यासीन मलिक को सजा : भारत में कानून का राज चलता है
शासन प्रशासन में बैठे लोग मजबूत इच्छाशक्ति यदि रखते हैं तो निश्चित ही राष्ट्रवाद की बयार सबको सुखद अनुभूति कराने में सहायक होती है। जब देश का नेतृत्व नपुंसकता धारण कर लेता है और चूड़ियां पहन लेता है तो वह आतंकवादियों से भी हाथ मिला कर खुश होता है। तनिक कल्पना कीजिए कि जब देश का प्रधानमंत्री आतंकवादी से हाथ मिला रहा हो या उसके नाम के पीछे जी लगाकर नेता संसद में बोल रहे हों तो जनसाधारण की स्थिति उस समय क्या होती होगी ? निश्चय ही उसे तो आतंकवादी के नाम तक से भी भय लगता होगा।
पिछले 32 वर्ष में ही नहीं अपितु सैकड़ों वर्ष के कश्मीर के इतिहास में इस्लाम के नाम पर कितने यासीन मलिक पैदा हुए ? और उन्होंने किस किस प्रकार हिंदू को आतंकित व भयभीत करने का घृणास्पद कार्य किया ? इस पर यद्यपि हम अलग से एक पुस्तक तैयार कर चुके हैं, परंतु यहां इतना अवश्य कहना चाहेंगे कि उनके आतंकी और राष्ट्रद्रोहितापूर्ण कार्यों से घाटी बदनाम भी हुई और आहत भी हुई। फिर भी ‘द कश्मीर फाइल्स’ के माध्यम से देश के लोगों को कश्मीर का वह सच बहुत अधिक समझ में आ गया, जिसे कांग्रेस की सरकारों के शासनकाल में छुपा कर रखा गया था। लोगों को जहां आतंकवादियों और पाकिस्तान के पारस्परिक संबंधों की जानकारी हुई वहीं यह भी पता चला कि कांग्रेस के एक प्रधानमंत्री किस गर्मजोशी के साथ उस आतंकवादी से हाथ मिला रहे थे जिसे आज आजीवन कारावास की सजा दी गई है।
सचमुच वे लोग देश के नेता बनने के योग्य नहीं होते जिन्हें देश के गद्दारों और नमकहरामों को देश का गद्दार और नमकहराम कहने में संकोच होता हो या जिनकी पिंडलियां आतंकवादी को आतंकवादी कहने तक से कांपने लगती हों। प्रशासन को हर क्षण कानून और अमन पसंद लोगों को यह आभास कराते रहना चाहिए कि उसके हाथ लंबे हैं और जब तक उसके लंबे हाथों का अस्तित्व है तब तक उन्हें कोई भी किसी भी ढंग से उत्पीड़ित नहीं कर सकता।
आज आकर जिस आतंकवादी को आजीवन कारावास की सजा दी गई है उसे निसंदेह कांग्रेस ने दूध पिलाया हो, पर भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले इस अलगाववादी और आतंकवादी यासीन मलिक का नाम वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा अप्रत्यक्ष तौर पर लिए जाने के बाद चर्चा में आ गया था। हममें से अधिकतर लोग इस बात को जानते हैं लोकसभा में निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा था कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बारे में बात करते समय उस समय की सच्चाई को याद करना चाहिए कि जब हिन्दुओं पर इतना कुछ घट रहा था तो, वे इससे कैसे निकले ? कश्मीरी पंडितों के साथ उस समय घोर अत्याचार हुए। यह अत्याचार इतने अधिक घृणास्पद और क्रूरतापूर्वक किए गए कि इनको शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
निर्मला सीतारमण ने तब लोकसभा में यह भी कहा था कि जब कश्मीरी पंडितों का सामूहिक नरसंहार किया गया और उन्हें कश्मीर से पलायन करने के लिए बाध्य किया गया तो उसी समय से इस नरसंहार को या कश्मीरी पंडितों के इस प्रकार के पलायन को नकारने की प्रवृत्ति राजनीतिज्ञों में पैदा हो गई थी। जिसे उन्होंने तोता की तरह रट लिया था। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि उस समय कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से यह बात कही गई कि कश्मीरी पंडितों ने स्वयं ही अपनी इच्छा से और दिल्ली में कुछ लाभ उठाने के लिए पलायन किया। कांग्रेस का मानना है कि ये अलगाववादियों और भारत समर्थक लोगों के बीच का झगड़ा था।’
वास्तव में कांग्रेस भारत में ब्रिटिश लोगों की एजेंट पार्टी के रूप में आजादी से पहले कार्य करती रही थी। भारत के देश भक्तों के साथ जिस प्रकार का व्यवहार अंग्रेज किया करते थे उसी को कांग्रेस ने अपने शासनकाल में अपनाया। यही कारण रहा कि कांग्रेस को भारत भक्त लोग गद्दार या अपने शासन के विरुद्ध राजद्रोही दिखाई दिए और जो राष्ट्रद्रोही थे वह उसे राजभक्त दिखाई दिए। इसका विवेक मर गया और यह अपने राजधर्म से विमुख होकर कार्य करती रही। लोगों को इसकी वास्तविकता को समझने में बहुत समय लगा। आज जब यासीन मलिक को कठोर सजा देश के कानून और न्यायालय के द्वारा दी गई है तब कांग्रेस को यासीन मलिक के साथ किए गए अपने व्यवहार पर पश्चाताप करते हुए देश से क्षमा याचना करनी चाहिए। वैसे कॉन्ग्रेस ने वीर सावरकर जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी और जनसंघ के नेता बलराज मधोक जैसे नेताओं की बातों को अनसुना कर कभी कश्मीर में अलगाववादी शेख अब्दुल्ला को अपना प्रश्नयऔर प्रोत्साहन दिया था । जब उसकी वास्तविकता नेहरू को पता चली तो उसका सदा पक्षपोषण करने वाले नेहरू ने ही उसको जेल में डाला था। जेल में रहकर भी ना तो वह सुधरा और ना संभला परंतु इसके उपरांत भी जब वह मरा तो उसे शेर ए कश्मीर कह कर फिर कांग्रेस ने ही उसका महिमामंडन किया। इस प्रकार अलगाववादी और राष्ट्रद्रोही लोगों का महिमामंडन करना और गलती स्वीकार न करना कांग्रेस की पुरानी प्रवृत्ति है।
हमें याद रखना चाहिए कि यासीन मलिक वही व्यक्ति है जिसने भारत के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने की घोषणा की और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट जैसे आतंकी संगठन का नेतृत्व कर कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए घाटी में खून की होली खेलने का कार्य किया। पाकिस्तान जेकेएलएफ के सभी आतंकवादियों को प्रशिक्षित करने का कार्य कर रहा था। इस प्रकार देश को तोड़ने और इस्लामिक आतंकवाद को प्रोत्साहित करने में पड़ोसी देश पाकिस्तान का भी यासीन मलिक को खुला समर्थन प्राप्त होता रहा । कांग्रेस के नेता इस सारे खेल को समझकर भी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। उन्हें ऐसे लगने लगा कि आज नहीं तो कल कश्मीर भी पाकिस्तान की तरह भारत से अलग हो जाएगा। यदि डॉ मनमोहन सिंह यासीन मलिक से हाथ मिला रहे थे तो यह आप जैसे राष्ट्रप्रेमी की दृष्टि में गलती हो सकती है पर वह तो उसे किसी भावी देश के नेता के रूप में देख रहे थे।
यासीन मलिक आतंकी संगठन जेकेएलएफ का चीफ था। 1987 से लेकर 1994 के काल में कश्मीर में जितनी भी आतंकवादी घटनाएं हुई उन सबमें यासीन मलिक और उसके आतंकी संगठन जेकेएलएफ का विशेष योगदान था। एक प्रकार से वह इन सालों में देश के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध करता रहा और कांग्रेस उसके युद्ध को युद्ध न मानकर भूखे व बेरोजगार युवकों द्वारा अपनी भूख और बेरोजगारी मिटाने का संघर्ष कहती रही।
यासीन मलिक ने इस्लाम के नाम पर मुस्लिम युवाओं का आतंकी संगठन खड़ा किया और उनको भारत के विरुद्ध अंतिम क्षण तक संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उसने इस्लामिक फंडामेंटलिज्म को गहराई से पढ़ा और समझा था। इसलिए अपने आतंकी साथियों को भी भारत के इस्लामीकरण करने के लिए जिहाद जैसी अमानवीय परंपरा को अपनाने के लिए प्रेरित किया। फारूक अब्दुल्ला अपने मुख्यमंत्री काल में इन आतंकवादियों के सामने झुक कर काम करते रहे। क्योंकि उनके भीतर अपने पिता के अलगाववादी संस्कार प्रबलता से समाविष्ट थे। यही कारण था कि उन्होंने अपने शासनकाल में कई खूंखार आतंकवादियों को जेलों से रिहा कर दिया । इन आतंकवादियों ने जेल से बाहर आते ही कश्मीर में नरसंहार को अंजाम दिया।
हम में से बहुत लोग इस बात को भली प्रकार जानते हैं कि केंद्र की वी 0 पी0 सिंह सरकार ने आतंकवादियों के सामने झुक कर देश के पहले मुस्लिम गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया को उसके अपहरण के बाद कुछ खूंखार आतंकवादियों के बदले में छुड़वाया था। तब इस अपहरण पर बहुत सारे संपादकीय और स्तंभ लेख समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। लोगों ने इस सारे घटनाक्रम को एक नाटक करार दिया था। कई ने यह भी लिखने का साहस किया था कि देश को पहला मुस्लिम गृहमंत्री मिला है तो उसका यह पुरस्कार तो मिलना ही था। उस समय जो कुछ भी हुआ था उस सारे घटनाक्रम के पीछे यासीन मलिक का मस्तिष्क काम कर रहा था। खूंखार आतंकवादी ने उस समय जम्मू-कश्मीर में अपनी समानांतर सत्ता स्थापित कर ली थी। वहां का मुख्यमंत्री इसके इशारे पर नाचता था। शासन प्रशासन चूड़ी पहने मुख्यमंत्री से अधिक यासीन मलिक के हुक्म को मानता था । उसकी शक्ति में हुई अप्रत्याशित बढ़ोतरी के चलते विदेशों में भी उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा था। पाकिस्तान तो उसे एक पड़ोसी अजन्मे मुल्क का नेता मानने लगा था।
यासीन मलिक पाकिस्तान जा जाकर 26/11 के हमले के मास्टरमाइंड रहे हाफिज सईद के साथ मुलाकात करता रहा। उसका नेटवर्क बढ़ता गया और भारत विरोधी शक्तियां उसे भारत के विरोध में जाकर और भी अधिक भड़काने का काम करती रहीं । इसके लिए जो भी साधन यासीन मलिक के लिए अपेक्षित थे वह उसे एक संकेत पर मिल जाया करते थे। उसने आतंकवाद का रास्ता नहीं छोड़ा बल्कि कश्मीर के युवाओं को और भी अधिक भारत विरोधी बनाने के काम में लगा रहा।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महान क्रांतिकारियों देशभक्त को तोजो का कुत्ता कहने वाले कम्युनिस्टों को यदि कोई देश का गद्दार मिल जाए और वह गद्दार देश में रहकर देश का खाने के उपरांत भी देश में ही खून बहाने के कार्य में लग जाए या लगा हुआ हो तो वह बड़े खुश होते हैं । जब यह दो6को कम्युनिस्टों ने यासीन मलिक के भीतर देखें तो उनकी बांछें खिल गई उन्हें लगा कि एक नया महापुरुष पैदा होकर उनके सपनों के अनुसार कश्मीर को हिंदुस्तान से अलग करने की योजना पर काम करेगा।
कम्युनिस्टों ने मानवता के हत्यारे यासीन मलिक को एक महानायक के रूप में प्रस्तुत करना आरंभ किया। देश के सर्वोच्च विधानमंडल संसद सहित जहां-जहां भी यासीन मलिक के देश घातक कार्यों का बचाव करने की आवश्यकता पड़ी , वहीं वही कम्युनिस्टों ने अपना कर्तव्य निभाने में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरती। यही कारण रहा कि कम्युनिस्टों ने अपने धर्मनिरपेक्ष आचरण का परिचय देते हुए कश्मीर में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों की उपेक्षा की, कहीं देश में एक भी मुसलमान के साथ हुए तथाकथित दुराचरण पर उन्होंने जमकर राजनीति की। उनकी इस प्रकार की राजनीति से यासीन मलिक जैसे लोगों के काले कारनामे न्याय पूर्ण दिखाई देने लगते थे। जिससे कई लोग मानवता के हत्यारे यासीन मलिक के क्रूर कार्यों की वकालत करने के लिए मैदान में उतर आए।
बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में यासीन मलिक ने 4 वायुसेना अधिकारियों और एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की निर्मम हत्या बात स्वीकार की थी। इस प्रकार यासीन मलिक अपने आप को कानून से ऊपर मानकर काम करता रहा। उसका इस प्रकार का आचरण देश की व्यवस्था और देश के कानून के लिए एक चुनौती थी। पर सरकार की उदासीनता और नपुंसक धर्मनिरपेक्ष राजनीति के चलते उसके विरुद्ध किसी का भी यह साहस नहीं हुआ कि उसे गिरफ्तार कर कानून के हाथों में सौंप दिया जाए । जिन आतंकवादी संगठनों ने भारत के विरुद्ध खुली बगावत की थी या कश्मीर की शांत वादियों में आग लगाने में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया था, उन्हें वह बातचीत की मेज पर लाकर बैठाने की पुरजोर वकालत करता रहा।
इस आतंकवादी ने भारत को तोड़ने के लिए विदेशों से टेरर फंडिंग का कार्य भी आरंभ किया। केंद्र में 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई तो परिस्थितियां बड़ी तेजी से यासीन मलिक के विपरीत होने लगीं। उसके वर्चस्व और प्रभाव क्षेत्र में कमी आनी आरंभ हुई। लोगों को लगा कि अब उसका शासन प्रशासन में पहले जैसा हस्तक्षेप नहीं रहा। शासन प्रशासन में बैठे लोग भी अब थोड़ा उससे बचाव करने में ही अपना बचाव देखने लगे । इसके पश्चात 2017 के बाद से वह टेरर फंडिंग के मामले में सजा काट रहा है। टेरर फंडिंग को जहां कांग्रेस की सरकारों के समय में एक मान्यता सी मिल गई थी उसे अब गैर कानूनी माना जाने लगा। जिससे लोगों को बहुत कुछ दूर का दिखाई देने लगा। केंद्र की मोदी सरकार ने धारा 370 को संविधान से हटाकर देश के कोटि-कोटि जनों की भावनाओं का सम्मान किया और श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे देश प्रेमी लोगों के बलिदान को उचित सम्मान दिया ।
आज देश के कानून और न्यायालय में एक आतंकवादी को उसके उचित स्थान पर भेजकर यह सिद्ध कर दिया है कि भारत में कानून का राज चलता है। वैसे भी जब सब सो रहे हों तो उस समय राजा का दंड अर्थात डंडा अर्थात शासन की कठोरता जागती है। आज देश के लोगों को लग रहा है कि वास्तव में कानून का डंडा देश पर शासन कर रहा है। हमें अपने लोकतांत्रिक संस्थानों और न्यायिक व्यवस्था को और भी अधिक सक्रिय करना होगा। इसके अतिरिक्त सरकार को अब इस बात की ओर भी ध्यान देना चाहिए कि आतंकवादी हताशा में कोई भी आतंकी घटना कर सकते हैं। देश के नागरिकों को भी समझ लेना चाहिए कि आतंकवादी उन्हें कहीं भी किसी भी प्रकार की चोट पहुंचा सकते हैं, लेकिन हम सबको सामूहिक रूप से समझना चाहिए कि आतंकवाद का जिस प्रकार इजराइल सामना करता है और वहां के लोग जिस प्रकार अपनी व्यक्तिगत क्षति को नहीं देखते, वैसी ही सोच और मानसिकता अब हम सबको सामूहिक रूप से आतंकवाद के विरुद्ध बनानी होगी।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत