गजेंद्र की मौत पर मगर के आंसू
आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान गजेंद्र सिंह की मौत से सारा देश स्तब्ध रह गया। हजारों किसानों की मौत वैसी खबर नहीं बना पाई, जैसी कि यह बन गई। यदि गजेंद्र सिंह वाला हादसा नहीं होता तो शायद ‘आप’ की उस रैली को उतना महत्व भी नहीं मिलता, जितना कांग्रेस की रैली को मिला था। ‘आप’ की रैली किसानों की कम, शहरियों की ज्यादा थी लेकिन गजेंद्र ने उस रैली पर सारे देश का ध्यान टिका दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह से लेकर राहुल गांधी और सीताराम येचुरी ने भी आंसू बहाने में कोई कोताही नहीं की।
गजेंद्र ने प्राणांत के पहले जो पर्ची लिखी और पेड़ पर से नीचे फेंकी, उसमें यह नहीं लिखा कि वह आत्महत्या कर रहा है। हां, उसने यह जरूर लिखा कि उसके पिता ने उसे घर से निकाल दिया है। उसकी खेती उजड़ गई है। उसके तीन बच्चे हैं। अब वह घर वापस कैसे जाए? गजेंद्र के बारे में जानने अखबारों और टीवी चैनलों के परिश्रमी रिपोर्टर उनके गांव पहुंचे, घर पहुंचे और उसके बारे में खोज-पड़ताल की तो उन्हें पता चला कि गजेंद्र वैसा किसान नहीं है, जैसे विदर्भ के वे तीन हजार किसान थे, जिन्होंने गरीबी और कर्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या की थी। उन रिपोर्टरों का कहना है कि गजेंद्र के कई फार्म हाउस हैं और जयपुर में उसका पगड़ियों का अच्छा खासा व्यापार है। उसने अटलबिहारी वाजपेयी, बिल क्लिंटन और राजनाथ सिंह जैसे अनेक देशी-विदेशी प्रसिद्ध पुरुषों को पगड़ियां पहनाकर शोहरत हासिल की थी।
गजेंद्र को शोहरत इतनी प्रिय थी कि ‘आप’ की रैली शुरू होने के पहले वह काफी देर तक मंच के आस-पास मंडराता रहा और कोशिश करता रहा कि नेताओं के साथ वह भी टीवी के परदों पर किसी तरह दिखाई पड़ जाए। जो लोग उसके पेड़ के नीचे खड़े थे, उन्होंने बताया कि उसकी मौत के सिर्फ 10 मिनट पहले उसने टीवी चैनलों को बड़े शौक से अपना ‘पोज़’ दिया था। जब मंच से धुआंधार भाषण हो रहे थे तो वह पेड़ पर बैठा-बैठा चिल्ला रहा था ताकि लोग उसकी तरफ देखें, लेकिन लाउडस्पीकर की आवाज़ इतनी तेज थी कि उसे बार-बार निराशा हाथ लगती थी। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों को शक है कि वह अपनी उपेक्षा से इतना चिढ़ गया था कि उसने भीड़ का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने गले पर एक सफेद गमछा लपेट लिया और दूसरा गमछा उस पेड़ की एक मोटी टहनी से बांध लिया। उसे लग रहा था कि टीवी चैनल इस भयावह दृश्य की उपेक्षा नहीं कर पाएंगे और सारा फोकस उस पर आ जाएगा, लेकिन इस बीच उसका दायां पैर फिसल गया और वह गमछा उसके लिए फांसी का फंदा बन गया। यह व्याख्या और उसके कई चित्र एक अंग्रेजी अखबार ने छापे हैं। पता नहीं सत्य क्या है। अब गृह मंत्रालय की जांच शायद इस दुर्घटना के सत्य को उजागर कर सके। इस जांच में यह भी पता किया जाना चाहिए कि उस वक्त पुलिस क्या कर रही थी?
यह तो स्पष्ट है कि गजेंद्र कोई मामूली किसान नहीं था। उसने अपनी आखिरी पर्ची में भी खुद को किसान का बेटा ही कहा है। किसान नहीं कहा! पिछले 10-15 साल में उसने खेती कितनी की, पता नहीं लेकिन राजनीति जमकर की है। वह अलग-अलग पार्टियों का सदस्य रहा था और चुनाव भी लड़ चुका था। पहले उसने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की और विधायक का चुनाव लड़ा। वह बुरी तरह हार गया। जब उसे दुबारा टिकट नहीं मिला तो उसने समाजवादी पार्टी में छलांग लगा दी। चुनाव लड़ा और फिर हार गया। फिर उसने कांग्रेस में किस्मत आजमाई, लेकिन वहां भी उसकी दाल नहीं गली। अब उसने आम आदमी पार्टी का दामन थामा, लेकिन उसके नेताओं से उसका मिलना भी नहीं हो पा रहा था। जो आदमी एक मिनट से भी कम समय में दुनिया के बड़े-बड़े नेताओं को पगड़ी बांधकर शोहरत पा चुका था, वह अपनी इतनी बेइज्जती कैसे बर्दाश्त कर सकता था? इसीलिए ‘आप’ की रैली के दौरान गजेंद्र ने यदि आत्महत्या का मार्ग स्वेच्छा से चुन लिया हो तो इसमें आश्चर्य क्या है?
लेकिन आश्चर्य तो हमें है, हमारे नेताओं की बुद्धि पर। अभी यह ठीक से पता भी नहीं कि गजेंद्र ने आत्महत्या की है या उसका पैर फिसल गया था, लेकिन वे गजेंद्र की मौत के लिए एक-दूसरे पर प्रहार कर रहे हैं। मगर के आंसू बहा रहे हैं। ‘आप’ के नेता ने पेड़ पर लटके गजेंद्र के लिए कहा कि हमारी रैली को चौपट करने के लिए यह भाजपा की साजिश है। भला, यह भाजपा की साजिश कैसे हो सकती है? क्या भाजपा किसी किसान की आत्महत्या करवाएगी और क्या वह देश को यह संदेश देगी कि उसके भूमि-अधिग्रहण विधेयक से सारे देश के किसान नाराज़ हैं? वह अपनी ही कब्र क्यों खोदेगी?
हां, यदि यह आरोप कांग्रेस पर लगाया जाता तो कुछ नादान लोग उस पर जरूर भरोसा कर सकते थे, लेकिन कांग्रेस का भी अजीब हाल है। उसके नेता राहुलजी कहते हैं कि देखिए, देश के किसान मोदी सरकार के भूमि-अधिग्रहण विधेयक से कितने तंग हैं कि वे आत्महत्या कर रहे हैं। जो वास्तव में तंग हैं, वे फसल की बर्बादी से हैं, अपनी गरीबी से हैं। वे जरूर आत्महत्या करते हैं। उन आत्महत्याओं पर हमारे नेताओं का ध्यान भी नहीं जाता। नौटंकियों पर जरूर जाता है। नौटंकी के जवाब में नौटंकी होने लगती है। नेताओं की खाल इतनी मोटी हो जाती है कि वे किसी की मौत को भी नौटंकी ही समझते हैं। वरना, क्या वजह है कि जब गजेंद्र की लाश को नीचे उतारा गया, तब भी ‘आप’ के नेताओं की नौटंकी रुकी नहीं, चलती रही।
गजेंद्र की मौत का कारण जो भी हो, आखिर वह एक इंसान था, वह ‘आप’ का कार्यकर्ता था, वह ‘आप’ की रैली का हिस्सा था। गजेंद्र के जाने का दुख किसी को नहीं है। यह इस बात से जाहिर है कि सारे नेता एक-दूसरे की टांग-खिचाई में लगे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो अपने रूखेपन के लिए विख्यात हो चुके हैं, क्या कमाल का मार्मिक बयान जारी करते हैं। वे राहुल गांधी को भी मात करते हैं। वे कहते हैं, ‘सिर्फ गजेंद्र नहीं, ‘किसान गजेंद्र’ की मौत ने सारे देश को दुखी कर दिया है। हम बुरी तरह से टूट गए हैं और निराश हुए हैं।’ वाह, क्या बात है! वे शायद आम आदमी पार्टी को निशाना बना रहे हैं। क्या हमारे नेताओं को पता नहीं है कि देश की जनता अब यह अच्छी तरह समझने लगी है कि मगर के आंसू और मनुष्य के आंसू में क्या फर्क है?