दिल्ली में वही हुआ जो देश में हुआ, लेकिन देश में या केंद्र में सत्तारूढ़ नौसिखियों के पीछे भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का सुदीर्घ अनुभव और देशव्यापी संगठन है, जबकि ‘आप’ के पीछे दो-तीन साल का एक स्वतः स्फूर्त लेकिन नकली आन्दोलन है। इसीलिए इसकी टूट भी व्यक्तिगत है, विचारगत नही है। वह आन्दोलन (लोकपाल) भी तात्कालिक और सतही था। उसके पीछे भी कोई गहरा आदर्श या विचार नहीं था। इसीलिए इसकी टूट से भी देश को कोई गहरा नुक्सान होने वाला नहीं है । बल्कि मुझे लगता है कि यह अच्छा ही हुआ । यदि यह टूट दो-चार साल बाद होती तो ज्यादा नुक्सानदेह होती।
इस टूट का सबसे दुखद पहलू यह है कि दोनों गुटों के लोग एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं । इस कीचड़-उछाल दंगल में दोनों गुटों की छवि तो ध्वस्त हो ही रही है, आम आदमियों को भी काफी ठेस पहुँच रही है । वे सोच रहे हैं कि ये नेता भी पुराने नेताओं की तरह खुर्राट और धूर्त हैं । सत्ता और पत्ता के लालची हैं । चाहे दोनों पक्ष एक-दूसरे पर झूठे आरोप लगा रहे हों लेकिन लोग तो इन्हें सच्चे ही समझ रहें हैं । आम आदमी की नजर में सिर्फ राजनेता ही नहीं गिर रहे हैं राजनीति भी गिर रही है। लोग यह मानने लगे हैं कि राजनीति ही एक घटिया धंधा है।
क्या ही अच्छा हो कि ‘आप’ के दोनों पक्ष दो स्वस्थ राजनीतिक दलों की तरह काम करें ! केजरीवाल पार्टी दिल्ली में सरकार ऐसी चलाए कि पूरा देश देखता रह जाए और प्रशांत-योगेंद्र-आनंद पार्टी पूरे देश में इतने जन-आन्दोलन चलाए कि लोगों को गाँधी युग की याद ताज़ा हो जाए। आम आदमी पार्टी को ये दोनों काम एक साथ करने चाहिए थे लेकिन यह संभव नहीं होता है । खास तौर से तब जबकि कोई पार्टी सत्ता में हो। इसीलिए मैं आपकी इस टूट का स्वागत करता हूँ । अब ये दोनों काम काफी अच्छे ढंग से चल सकते हैं ।लेकिन यह जरूरी है कि दोनों पार्टियाँ एक-दूसरे पर कीचड़ न उछालें।ऐसा कुछ न करें कि भविष्य में यदि दोनों के एक होने का माहौल बने तो दोनों के नेताओं को शर्म न आए।