वैदिक सम्पत्ति तृतीय – खण्ड , अध्याय -मुसलमान और आर्यशास्त्र
गतांक से आगे…
जिस प्रकार कबीर साहब गुरु बन गए थे, उसी तरह अकबर बादशाह भी गुरु बनना चाहता था। उसने यह प्रसिद्ध कर दिया था कि, मैं पूर्व जन्म का हिंदू हूं और मेरा नाम मुकुन्द ब्रह्मचारी था। उसने मुकुन्द ब्रह्मचारी होने की पुष्टि में जो श्लोक बनाया था वह इस प्रकार है –
वसुरन्ध्रबाणचन्द्रे तीर्थराजप्रयागे।
तपसि बहुलपक्षे द्वादशीपूर्वयामे॥
नखशिखतनुहोम सर्वभूम्याधिपत्ये।
सकलदुरतिहारी ब्रह्मचारी मुकुन्दः॥
अर्थात् संवत 1568 की फाल्गुन शुक्ला द्वादशी को प्रातः काल पृथ्वी का सम्पूर्ण राज्य प्राप्त करने के लिए मुकुन्द ब्रह्यचारी ने अपने शरीर नख से शिखा तक होम कर दिया। अकबर मुकुन्द ब्रह्मचारी बन कर अपना हिंदूरूप दिखलाना चाहता था। वह कभी-कभी यज्ञोपवीत भी पहनता था और दाढ़ी निकाल डालता था। यह सब इसलिए कि हिंदू उसके चक्कर में आ जायँ। अकबर अपने समय के बड़े-बड़े लोगों को ऐसी-ऐसी बातें सुनाकर अपने काबू में लाता था। उसकी ये चालें बहुत अंशों में हिंदुओं पर असर कर गई थी। वह उनके साथ शादी विवाह का संबंध खुलेआम करना चाहता था। इतना ही नहीं, प्रत्युत उसने हिंदुओं को एक साथ ही मुसलमान बनाने का बहुत बड़ा आयोजन किया था। उसने फतेहपुर सीकरी में एक इबादतखाना बनवाया था, जहां पर भारतवर्ष के समस्त संप्रदायों के आचार्य एकत्र होते थे। इसमें पारसियों के दस्तूर मेहर जी राना नौसारी से बुलाए गए थे, अब्बुलफजल के कहने से उनके लिए एक आग्यारी भी बनवाई गई थी और उनको 200 बीघा जमीन भी दी गई थी। इसी तरह पादरी Rodolfo Aquavivo भी इस इबादतखाने में रहते थे। इनके अतिरिक्त हरिविजय सूरि, विजय सेन सूरी, चंद्रसूरी आदि जैन और बौद्ध साधु भी वहां रहते थे। इनके सबके जमा करने का यही कारण था कि, कोई ऐसी सूरत निकल आवे कि, वे समस्त हिंदू जातिया मुसलमान हो जावें। हमारे इस आरोप में यह प्रबल प्रमाण है कि, अकबर ने भी नवीन धर्म बनाया था, उसका नाम ‘दीन इलाही’ था और जहां इस धर्म की चर्चा होती थी, उस स्थान का नाम इबादत खाना था। यह दोनों नाम इस्लाम के ही अनुकूल है, दूसरों के नहीं और इनकी तहों में इस्लाम ही झलकता है, अन्य नहीं।
यह मुसलमानों के गुरु बनने के नमूने हैं। इन रचनाओं, इन युक्तियों और गुरुओं की इन तरकीबें से हिंदुओं के विश्वासों में और उनके व्यवहारों में क्या-क्या फेरफार हुआ और इनके प्रभाव, दबाव और अत्याचारों से बचने के लिए हिंदुओं ने स्वयं अपने विचारों और पुस्तकों में क्या-क्या फेरफार किया, इसकी याद आते ही रोमांच होता है। अष्टवर्षा आदि श्लोकों की रचना करके बाल – विवाह का जारी करना, सूवर का मांसआहार स्वीकार करना, पुत्री – हत्या का प्रचार करना और पर्दा प्रथा का जारी करना क्या बिल्कुल ही इस्लामी अत्याचारों के ही कारण नहीं स्वीकार किया गया ? कौन कह सकता है कि, हिंदुओं को इस्लाम ही के कारण यह अनार्य सिद्धांत नहीं स्वीकार करने पड़े ? कोई भी विचारवान् हमारी इस बात का यही उत्तर देगा कि, मुसलमानों ने स्वयं ही हिंदुओं से विवश होकर आर्य – साहित्य और आर्य संस्कृति का नाश किया है, तथा आर्य – साहित्य और आर्य संस्कृति के नष्ट होने ही से हिंदुओं का पतन हुआ है।
अगले अंक में हम आपको बताएंगे ईसाई और आर्यशास्त्र के बारे में…..
क्रमशः