दिलवाड़ा के जैन मंदिरों की स्थापत्य कला पर है भारत को नाज

images (35)

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

मन्दिर की छतों पर झूमते, लटकते कमलआकृति के गुम्बज का पेंडेंट नीचे की ओर आते हुए गोलाकार संकरा होता हुआ एक बिन्दु बनाता है जो कमल की तरह प्रतीत होता है।जगह-जगह पर अम्बिका, पद्मावती, शीतला, सरस्वती, नृत्य करती नायिकाएं हाथी-घोड़े, हंस, वाद्य बजाते वादक। स्तम्भों एवं तोरण द्वारों पर बनी कलात्मक कृतियां। छत पर बनी 16 विद्या की अलंकृत देवी मूर्तियां तथा चमकदार और संगमरमर की कोमलता से की गई शिल्पकारी की पारदर्शी उत्कृष्टता देलवाड़ा के जैन मन्दिरों में देखते ही बनती है। यहां की नयाभिराम शिल्प एवं मूर्तिकला रणकपुर के जैन मन्दिरों से कहीं अधिक है। साथ ही ये मन्दिर किसी अजूबे से भी कम नहीं है।
मन्दिरों के कला वैविद्य के दर्शन हमें छत, द्वार, तोरण एवं सभा मण्डप में होते हैं जिनका अद्भुत शिल्प एक दूसरे से भिन्न है। इन मन्दिरों में हमें जैन संस्कृति के वैभव एवं भारतीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्ण इन मंदिरों को देश के सर्वाधिक लोकप्रिय आकर्षणों में से एक माना जाता है। दर्शक इनकी बेजोड़ कारीगरी देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है और मन्दिरों की जादुई कला के सम्मोहन में खो जाता है। बाहर से साधारण दिखने वाले अंदर से बेमिसाल शिल्पकला के नक्काशीदार पांच मंदिरों के समूह का निर्माण श्वेत संगमरमर से 11वीं और 13वीं सदी के मध्य किया गया था। इनमें दो मन्दिर विशाल एवं भव्य हैं तथा तीन मन्दिर उनके अनुपूरक मन्दिर हैं। जैन मंदिरों का यह समूह राजस्थान के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू पर सिरोही जिले का विश्व प्रसिद्ध आकर्षण है।देलवाड़ा के भव्य जैन मंदिर अपने ऐतिहासिक ,कलात्मक और प्राकृतिक महत्व की वजह से भारत की विश्व धरोहर में शामिल होने की हर शर्त को पूर्ण करते हैं।
विमल वसाही मन्दिर
कलात्मक जैन मन्दिरों के समूह में सबसे बड़ा मन्दिर प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित विमल वसाही है। इस मन्दिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजा भीमदेव के मंत्री और सेनापति विमल शाह ने 1031 ई. में पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण होने पर करवाया था। बताया जाता है कि मंदिर को बनाने में 1500 शिल्पी व 1200 श्रमिकों ने अपनी हतोड़ी – छेनी से मूर्तिशिल्प का सम्मोहन साकार किया। मंदिर में प्रयुक्त सफेद संगमरमर चालिस किमी दूर से हाथियों की पीठ पर लाद कर यहाँ लाया गया। इन तमाम कारीगरों की चौदह साल की मेहनत से, 18 करोड़ रुपयों में यह मंदिर बनाया गया।
13 हजार शिल्पियों ने मन्दिर करीब 98 फीट लम्बा एवं 42 फीट चौड़ाई लिए है। विमल वसही मंदिर चार मुख्य हिस्से में विभक्त है। सीढ़ियों से थोड़ा उतर कर जैसे ही इसके प्रांगण में पहुँचते हैं सामने रंग मंडप या सभा मंडप दिखता है। इसके ठीक आगे नवचौकी और उसके बाद गर्भ गृह है जहाँ आदिनाथ की मूर्ति विराजमान है। आहाते के चारों तरफ़ गलियारे है जिनके किनारे बने छोटे छोटे कक्षों में अलग अलग तीर्थांकरों की मूर्तियाँ हैं।
श्वेताम्बर जैन धर्मावलंबियों के इस पावन तीर्थ मन्दिर में 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ की करूणा बिखेरती श्याम वर्णीय प्रतिमा की प्रतिष्ठा चैत्र कृष्ण तृतीया संवत् 1287 को आचार्य श्री विजयसेन सूरी के करकमलों से हुई। इस मंदिर में आदिनाथ की मूर्ति की आँखें असली हीरक की बनी हुई हैं। और उसके गले में बहुमूल्य रत्नों का हार है।
मन्दिर के स्तम्भ, दीवार, तोरण, छत एवं गुम्बज की बारीक नक्काशी और मूर्ति शिल्प अत्यंत मोहक है। फूल-पत्तियों व अन्य मोहक डिजाइनों से अलंकृत, नक़्क़ाशीदार छतें, पशु-पक्षियों की शानदार संगमरमरीय आकृतियां, सफ़ेद स्तंभों पर बारीकी से उकेर कर बनाई सुंदर बेलें, जालीदार नक़्क़ाशी से सजे तोरण देखते ही बनते हैं। विशाल गोल गुम्बज में 11 गोलाकार पंक्तियों में उकेरी गई मूर्तियां दर्शनीय हैं। प्रत्येक स्तम्भ पर ऊपर की ओर कई प्रकार के वाहन पर आरूढ़ 16 विद्या देवियों की प्रतिमाएं नजर आती हैं। जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएं विमल वसही मंदिर के अष्टकोणीय कक्ष में स्थित है। मन्दिर में 57 देवरियां स्थापित हैं जिनमें तीर्थंकरों एवं अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।
लून वसाही मन्दिर
लून वसाही भी विमल वसाही मन्दिर के सदृश्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस मन्दिर का निर्माण सोलंकी शासक तेजपाल और वास्तुपाल ने करवाया था। बाहर से सादे दिखने वाले इस मन्दिर की भीतरी कारीगरीपूर्ण शिल्पकला का कमााल की है। संगमरमर पत्थर से इतनी बारीक कारीगरी की गई है कि संगमरमर पूरा पारदर्शी नजर आता है। पच्चीकारी इतनी जीवंत और सजीव है कि दर्शक को एक टक अपलक निहारने को मजबूर कर देती है।
लूण वसाही मन्दिर के निर्माण की रोचक कहानी है। किवदंतियों के अनुसार अपनी एक धार्मिक यात्रा के पूर्व इन भाइयों ने अपना धन एक पेड़ के नीचे गाड़ दिया। तीर्थाटन से वापस लौटने पर उसी जगह उन्हें उससे अधिक धन मिला। तेजपाल की पत्नी अनुपमा ने इसे शुभ संकेत मानते हुए उन्हें इस धन से मंदिर निर्माण की सलाह दी। तेजपाल ने माउंट आबू के अतिरिक्त गिरनार व अन्य जगहों पर तीर्थांकर नेमीनाथ को समर्पित कई मंदिर बनवाए। इस मंदिर का नाम तेजबाल के भाई लूण के नाम पर रखा गया है जिसकी बचपन में ही अकाल मृत्यु हो गयी थी। लगभग 1500 वर्गमीटर में फैले इस मंदिर के रूप मंडप का गुंबद विमल वसही के गुबंद से ज्यादा बड़ा और मोहक है।
मन्दिर के रूप मण्डप का गुम्बद विमल वसाही के गुम्बद से अधिक बड़ा और आकर्षक है। गुम्बद के किनारे वृत्ताकार पट्टियों में 72 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बैठी हुई मुद्रा में हैं। मन्दिर के गलियारों में तीर्थंकर नेमीनाथ के जीवन की प्रमुख घटनाओं को पाषाण में खूबसूरती से तराशा गया है। मन्दिर में देवरानी और जेठानी के गोखड़े अत्यन्त कलात्मक रूप से बनाये गये हैं जिनमें भगवान आदिनाथ और शान्तिनाथ की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। बताया जाता है कि तेजपाल और वास्तुपाल की पत्नियों में होड़ लगी थी कि उनके गोखड़े दूसरे से बेहतर हों। कारीगरों को कई बार इन स्तंभों का पुनर्निर्माण किया। अंत में एक कारीगर ने ऐसी संरचना तैयार की जो दिखने में हूबहू मिलती थी पर जेठानी के गोखड़े में कुछ ऐसे महीन बदलाव किए जिनसे उनकी वरीयता बनी रहे।
पीतलहार मन्दिर
इस मन्दिर के गर्भगृह में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की पंचधातु की बनी 40 क्विंटल भारी प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा में पीतल का प्रमुखता से समावेश होने की वजह से इसे पीतलहर का नाम दिया गया। मंदिर में मुख्य गर्भगृह, गुड मंडप और नवचौक है। मन्दिर में स्थित शिलालेख के अनुसार 1468-69 ईस्वी में 108 मूडों (चार मेट्रिक टन) वजनी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई थी। पन्द्रहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर का निर्माण अहमदाबाद के सुल्तान दादा के मंत्री भीम शाह ने कराया था, जिन्होंने राणकपुर के मंदिरों की नींव रखी थी।
श्री पार्श्वनाथ मंदिर
यह एक तीन मंजिला मन्दिर हैं, जो दिलवाड़ा के सभी मंदिरों में सबसे ऊंचा है। जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित यह मंदिर मांडलिक तथा उसके परिवार द्वारा 1458-59 में बनाया गया था। गर्भगृह के चारों मुखों पर भूतल पर चार विशाल मंडप हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर ग्रे बलुआ पत्थर में सुंदर शिल्पाकृतियां हैं जिनमें दीक्षित, विद्या देवियां, यक्ष, शब्दांजियों और अन्य सजावटी शिल्पांकन शामिल हैं जो खजुराहो और कोणार्क के मंदिरों की याद दिलाते हैं। तीन मंजिले मंदिर की चारों दिशाओं में मंडप बने हैं जिनके आगे पार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित है।
श्री महावीर स्वामी मंदिर
यह मन्दिर सभी मंदिरों की अपेक्षाकृत छोटा मन्दिर है जो जैन धर्म 24वें और अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी को समर्पित है। दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है एवं ऊपरी दीवारों पर सिरोही के कलाकारों द्वारा 1764 ई. में चित्र बनाए गये हैं। इसका निर्माण 1582 ई. में किया गया था।
आबू पर्वत पर देलवाड़ा के मंदिरों का स्थापत्य एवं मूर्तिशिल्प की पॉलिशिंग इतनी चमकदार कि सैकड़ों वर्ष पुरानी होने के बाद भी नई लगती है। ये खूबसूरत जैन मन्दिर जहां जैन धर्म की कला, आस्था और विश्वास के प्रतीक हैंं। श्रद्धालु यहां के दिव्य वातावरण एवं अदभुत अनुभूति को भूल नही पाते हैं शायद इसीलिये यहाँ पर हर धर्म के लोग और पूरे विश्व के कोने-कोने से आने वाले सैलानी खिंचे चले आते हैं। जैन धर्मावलंबियों के लिए ये मंदिर दिन के बारह बजे तक के लिए खुले रहते हैं। इसके उपरांत सामान्य पर्यटकों को इसे देखने की सुविधा उपलब्ध होती है। मंदिर माउंट आबू शहर के मध्य से करीब 3 किमी दूरी पर स्थित हैं। मंदिर जाने के लिए बस और टैक्सी की सुविधा आसानी से उपलब्ध हैं।
महत्वपूर्ण जानकारी
इन भव्य कलात्मक जैन मंदिरों के साथ – साथ माउंट आबू में पहाड़ी पर स्थित अर्बुदा देवी माता का मन्दिर, अचलगढ का किला, अचलेश्वर महादेव मंदिर, गुरुशिखर का नैसर्गिक सौन्दर्य, गुरु दत्तात्रेय मन्दिर, चारों ओर पर्वतों के मध्य नक्की झील का सौंदर्य, टाड राक, सन सेट प्वाइंट एवं ब्रह्मकुमारी के शांति उद्यान आदि दर्शनीय स्थल है। माउंट आबू में एडवेंचर लवर्स ट्रैकिंग एंड कैंपिंग का लुत्फ ले सकते हैं। एडवेंचर गतिविधियों में प्रो क्लाइमिंग, रोप लाइन, नाइट कैंपिंग, वाइल्ड लाइफ का मज़ा ले सकते हैं वहीं नाइट कैंपिंग में आदिवासी कल्चर का आंनद ले सकते हैं। मई-जून में समर फेस्टिवल और दिसंबर में विंटर फेस्टिवल मनाया जाता है जहां पर्यटक माउंट आबू की सुंदरता के अलावा राजस्थानी लोक संगीत – नृत्य का आनंद ले सकते हैं।
टूरिस्ट प्लेस होने की वजह से यहां सभी प्रकार के फास्ट फूड, वेज स्ट्रीट फूड, नॉनवेज फ़ूड उपलब्ध हैं फिर भी आप राजस्थान का प्रसिद्ध स्पेशली माउंट आबू का प्रसिद्ध दाल बाटी चूरमा, कचोरी, पकोड़े लस्सी और घेवर का टेस्ट का तो कहना ही क्या।यहां ठहरने के लिए हर बजट के होटल, गेस्ट हाउस, धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड है। दिल्ली के साथ – साथ भारत एवं राजस्थान के सभी प्रमुख शहरों से बस सेवा से जुड़ा है। गुजरात और मध्यप्रदेश राज्यों के लिए भी यहां से बस सेवा उपलब्ध है।माउंट आबू जयपुर से लगभग 445 किमी , जोधपुर से 261 किमी और उदयपुर से 163 किमी और अहमदाबाद से 256 किमी की दूरी पर स्थित है। नजदीकी एयरपोर्ट उदयपुर का है जहां से आप 163 किलोमीटर टैक्सी या फिर रेलवे के माध्यम से जा सकते हैं। माउंट आबू में पर्यटक पूरे साल में कभी भी जा सकते हैं।

Comment: