स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती रचित पुस्तक चतुर्वेद-शतकम् का परिचय”
ओ३म्
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हमारे पुस्तक संग्रह में ‘चतुर्वेद शतकम्’ नामक पुस्तक के दो संस्करण हैं। इसका पुराना संस्करण ‘वेद ज्योति’ नाम से प्रकाशित हुआ था जिसमें चारों वेद से 100 मन्त्रों का चयन कर मन्त्र के पदार्थ एवं भावार्थ दिये गये हैं। इसका प्रथम संस्करण सम्वत् 2026 विक्रमी अर्थात् लगभग सन् 1970 में प्रकाशित हुआ था। पुस्तक के लेखक स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती जी हैं। पुस्तक स्वाध्याय की दृष्टि से एक उत्तम ग्रन्थ है। इसका अध्ययन करने से हम संक्षेप में चारों वेदों का स्वाध्याय कर सकते हैं। इस पुस्तक का नया संस्करण भव्य साज सज्जा के साथ हिण्डोन सिटी के आर्य प्रकाशक ऋषिभक्त श्री प्रभाकरदेव आर्य जी ने अपनी प्रकाशन संस्था ‘श्री घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास’ से सन् 2016 में प्रकाशित किया है। पुस्तक का मूल्य 70 रुपये है। पुस्तक में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद के क्रम से एक-एक सौ मन्त्र पदार्थ एवं भावार्थ सहित दिये गये हैं। पुस्तक के आरम्भ में पतजंलि योगपीठ के आयुर्वेदाचार्य आचार्य बालकृष्ण जी चित्र दिया गया है और बताया गया है कि उनका स्नेहिल सहयोग न्यास को उनके प्रकाशन कार्यों में मिलता रहता है। पुस्तक का आमुख श्री वैद्यनाथ शास्त्री जी ने लिखा है।
पुस्तक में महात्मा आनन्द स्वामी जी के आशीर्वाद-वचनों को भी स्थान दिया गया है। महात्मा जी ने ‘शान्ति चाहिए तो वेद के मार्ग पर चलो’ शीर्षक से लिखा है कि जब से वेद-वाद छूटा है, तब से अनेक वाद-विवाद चल पड़े हैं और इन विवादों के बवण्डर में मानव का सुख-चैन-शान्ति ऐसे उड़ गयी है जैसे आंधी में रुई उड़ जाती है। वेदों के विद्वान स्व. स्वामी अच्युतानन्द जी सरस्वती ने मेरी प्रार्थना पर चारों वेदों में से 100-100 मन्त्र चुनकर सर्वसाधारण के लिए उन्हें व्याख्या सहित संग्रह किया था। इन 400 वेद मन्त्रों का पाठ आपके हृदय में उत्साह, उल्लास तथा शान्ति का स्रोत बहाएगा और बुद्धि में सात्विकता और गम्भीरता लाएगा तथा कर्मशील बनाकर जीवन सफल बनाने का मार्ग दिखाएगा। प्रत्येक मनुष्य को शान्ति और सुख-प्राप्ति के लिए वेद के मार्ग पर चलना ही होगा। वेद मार्ग से ही मानव का कल्याण-उत्थान और समस्याओं का समाधान होगा, ऐसा मेरा निश्चित विश्वास है। प्रभु पुत्रो! शान्ति चाहिए तो ‘वेद’ की बात मानो, और ‘वेद’ प्रचार के लिए जो कुछ भी कर सकते हो, अवश्य करो। प्रभु सभी का कल्याण करें।
महात्मा आनन्द स्वामी जी के आशीर्वाद वचनों के साथ पुस्तक में मन्त्र, उनके पदार्थ व्याख्या तथा भावार्थ दिये गये हैं। प्रथम ऋग्वेद के 100 मन्त्र व इनके पदार्थ एवं भावार्थ दिए गये हैं। इसके पश्चात यजुर्वेद, फिर सामवेद और अन्त में अथर्ववेद के 100 मन्त्र व इनके पदार्थ एवं भावार्थ दिये गये हैं। इन 400 मन्त्रों के पदार्थ एवं भावार्थ से युक्त पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या 168 है। हम आशा करते हैं कि स्वाध्याय के इच्छुक बन्धु इस पुस्तक से लाभ उठायेंगे।
पुस्तक पढ़ते हुए सभी पाठकों को पुस्तक के लेखक का परिचय जानने की भी इच्छा होती है। अतः हम वैदिक विद्वान कीर्तिशेष डा. भवानीलाल भारतीय जी की पुस्तक ‘आर्य लेखक कोश’ से स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती जी का परिचय दे रहे हैं। स्वामी अच्युतानन्द सरस्वती जी का जन्म अविभाजित पंजाब के सरगोधा जिले के खुशाब नामक कस्बे में सन् 1853 में हुआ। इन्होंने वेदान्त की विचारधारा में दीक्षित होकर संन्यास ग्रहण कर लिया और एक संन्यासी-मण्डल का गठन कर उसके मण्डलेश्वर बन गये। स्वामी दयान्द से एक बार उनका वेदान्त विषय पर विचार (शास्त्रार्थ) भी हुआ था। यह भी ज्ञात हुआ है कि इन्होंने अद्वैतमत के अनुसार उपनिषदों की एक टीका भी लिखी थी। पं. गुरुदत्त विद्यार्थी की प्रेरणा से स्वामी अच्युतानन्द ने अद्वैतवाद का परित्याग किया ओर 1888 में अपने अनुयायी संन्यासीमण्डल को छोड़कर आर्यसमाज की दीक्षा ले ली। तत्पश्चात् वे आजीवन वैदिक धर्म के प्रचार में संलग्न रहे। 30 सितम्बर 1941 को 88 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
स्वामी जी के लेखन कार्य-व्याख्यान माला, यह संस्कृत ग्रन्थों से संगृहीत सूक्तियों का विशाल संग्रह है। इसमें विभिन्न 52 विषयों से सम्बन्धित सुभाषितों को एकत्रित किया गया है। इसका हिन्दी अनुवाद पं. यज्ञदेव शास्त्री ने किया है जो गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली ने प्रकाशित किया था। मूल ग्रन्थ 1962 विक्रमी (सन् 1905) में वत्सला यंत्रालय बड़ौदा से मुद्रित होकर प्रकाशित हुआ था। चारों वेदों के शतक आर्य प्रादेशिक सभा ने प्रकाशित किये। वेद ज्योति-(चारों शतकों का समुच्चय) 2026 विक्रमी में प्रकाशित हुआ। (सम्भवतः यही पुस्तक हमारे पास है जिसमें प्रकाशन वर्ष नहीं दिया गया है। पुस्तक वेद प्रचारक मण्डल, 60/13, रामजस रोड, दिल्ली-5 से प्रकाशित हुई थी। पुस्तक का मूल्य 12 रुपये था।)। आर्याभिविनय: द्वितीय भाग-इसे स्वामी दयानन्द कृत आर्याभिविनय का पूरक ग्रन्थ कहना चाहिए। इसमें साम और अथर्ववेद के मन्त्रों का सार्थ संकलन है। हम (इन पंक्तियों के लेखक) अनुभव करते हैं कि स्वामी जी की पुस्तक व्याख्यान-माला का गोविन्दराम हासानन्द से सन् 1905 में प्रकाशित संस्करण पुनः प्रकाशित होना चाहिये जिससे इसकी रक्षा हो सके और वर्तमान तथा भावी पीढ़िया इससे लाभान्वित हो सकें। स्वामी जी ने आर्याभिविनय द्वितीय भाग जो ग्रन्थ लिखा था उसका भी इसी दृष्टि से प्रकाशन भी किया जाना चाहिये। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य