आतंकी शासन की फिर हुई स्थापना
1772 ई0 में कश्मीर के सिंहासन पर एक और अत्याचारी अफगान सरदार मीर हाजर आमिर खान बैठा था। उसके अत्याचार शासन के बारे में ‘हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ से हमें पता चलता है कि :- ‘कश्मीर में आतंकपूर्ण शासन आरंभ हुआ। 1793 ई0 में खानयार में कत्ल होने वाले पंडित दिलाराम इसका प्रथम शिकार बने। इसके बाद सभी पंडितों के विनाश के लिए एक क्रमबद्ध विधि अपनाई गई। उसने कश्मीरी पंडितों के व्यवस्थित शिकार के लिए बहुतों को बोरियों में बंद करके डल झील में डुबोकर मार डाला। जो बच गए उन्हें इतना सताया गया कि लोग फ़कीरुल्ला के जुल्म भी भूल गए। बारामूला के अनेक प्रतिष्ठित पंडितों को बंदी बनाकर सताया गया। फिर उन्हें कारावास में रखने के बाद झेलम नदी में डुबो दिया गया। जब उसे विश्वास हो गया कि पूरी जाति का विनाश करने का प्रयास मूर्खता है तो उसने जीवित पंडितों का जीना ही असंभव और संतापपूर्ण बना दिया। पूरी जाति पर जजिया फिर से लगा दिया गया।’
काबुल के सुल्तान के सदप्रयास और मीर हाजर
इस महा अत्याचारी मीर हाजर खान के अत्याचारों से कश्मीर के लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए काबुल के सुल्तान जुमन खान को चिंता हुई। उसने हाजर खान के पिता सरदार मिर्जा खान को कश्मीर इस उद्देश्य से भेजा कि वह वहां जाकर अपने बेटे को समझा-बुझाकर प्रजा पर अत्याचार करने से रोके, परंतु इस अत्याचारी क्रूर शासक ने अपने पिता से किसी भी प्रकार की शांति वार्ता करने से इंकार कर दिया। उसने अपने पिता को मुश्कों में बांधकर कारावास में डलवा दिया।
जब मीर हाजर खान के इस प्रकार के कार्यों की जानकारी काबुल के सुल्तान को हुई तो उसे बहुत क्रोध आया । उसने अपने एक सैन्य अधिकारी अहमद खान के नेतृत्व में बड़ी सेना को कश्मीर पर आक्रमण करने के लिए भेजा। काबुल से आ रही इस सेना ने बारामूला में पड़ाव डाला । आजम खान ने इस सेना का सामना किया, परंतु कश्मीर की जनता ने सहयोग नहीं किया। क्योंकि वह उसके अत्याचारों से दु:खी हो चुकी थी। तब वह कायरता दिखाते हुए श्रीनगर में जा छिपा। काबुली सैनिकों ने उसका पीछा करके उसे पकड़ लिया और कारावास में बंद कर दिया। यह वही कारावास थी जिसमें उसने अपने पिता को बंद किया था। वहीं दोनों बाप बेटों की मुलाकात हुई।
मीर हाजर खान के बारे में हमें मुहम्मद दीन फाक और बीरबल काचरू के उल्लेखों से जानकारी मिलती है कि :- ‘अपना युद्ध अभियान आरंभ करने के पूर्व हाजर खान ने कारावास में घोर यातनाएं भोग रहे कश्मीर के विद्वान पंडितों और लब्ध प्रतिष्ठित सज्जन लोगों को कारावास से निकाला और मृत्यु दंड देकर उन्हें झेलम दरिया में बहा दिया।’
उसने कारावास में बंद कश्मीरी पंडितों को युद्ध अभियान पर जाने से पूर्व अपने सामने निकलवाकर एक-एक करके कत्ल करवाया था। उनके कटे हुए सिरों को घसीट कर ठोकरें मारते हुए झेलम नदी में फिंकवा दिया था।
सूबेदार अता मुहम्मद खान के अत्याचार
1807 ईस्वी में कश्मीर का राजा सूबेदार अता मुहम्मद खान बना। उसके बारे में कहा जाता है कि वह अपने हरम को कश्मीरी हूरों से भरने का शौकीन था। जिस भी हिंदू परिवार की सुंदर महिला पर उसके भेजे हुए दूतों की नजर पड़ती थी, उसी को उठा लिया जाता था। रोती चिल्लाती वे हिंदू महिलाएं सूबेदार की वासना का शिकार बनाई जाती थीं। गोपीनाथ श्रीवास्तव ने लिखा है कि : – ‘अता मुहम्मद खान ऐसा सूबेदार हुआ जिसके जमाने में कश्मीरी अपनी सुंदर लड़कियों का सिर मुंडवा देते थे। उनकी नाक काट देते थे । जिससे वह कुरूप लगें और अत्ता खान के चंगुल से बच सकें।’
इन जालिमों से अपने शील और चरित्र की रक्षा हेतु हजारों जवान लड़कियों ने जहर खाकर कुएं में कूदकर अथवा एक दूसरे के सीने में कटार भोंककर आत्महत्या कर ली थी। इस भेड़िया के अत्याचारों के कारण ही उत्तर भारत में आज भी एक मुहावरा प्रचलित है कि तू बहुत बड़ा अत्ता खान है।
कश्मीर का अंतिम अफगान सूबेदार अजीम खान 1813 ई0 में बना। उसके समय में अनेक कश्मीरी पंडित उसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह से जाकर मिले थे जिस प्रकार कभी गुरु तेग बहादुर से जाकर अपने धर्म की रक्षा के लिए मिले थे। महाराजा रणजीत सिंह ने अपने हिंदू भाइयों के धर्म की रक्षा के लिए दो बार कश्मीर पर आक्रमण किया परंतु दुर्भाग्य से वह दोनों बार ही असफल रहे । तब कश्मीर के मुस्लिम अधिकारियों ने दरबार के और राज्य के प्रभावशाली हिंदुओं पर यह आरोप लगाया कि उनके द्वारा ही महाराजा रणजीत सिंह को कश्मीर पर आक्रमण के लिए प्रेरित किया गया है। फलस्वरूप हिंदुओं को और भी अधिक उत्पीड़ित किया जाने लगा।
हिंदुओं से संबंधित विभाग को उस समय एक बहुत ही निर्दयी मुस्लिम सरदार नूरशाह दीवानी को सौंप दिया गया। उसने अपने षड़यंत्र का पहला शिकार एक प्रमुख हिन्दू अधिकारी पंडित हरदास को बनाया। उन्हें चुपचाप किसी बहाने से दरबार में बुलाकर धोखे से गिरफ्तार करके मार दिया गया।
बाद में महाराजा रणजीत सिंह कश्मीर पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए । जिससे 500 वर्ष के अत्याचारी मुस्लिम शासन का यहां से अंत हुआ। कश्मीर को एक बार लंबी अवधि के पश्चात खुली हवाओं में सांस लेने का अवसर प्राप्त हुआ। इस पर हम अगले अध्याय में प्रकाश डालेंगे।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत