टोक्यो बैठक से चीन की चिंताएं क्यों बढ़ी?
रंजीत कुमार
चार देशों के संगठन क्वाड (अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान) की यूक्रेन संकट की छाया में हुई चौथी शिखर बैठक में जोर चीन की आर्थिक चुनौतियों से मुकाबला करने पर रहा। चीन छोटे देशों को अपने आर्थिक मोहपाश में फांस कर अपना सामरिक जाल फैलाता है। इसी जाल को तोड़ने के इरादे से क्वाड शिखर बैठक में क्षेत्र के 12 देशों को साथ लेकर इंडो पैसिफिक इकनॉमिक फ्रेमवर्क का एलान किया गया। इस तरह क्वाड ने यूक्रेन संकट पर अपना ध्यान केंद्रित करने के बदले चीन की आर्थिक और सामरिक चुनौतियों से निपटने पर ही अधिक चर्चा की और ठोस कार्यक्रम के साथ संकल्प जाहिर किए।
चौथी बैठक का हासिल
23-24 मई को तोक्यो में आयोजित शिखर बैठक में आर्थिक क्षेत्र में चीन की महाजनगीरी से निपटने के लिए जो साझा कार्यक्रम घोषित किए गए, अगर उन्हें गंभीरता और सक्रियता से लागू किया जाए तो निश्चय ही चीन के सामरिक और आर्थिक प्रभुत्व को तोड़ने या सीमित करने में कामयाबी मिल सकती है। अगर ऐसा हो गया तो चीन अपने ही इलाके में अलग-थलग पड़ जाएगा। यही वजह है कि चीन ने क्वाड शिखर बैठक पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया दी है।
चीन अपनी आर्थिक ताकत के बल पर ही दुनिया के छोटे देशों के गैर-जनतांत्रिक नेताओं को नाजायज तरीके से प्रभावित करता है। वह पहले से ही उन देशों को विकास का सपना दिखा कर उन्हें अपने प्रभाव में लाने की रणनीति पर चलता रहा है। इसके अलावा निर्माण उद्योग के क्षेत्र में दुनिया के उद्योगों को जरूरी कच्चा माल और कलपुर्जे आदि सप्लाई करने का एक प्रमुख स्रोत बनने के बाद वह दुनिया पर अपना आर्थिक दबदबा भी कायम करने में कामयाब हुआ है। लेकिन अब क्वाड के चार सदस्य देशों ने इस सप्लाई कड़ी को तोड़ने के इरादे से कई अहम कार्यक्रमों की शुरुआत की है।
चारों देश क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नलॉजी ग्रुप बनाकर सेमीकंडक्टर चिप्स जैसे उच्च तकनीक के कलपुर्जों की सप्लाई पर चीन के एकाधिकार को तोड़ने में परस्पर सहयोग करेंगे। भारत के लिए इन उच्च तकनीक वाले कलपुर्जों की दुनिया को सप्लाई का वैकल्पिक स्रोत बनने की संभावना है। इसके साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई- जो छोटे देशों में सड़क, रेल जैसी ढांचागत परिवहन सुविधाएं बनाती है) के विकल्प के तौर पर क्वाड में इंफ्रास्ट्रक्चर कोआर्डिनेशन ग्रुप (क्वाड ढांचागत समन्वय दल) का गठन भी किया गया है। इसके लिए क्वाड की ओर से 50 अरब डॉलर आवंटित किए गए हैं।
इसके अलावा छोटे समुद्र तटीय देशों या द्वीपीय देशों के निकट के सागरीय इलाके से गैरकानूनी तौर पर मछलियां पकड़ने जैसी चीन की हरकतों पर भी लगाम लगाने के इरादे से एक महत्वपूर्ण पहल की गई है। हिंद प्रशांत के सागरीय इलाके में सारे नियम कानूनों को तोड़ते हुए चीन जिस अंधाधुंध तरीके से मछलियां पकड़ रहा है, वह समुद्री जीवन के लिए तो खतरा है ही, समुद्री पर्यावरण को भी बिगाड़ रहा है। चीन की इन गतिविधियों पर काबू पाने के लिए क्वाड ने जो योजना बनाई है, उसमें भारत की अहम भूमिका होगी।
पिछले 14 महीनों के भीतर क्वाड की चौथी शिखर बैठक का होना काफी अहम है। पहली वर्चुअल शिखर बैठक चीन से दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी के बैकग्राउंड में मार्च, 2021 में हुई थी। सितंबर, 2021 में वॉशिंग्टन में चारों देशों के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी में दूसरी शिखर बैठक हुई थी। इसके बाद मार्च, 2022 में फिर वर्चुअल शिखर वार्ता आयोजित हुई। इसके दो महीने बाद ही तोक्यो में चारों शिखर नेताओं की सशरीर मौजूदगी में हुई क्वाड शिखर बैठक ने यह आभास दिया कि ये देश दुनिया में शांति और स्थिरता को खतरा पहुंचाने वाली ताकतों की चुनौतियों से मुकाबला करने के लिए कमर कस कर एकजुट होंगे।
क्वाड के चारों सदस्य देशों का इतनी जल्दी-जल्दी मिलना संकेत देता है कि दुनिया के चारों ताकतवर देश चीन द्वारा पेश की जा रही सामरिक और आर्थिक चुनौतियों का मिल-जुलकर मुकाबला करने के लिए सक्रिय हैं। इस बात की आशंका थी कि यूक्रेन संकट में क्वाड को लपेटने से क्वाड का फोकस हिंद-प्रशांत के इलाके से हट जाएगा। लेकिन भारत की सक्रिय भागीदारी ने यह सुनिश्चित किया कि इस संगठन में इसी इलाके के मसलों पर मुख्य चर्चा हो। इसमें भारत की सक्रिय भागीदारी होना बताता है कि हिंद-प्रशांत इलाके में भारत की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्वाड के गठन के पहले से ही हिंद-प्रशांत के दक्षिण चीन सागरीय इलाके में चीन की दादागीरी के खिलाफ भारत निडर होकर आवाज उठाता रहा है। तोक्यो में जारी साझा बयान में भी इसी बात पर और जोर दिया गया।
यही वजह है कि चीन क्वाड ही नहीं, आकुस की स्थापना से भी घबराया हुआ है। तोक्यो बैठक के दो दिन पहले चीन ने जो प्रतिकूल टिप्पणी की है, उससे सब पता चल जाता है। इससे लग रहा है कि आर्थिक, सामरिक और सुरक्षा क्षेत्र में चार बड़े देशों की यह एकजुटता चीन के सपनों पर पानी फेर देगी। चीन का 2047 तक दुनिया का नंबर एक देश बनने का लक्ष्य है। क्वाड की इसी संभावित चुनौती से चिंतित होकर चीन ने रूस के साथ दोस्ती गहरी की। लेकिन जिस तरह से यूक्रेन पर सैनिक अतिक्रमण करने के बाद रूस पूरी दुनिया से अलग-थलग हो गया है, वह चीन के आर्थिक और सामरिक मंसूबों को हासिल करने में सहायक नहीं हो पाएगा।
सामरिक जरूरत
ऐसे दौर में जब चीन ने भारत पर जबर्दस्त सामरिक दबाव बनाया हुआ है, क्वाड में भारत की सक्रिय भागीदारी उसकी सामरिक जरूरत है। रूस और चीन की भागीदारी वाले पांच देशों के संगठन ब्रिक्स की उपेक्षा कर क्वाड के साथ मुस्तैदी से खड़ा होना भारत के दीर्घकालीन सामरिक हितों के हक में है। लेकिन भारत को क्वाड के कंधे की आड़ लेकर नहीं, बल्कि अपने दम पर चीन से मुकाबला करने के लिए अपने आपको आर्थिक और सामरिक तौर पर और सशक्त बनाना होगा।