गीता मेरे गीतों में, गीत संख्या – 6
तत्वदर्शी की पदार्थदृष्टि
श्री कृष्ण बोले – अर्जुन ! पदार्थदृष्टि का उपदेश तुझे मैं देता हूं,
‘असत् से भाव नहीं हो सकता’ – ऐसा संदेश तुझे मैं देता हूं।
‘कर्त्ता व सत् का अभाव नहीं हो सकता’- मेरी बात यह भी सुन,
समझें तत्वदर्शी इनके अंतर को – यह बात तुझे बता मैं देता हूं ।।
सत्य शाश्वत सनातन है – जग में जिसे कोई मिटा नहीं सकता,
हर काल में रहता एकरस – इसका पता वेद से मिल सकता।
सत्य सनातन धर्म के रक्षक वेद- ईश्वर ने दिए थे ऋषियों को,
हैं सत्य धर्म के प्रतिपादक – ना असत्य कहीं पर मिल सकता।।
सत् अव्यक्त प्रकृति होती, यह एकरस कभी नहीं रह पाती,
अज्ञानी जन इसमें रम जाते, यह पटक-पटककर मार लगाती।
पार्थ ! प्रकृति-पाशों को काटना अपना धर्म मानते ज्ञानी जन,
मोक्षानंद हेतु मिला यह जीवन, ईश्वर की ये अनमोल है थाती।।
बहता पानी ही बहते – बहते एक दिन सागर से हाथ मिलाता है,
बहने से जिसने मुंह फेरा वह रुका-थमा दुर्गंध युक्त हो जाता है।
कर्तव्य धर्म को पूर्ण करो और बहते भी रहो निरंतर – मेरे मीत !
पार्थ !जीत को लक्ष्य बनाने वाला भला कहां कहीं रुक पाता है ?
प्रकृतिपाशों से दूर हटो और सत्य सनातन का पथ पहचानो,
हर देश-काल में निज धर्म निभाओ यह मर्म धर्म का तुम जानो।
हर परिस्थिति एक चुनौती होती, जो संयम की परीक्षा लेती है,
धैर्य – धर्म को धारण करना, हर काल में अपनी मर्यादा मानो।।
पार्थ ! जो धर्मक्षेत्र में खड़ा हुआ किंकर्तव्यविमूढ़ हो रुक जाता है,
हम कभी नहीं आगे बढ़ सकते – जब मन में संशय घुस जाता है।
द्वन्द्व -भाव से दूर हटो, और निज बुद्धि को निर्मल कर शांत रहो,
यह सूत्र विजय पाने का है ,जो अपनाए वह विजय हो जाता है।।