शायद उन्हें पता नहीं है कि राहुलजी के लिए बोलना आसान है। पढ़ने में उन्हें मुश्किल हो सकती है। जो भी हो, दूसरे दिन राहुल ने संसद भी हिला दी लेकिन अफसोस है कि उनके हमउम्र गजेंद्र की मौत पर नेताओं की जो नौटंकी चल रही है, उसमें भाग लेने के लिए वे दिल्ली में उपस्थित नहीं हैं। वे दिल्ली में कैसे रहते? निर्भया की मौत के समय भी वे अन्तर्ध्यान हो गए थे। और अब तो स्वयं भगवान शिव का निमंत्रण था। वे मना कैसे करते?
मंदिर के गर्भ-गृह से लौटने पर उन्होंने कहा कि मुझे अपार शक्ति मिली। मुझे आग सी महसूस हुई। क्या खूब? कैसी आग, उन्होंने बताया नहीं। किसी तीर्थयात्री को क्या कभी आपने ऐसा कहते हुए सुना? भगवान शिव ने ये आग राहुलजी को इसलिए दी है कि वे पूरे देश को गर्म कर दें। भोलेनाथ ने अपने आशीर्वाद के लिए अब एक दूसरे भोलेनाथ को चुन लिया है। भोलेनाथ सारे देश में ‘बाबा’ के नाम से जाने जाते हैं। क्या अदभुत संयोग है कि राहुलजी को भी लोग राहुल बाबा कहते हैं। दोनों बाबाओं की कैसी चमत्कारी जोड़ी है! भोले बाबा-राहुल बाबा! बम-बम! भोले-भोले!
कुछ खास टीवी चैनल खुद बम-बम हो गए हैं। उनके पास बम-बम भोले को दिखाने के अलावा कुछ है ही नहीं। बेचारे कांग्रेसी मौन भाव से यह ‘अमृत—पान’ कर रहे हैं। उनका सेक्युलरिजम अंदर ही अंदर खदबदा रहा है। भगवा वस्त्रधारी साधु के हाथों तिलक लगवाकर हमारे भोले भंडारी राहुलजी क्या संघियों पर मोहिनी डालने की कोशिश कर रहे हैं? 56 दिन की साधना, पता नहीं, क्या—क्या रंग दिखाएगी?