एल आर गांधी
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को इतिहास के गुमनाम पन्नों में दफन करने के
‘काले-गोरे ‘ अंग्रेज़ों के षड्यंत्र पर से परत दर परत पर्दा उठने लगा है
…। यह षड्यंत्र माउंटबेटन ,उनकी मैडम औ
…. अँगरेज़ समझ गए थे कि हज़ारो शहीदों की शहादत के पश्चात अवाम के
दिलोदिमाग में जो आक्रोश पैदा हो गया है और नेताजी सुभाष के आह्वान कि
‘तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ के बाद उनका भारत में
अधिक देर टिकना संभव नहीं। अंग्रेज़ नहीं चाहते थे कि आज़ादी का सेहरा
क्रांतिकारिओं के सर बंधे। वे चाहते थे की सारी दुनिया में यह प्रचारित
हो के बापू की अहिंसा ,अवज्ञा और मानवीय संवेदना से मज़बूर हो कर उन्होंने
भारत छोड़ा। क्रांतिकारिओं से सबसे बड़ा बदला यही होगा कि उनकी क्रांति का
नामोनिशां विश्व और भारत के इतिहास के पन्नो से मिटा दिया जाए ….
भारत की सत्ता हस्तांतरण की यह शर्त थी कि क्रांतिकारिओं को उग्रवादी
प्रचारित किया जाए और सुभाष बाबू सरकार के हाथ १९९९ तक जब भी आएं तो
उन्हें ‘ब्रिटेन का युद्ध अपराधी ‘ करार देते हुए ,ब्रिटेन को सौंप दिया
जाएगा।
इंग्लैण्ड के प्रधान मंत्री क्लिमैन्ट एटली ने सदन को सूचित किया कि –
हमारा भारत के नेताओं से समझौता हो चूका है , जब भी सुभाष चन्दर बॉस
ग्रिफ्तार होंगे , उन्हें ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा। गुप्त फाइल १० (
आई : ए एन ए ) २७९ में स्पष्ट अंकित है कि भारत सहित ५४ राष्ट्रमंडलीय
देशो में से सुभाष बाबू कहीं भी पकडे जाएं , तो उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया
जाएगा या ब्रिटेन को सौंप दिया जाएगा। लार्ड मौन्टबेटन के एक सचिव
द्वारा लिखित पुस्तक लास्ट डेज़ आफ ब्रिटिश राज इन इण्डिया में भी इस
षड्यंत्र की जानकारी दी गई है।
नेता जी से एक बार पूछा गया कि इतने लोग गांधी जी से क्यों आकर्षित हैं
तो उन्होंने बहुत ही बेबाक उत्तर दिया …। गांधी जी इतनी भीड़ को इस लिए
आकर्षित कर पाते है कि वह स्वयं को एक फ़क़ीर के रूप में प्रस्तुत करते
हैं। अगर वह पश्चिमी में पैदा होते तो उन्हें शायद कोई नहीं पूछता। अगर
रूस ,जर्मनी या इटली में पैदा हो कर अहिंसा से आज़ादी लेने की बात करते ,
उन्हें किसी’ पागलखाने ‘ में डाल दिया जाता ……
चाचा नेहरू दो कारणों से नेताजी से खार खाते थे …. एक तो नेताजी
भारत के जनमानस पर एक – छत्र राज करते थे। वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर
खड़े हुए …… बापू के ख़ास नुमांइदे पट्टाभीसीतारमैया से २०३ मतों से
विजयी हुए …. बापू को कहना पड़ा … यह मेरी हार है ‘ । नेताजी ने एक
बार नेहरू को उनके कार्यकलापों के लिए इतनी डांट पिलाई की उन्हें दिन में
तारे नज़र आने लगे अपने एक पत्र में नेहरू को नेताजी ने खूब आईना
दिखाया। कुछ अंश … “मेरी इस बात को अच्छी तरह पल्ले बाँध लो।
तुम्हारा व्यवहार ठीक ऐसा है जैसा एक शुरू से ही अनुशासनहीन ,कुसंस्कारी
बालक का। तुम क्रोधित भी बहुत जल्द हो जाते हो। बंदरों जैसी इस उछल कूद
से बचो। ” इसी कारन नेहरू जी २० साल तक नेताजी की जासूसी करवाते रहे
…. ताकि गोरे अंग्रेज़ों के साथ काले अंग्रेजों की हुई गुप्त संधि को
परवान चढ़ाया जा सके …. यह तो एक गुप्त फाइल का सच सामने आया है ….
बाकी गुप्त फाइलों पर से जब पर्दा उठेगा तो झूठ के सौदागरों के सब लंगर
लंगोट
कुछ ऐसे पंजाबी अखौत जैसे हो जाएंगे !
सानु सज्जन उह मिले ,जिहड़े साथों बी समरत्थ
साढ़े टेढ़ लंगोटी , उन्हां दे अग्गे पिच्छे हत्थ