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भाई, आप भारत से नत्थी कब होंगे ?

sitaram yechuriपहले प्रकाश कारत और अब सीताराम येचूरी के बनने से मेरे जैसे लोग खुश क्यों नहीं होंगे? एक के बाद एक ये दोनों मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने हैं। ये दोनों जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। ये दोनों मेरे-जैसे पुराने छात्रों को काफी सम्मान और स्नेह से देखते रहे हैं। हमें भी इन पर गर्व है लेकिन इन दोनों को देखकर तरस भी आता है। नम्बूदिरिपाद और हरिकिशनसिंह सुरजीत से भी मेरा संबंध रहा है। ये पुराने सांचे में ढले हुए लोग थे। ये पुरानी लकीर पीटते रहते थे तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता था लेकिन मैं प्रकाश कारत और येचूरी से उम्मीद करता था कि ये लोग न सिर्फ मार्क्सवादी पार्टी में नई जान डालेंगे बल्कि विश्व-मार्क्सवाद को भी नई दिशा देंगे, क्योंकि ये दोनों काफी पढ़े-लिखे, चरित्रवान और समर्पित जवान थे लेकिन अफ़सोस कि इनके नेतृत्व में मार्क्सवादी पार्टी रसातल में पहुँच गई है और ये अभी भी रट्टू तोतों की तरह डेढ़ सौ साल पुराने मार्क्सवादी-लेनिन-वादी मुहावरों को ही पीटे चले जा रहे हैं। यह तब हो रहा है जबकि इस पार्टी के नेता देश के सबसे जागरूक नागरिक हैं।

मेरा पहला प्रश्न तो येचूरी से यही है कि वे मार्क्सवादी पार्टी के महासचिव क्यों हैं, अध्यक्ष क्यों नहीं ? सोवियत संघ ख़त्म हो गया लेकिन वे अभी भी सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी की नक़ल पीटे जा रहे हैं ? वे भारत में राजनीति कर रहे हैं और ढर्रा उन्होंने सोवियत पकड़ रखा है। वे अभी भी शीत-युद्ध का कम्बल लपेटे हुए हैं। वे अमेरिका को अपना दुश्मन मानकर चलते हैं जबकि रूस और चीन उसी के चरण-चिन्हों पर चल रहे हैं ।मार्क्स के द्वंदात्मक भौतिकवाद,वर्ग-संघर्ष और अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांतों को, जो कि भारत पर लागू नहीं हो पाते, उन्हें जबर्दस्ती थोपने की कोशिश करते हैं। क्या वे यह मानते हैं कि बंगाल, केरल और त्रिपुरा में उनकी जो सरकारें बनीं, वे मार्क्सवाद के आधार पर बनीं या चलीं ? वे तो बंगाली और मलयाली उपराष्ट्रवाद की संतानें थीं । यदि मार्क्सवाद के आधार पर कोई सरकार बननी चाहिए थी तो वह उ.प्र., मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओड़ीशा में सबसे पहले बननी चाहिए थी । सर्वहारा की संख्या वहीं सबसे ज्यादा है। जिन पार्टियों को आप बुर्जुआ कहकर कोसते हैं, उन्हीं के साथ आप हमबिस्तरी भी करते हैं । अभी तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ आपका एका क्यों नहीं हुआ ? एक पार्टी चीन से नत्थी हो गई तो दूसरी रूस से ! भाई, आप भारत से नत्थी कब होंगे ? आपको जनता की जबान बोलते शर्म आती है । पार्टी की सारी कार्रवाई अंग्रेजी में चलती है । सीताराम येचूरी से आशा है कि वे पार्टी के विचारधारा के विदेशी सांचे को तोड़ेंगे । तीसरे मोर्चे से जुड़ेंगे । उसका वैचारिक नेतृत्व करेंगे और देश में एक मजबूत विपक्ष का निर्माण करेंगे।

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