विनय आर्य (महामंत्री दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा)
अमेरिका के टेक्सास प्रांत में 18 साल के एक बंदूकधारी ने स्कू ल में घुसकर 19 बच्चोंी समेत 21 लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी। अमेरिकी इतिहास की सबसे निर्मम हत्याकओं में शामिल टेक्साूस की इस गोलीबारी के जिम्मेदार हमलावर का नाम है- सल्वामडोर रामोस। रामोस ने सबसे पहले अपनी दादी की गोली मारकर हत्याि की और फिर स्कूल का रुख किया। वो 18 साल का हो चुका था और वयस्कस होते ही उसने सबसे पहले राइफल उठाकर 21 लोगों को मौत के घाट उतार दिया। हालाँकि हत्यारा भी पुलिस भी जवाबी कार्रवाई में मारा गया।
आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका के स्कूलों में वर्ष 2021 में गोलीबारी की 34 घटनाएं सामने आईं थी। वर्ष 2020 में 10 स्कूलों तो 2018 व 2019 में 24-24 केस सामने आए थे। इसके अलावा वर्ष 2022 में अब तक 27 स्कूलों में गोलीबारी की घटनाएं घटित हो चुकी हैं। यानि इस साल इन चार पांच महीनों में 27 स्कूलों में गोलीबारी हो चुकी है। शायद इतनी गोलाबारी तो इन पांच महीनों भारत और पाकिस्तान के बॉर्डर पर भी ना हुई हो!
पिछले दिनों फ्लोरिडा के हाई स्कूल में 17 बच्चों व्यस्क और किशोरों की गोली मारकर हत्या कर दी गयी थी। इससे पहले भी और बाद में ऐसी अनेकों दर्दनाक घटनाएँ हो चुकी है। अप्रैल 1999 में अमेरिका के कोलंबिन हाईस्कूल में दो छात्रों ने गोलाबारी कर 13 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। अप्रैल 2007 में अमेरिका के वर्जिनिया टेक में एक छात्र ने गोलाबारी कर 32 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। अमेरिका के स्वतंत्र डेटा संग्रह करने वाले संगठन ‘गन वायलेंस आर्काइव’ की एक रिपोर्ट से सामने आया पिछले पांच सालों में अमेरिका के स्कूलों में 100 से अधिक मामले गोलीबारी के सामने आ चुके हैं। वहीं इस साल अमेरिका में स्कूलों के अलावा भी 200 से ज्यादा घटनाएं घटित हो चुकी हैं।
लगता है, अमेरिका को अपनी चिंता नहीं है! उसे तो भारत में जुनेद की चिंता करनी है। अख़लाक़ पर भारत को ज्ञान परोसना है। दलितों की चिंता का दिखावा करना और अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित धार्मिक हिंसा, भारत में मानवाधिकार पर लम्बी चर्चा करना है। हिन्दू आतंकवाद का एजेंडा तैयार करना है। चाहें इसमें उनके देश में आग लगे, मासूम बच्चों को कोई गोली से भून दे। बस हर साल भारत के खिलाफ एक रिपोर्ट जरुर पेश करनी है। जबकि फ्लोरिडा हाई स्कूल में 17 लोगों की गोली मारकर हत्या कर देने के अमेरिका में बंदूक नियंत्रण के कड़े कानूनों की मांग को लेकर 800 से ज्यादा जगहों पर 10 लाख से ज्यादा लोगों ने अमेरिका के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए थे। तब एक बहस भी उभरकर आई थी कि अमरीका के बंदूक कानून क्या इतने लचीले हैं कि वे मानवता पर संकट बन गए हैं?
आंकड़े बताते है कि आज अमेरिका में प्रति 100 नागरिकों के पास 120 हथियार हैं। जबकि 2011 में ये आँकड़ा 88 था। एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2019 से अप्रैल 2021 के बीच 75 लाख अमेरिकी लोगों ने पहली बार बंदूक खरीदी। यानि इसका मतलब ये हुआ, कि अमेरिका में और एक करोड़ 10 लाख लोगों के घर में बंदूक आ गई, इसमें भी अजीब बात ये है कि बंदूक ख़रीदने वाले इन लोगों में 50 लाख बच्चे और आधी संख्या औरतों की थी।
ये कोई अमेरिका के शक्तिशाली होने का उदहारण नहीं है। बल्कि इन बंदूकों के आने से अमेरिका के यूएस सेंटर्स फ़ॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) के अनुसार केवल 2020 में, अमेरिका में 45,000 से ज़्यादा लोग बंदूकों की वजह से मारे गए। इनमें हत्याएँ भी शामिल हैं और आत्महत्याएँ भी। हालाँकि चर्चा अमेरिका में हुई सामूहिक हत्याओं की ज़्यादा होती है, मगर वास्तव में ऊपर जो संख्या है उनमें 24,300 मौतें यानी 54ः आत्महत्याएँ थीं। 2016 में हुए एक अध्ययन में कहा गया कि आत्महत्याओं का हथियारों के पास होने से बड़ा संबंध होता है।
टेक्सास की घटना पर भी अमेरिकी राष्ट्र पति जो बाइडन ने इस हत्या कांड के लिए (गन लॉबी) को जिम्मेादार ठहराया है। उन्होंरने कहा कि अब इसके खिलाफ कदम उठाने का समय आ गया है। बाइडन चाहे जो भी दावा करें लेकिन अमेरिका में गन लॉबी इतनी ज्या दा ताकतवर है कि कोई उसका विरोध करने की हिम्मेत नहीं कर पाता है। बाइडन से पहले भी बंदूकों पर नियंत्रण को लेकर वहां कई बार आवाजे उठ चुकी है। लाखों लोग सड़कों पर निकलते है फिर सब कुछ शांत हो जाता है। जबकि 2020 में अमेरिका में हुए एक सर्वे में केवल 52% लोगों ने इसका समर्थन किया, जबकि 35% लोगों का मानना था कि किसी बदलाव की ज़रूरत नहीं और 11% लोग ऐसे भी थे जिनका मानना था कि अभी जो क़ानून हैं उन्हें और नरम बनाया जाना चाहिए।
इसमें एक 52 फीसदी हिस्सा है जो ये कहता है हथियारों का ये वितरण बंद होना चाहिए उसे हर बार मुंह की खानी पड़ती है। कारण वहां बंदूकों का समर्थन करनेवाली एक बड़ी लॉबी है, जिसका नाम है नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन (एनआरए) इनके पास इनता पैसा है कि इसके ज़रिये ये अमेरिकी संसद के सदस्यों को प्रभावित कर लेते हैं। पिछले कई चुनावों में, एनआरए और उसके जैसे अन्य संगठनों ने बंदूकों पर रोक लगाने वाले गुटों की तुलना में बंदूकों के समर्थन को लेकर कहीं ज़्यादा पैसा ख़र्च किया। यानि नेशनल राइफ़ल एसोसिएशन का मानना है कि बच्चें मरे तो मरें लेकिन हमारा धंधा बंद नहीं होना चाहिए। इस कारण उन्होंने मोह्हले में पान और नाई की दुकान की तरह हथियारों की दुकान खोले बैठे है। हथियार भी ऐसे बाँट रहे है मानो जैसे कोई सिम कार्ड हो।
मनोविज्ञान कहता है कि हथियार लेने के बाद फिर उनका उपयोग भी करने का मन करने लगता है। अमेरिका के संदर्भ में ये मनोविश्लेषण इस लिए सटीक बैठता है क्योंकि वहां बच्चें, स्कूलों में जरा सी बात मजाक, फब्ती या आलोचना पर अपने साथियों को ही गोली से भून देते है। कारण अमेरिका में एक ऐसी विकृत संस्कृति पनप चुकी है जहां अकेलेपन के शिकार एवं मां-बाप के लाड़-प्यार से उपेक्षित बच्चे कुंठा में आकर हिंसा कर रहे हैं। पिछले एक दशक में छात्र हिंसा से जुड़ी कई वारदातें सामने आ चुकी हैं। दिसंबर 2012 में अमेरिका के न्यूटाउन कनेक्टिकट इलाके के सैंडी हुक एलिमेंट्री स्कूल में हुए एक खौफनाक हमले में एक 20 साल के लड़के एडम लंजा ने 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। लंजा ने भी स्कूल में हमले से पहले अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी थी।
कारण एलीना के तीन बेटे एक का बाप पीटर दूसरे जा जेम्स तीसरे का कोई ओर क्या ये बच्चें आपस में सामजस्य बना पाएंगे। दूसरा छोटे होते परिवार और बच्चों को केवल धन कमाऊ कैरियर के लायक बना देने वाली प्रतिस्पर्धा का दबाव भी उन्हें विवेक शून्य बना रहा है। सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से ये बच्चें एक किस्म से प्रेसर कुकर बन रहे है, जो जरा सी आंच पर फट जाते है। कल यूवाल्डे शहर में रॉब एलिमेंट्री स्कूल में एक फटा, जो 19 मासूमों का जीवन लील गया। आगे कोई दूसरा तैयार हो रहा होगा।