कश्मीर घाटी से जो कुछ खबरें इस समय आ रही हैं वे बहुत ही चिंताजनक हैं । आतंकवादियों ने अपनी उपस्थिति को भयानक ढंग से दिखाने का क्रम आरंभ कर दिया है। इधर केंद्र की मोदी सरकार प्रदेश में यथाशीघ्र चुनाव कराकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल कर देना चाहती है। सरकार ने जिस प्रकार सीटों का पुन: सीमांकन कराकर वहां पर हिंदू को ‘उचित प्रतिनिधित्व’ देने का काम किया है, वह आतंकवादियों को रास नहीं आ रहा है। यही कारण है कि कश्मीर एक बार फिर सुलगने लगा है। 1990 जैसे हालात वहां पर हिंदुओं के लिए फिर पैदा किए जा रहे हैं। संविधान की धारा 370 और 35a को हटाने के पश्चात हिन्दुओं के मनोबल को जिस प्रकार स्थापित करने में हमको सफलता मिली थी, उस पर फिर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा है। अब हमको इस भ्रम और झूठे प्रचार से बाहर निकलना होगा कि कश्मीर का आतंकवाद किसी प्रकार की बेरोजगारी या आर्थिक विषमता से जुड़ा मुद्दा है। सदियों पुराना इतिहास और इस्लामिक आतंकवादियों की सोच का निष्कर्ष केवल एक है कि कश्मीर को हिंदूविहीन किया जाए और यदि कश्मीर में हिंदुओं के पुनर्वास की प्रक्रिया किसी भी दृष्टिकोण से लागू की गई तो वह सहन नहीं की जाएगी।
बस, इसी एक सोच के कारण कश्मीर फिर सुलगने लगा है। भारत की सभी राजनीतिक पार्टियों को कश्मीर के संदर्भ में इस सच को स्वीकार करना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता के आधार पर तुष्टीकरण की मूर्खतापूर्ण नीति को त्यागने का समय आ गया है । इसलिए दलीय दुर्भावना और हितों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित में सभी राजनीतिक दलों को सरकार के साथ सहयोग कर कश्मीर को सेना के हवाले करने की रणनीति पर काम करना चाहिए। राजनीति करने के लिए समय बहुत पड़ा है। इस समय राष्ट्र नीति पर काम करने की आवश्यकता है। हमारा मानना है कि चुनाव के प्रति शीघ्रता दिखाने की गलती ना तो सरकार करे और ना ही कोई राजनीतिक दल करे। वहां पर इस समय सेना की आवश्यकता है और सेना को भी खुले हाथ छोड़ने की आवश्यकता है। जब तक सपोलों को समाप्त ना कर लिया जाए, तब तक चुनावी प्रक्रिया को अपनाना उचित नहीं होगा। इसके अतिरिक्त यदि महबूबा मुफ्ती और अलगाववादियों के बाप शेख अब्दुल्ला के परिवार के लोग अर्थात फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला को यदि उठाकर जेल में भी डालना पड़े तो इससे संकोच नहीं करना चाहिए। क्योंकि इनकी सोच भारत के प्रति कभी भी ना तो अच्छी रही है और ना अच्छी हो सकती है। गंदी सोच के गंदे लोगों को प्रदेश को सौंपना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान होगा।
धरती का स्वर्ग कहलाने वाले कश्मीर को यदि एक बार फिर बारूद ,गोली और गोला का पर्यायवाची बनाए जाने का प्रयास किया जा रहा है तो इसके प्रति गंभीरता दिखाना भारत की राजनीति के लिए आवश्यक है। वहां पर यदि आतंकवादी इस समय फिर लोगों को चुन चुनकर मारने का सिलसिला आरंभ कर रहे हैं तो इस पर भारत की राजनीति को मौन नहीं रहना चाहिए। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और केजरीवाल जैसे लोग खुलकर सरकार के साथ आकर खड़े हों। अब यह नहीं चलने वाला कि मौन रहकर आतंकवादियों को समर्थन दिया जाए और बिगड़े हुए हालात का लाभ चुनावों में वोट के रूप में प्राप्त किया जाए । देश की जनता अब बहुत जागरूक हो चुकी है। सोशल मीडिया अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति की दोगली और गंदली चाल को लोगों तक पहुंचने में अब महीनों का नहीं मिनटों का समय लगता है । अतः दोगली और गंदली चाल को छोड़कर नेता स्पष्ट राष्ट्रवादी नीति का पालन करें।
जब एक ही संप्रदाय के लोगों को लक्ष्य बनाकर हत्याएं की जा रही हों तब उसे किसी भी दृष्टिकोण से बेरोजगारी के कारण भटके हुए नौजवानों की बचपने की हरकतें नहीं कहा जा सकता। लक्षित हिंसा को लेकर सोनिया गांधी बहुत अधिक गंभीर रहा करती थीं। अब उन्हें अपना मुंह खोलना चाहिए और कश्मीर में लक्षित हिंसा में लगे आतंकवादियों की खुली भर्त्सना करनी चाहिए। सोनिया गांधी को समझना चाहिए कि देश में अल्पसंख्यकों के ही अधिकार नहीं हैं बल्कि बहुसंख्यकों के अधिकार भी हैं। संविधान मौलिक अधिकार केवल अल्पसंख्यकों को ही नहीं देता बल्कि बहुसंख्यकों को भी देता है। शांतिपूर्ण जीवन जीने का अधिकार जितना अल्पसंख्यकों का है उतना ही बहुसंख्यक समाज का भी है। साथ ही उन्हें और उनकी पार्टी को यह भी समझ लेना चाहिए कि कश्मीर में कोई भी सरकार मुस्लिम बहुल क्षेत्र में हिंदुओं को कभी बसा नहीं पाएगी। इसका कारण केवल वही व्यक्ति जानता है जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र में थोड़ी बहुत देर किसी कारण रहने का अनुभव उठा लेता है। ऐसी परिस्थितियों में कश्मीर में हिंदुओं का पुनर्वास असंभव नहीं तो बहुत ही कठिन अवश्य है। यह तभी संभव है जब सारी राजनीति निस्वार्थ और राष्ट्रीय भाव से प्रेरित होकर कश्मीरी पंडितों को उनके मूल स्थान पर ले जाकर बसवाने के लिए संकल्पित हो। राष्ट्रीय परीक्षा की इस घड़ी में कौन सा दल अपने आप को सर्वप्रथम इस बात के लिए प्रस्तुत करेगा, यह देखने वाली बात होगी। यद्यपि वर्तमान परिस्थितियों में राजनीतिक दलों के स्वार्थपूर्त्ति के दृष्टिकोण को देखकर लगता नहीं कि वह ऐसा साहस कर पाएंगे। इसलिए देशवासियों को भी यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि बहुत शीघ्र कश्मीर से उजड़े हुए हिंदू अपने घरों को लौट जाएंगे।
हमने यासीन मलिक को सजा दी है तो प्रतिशोध की भावना से प्रेरित उसके आतंकी साथी देश को सजा देने की भी तैयारी कर रहे हैं और यदि सच कहें तो उन्होंने सजा देनी भी आरंभ कर दी है । एक आतंकवादी और उसके मुट्ठी भर साथी डेढ़ सौ करोड़ लोगों के देश को और पूरी व्यवस्था को आतंकित कर या डराकर अपनी मनमानी चलाने की बात सोच सकते हैं और इतना शक्ति संपन्न देश उन मुट्ठी भर आतंकियों के समक्ष यदि डर सकता है या आतंकवादियों के सामने घुटने टेक सकता है या राजनीति में लगे कुछ राजनीतिक दल उसे घुटने टेकने के लिए बाध्य कर सकते हैं तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति कोई नहीं हो सकती । हमको संभलना ही नहीं होगा बल्कि अपनी एकता का परिचय भी देना होगा। हम किसी पार्टी की सरकार को समर्थन दें या ना दें पर अपने देश के सुरक्षा बलों और देश की सेना को अपना सहयोग व समर्थन दें और खुलकर यह घोषणा करें कि हम कश्मीरी आतंकवाद से निपटने की हर उस पहल का स्वागत करेंगे जिसे हमारी सेना समय और परिस्थितियों के अनुसार उचित समझे। यदि इतना करने में हम सफल हो गए तो अपने देश की सेना को कश्मीर की स्थिति को सुधारने में और वहां पर कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास करने में तनिक भी देर नहीं लगेगी। प्रधानमंत्री मोदी जी को भी अब चाहिए कि कश्मीर को सेना के हवाले करें। अब सारे देश के शांतिप्रिय लोगों की उनसे यही अपेक्षा है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत