने पूरे जीवन भर केवल अन्न उगाता है,
जिसकी फसलों को खेतों में खाते कीट पतंगे हैं,
फिर खलिहानों से कुछ हिस्सा ले जाते भिखमंगे हैं,
बाजारों में जाकर उसको पूरा मोल नहीं मिलता,
सिर्फ फसल पर करें सियासत राजनीति के नंगे हैं,
खून पसीना बहा साथ में जो परिवार चलाता है,
टूटे छप्पर फूटे बर्तन में जो समय बिताता है,
उस गरीब का हिस्सा भी कैसे जालिम खा जाते हैं,
जो आधी रोटी खा आधी बच्चों को रख जाता है,
कवि- ‘चेतन’ नितिन खरे
महोबा, उ.प्र.
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