वह हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहता है । यदि कोई अफसर ईमानदार हो तो उसे भ्रष्ट करने के लिए हर पैंतरा आजमाया जाता है । ऐसे में रिश्वत के हज़ार मामलों में से यदि एक-दो भी पकड़ाए जा सकें तो गनीमत है। रिश्वत के वे ही मामले पकडे जाते हैं, जिनमें जोर-जबर्दस्ती होती है । जो पकड़ें जाते हैं, उन्हें क्या फर्क पड़ता है, छह महीने की जेल हो या तीन साल की ? या तीन साल की जगह सात साल की ? वे जितने दिन जेल में रहेंगे, सरकारी खाना, कपड़ा, आवास, दवाई और खेल-कूद –सब मुफ्त मिलेगा । होना यह चाहिए कि उन्हें सश्रम कारावास मिले और कम से कम दस साल का मिले । उनकी और उनके परिवार की सारी चल और अचल संपत्ति जब्त की जाए। उनके परिवार के किसी सदस्य को सरकारी नौकरी न मिले ।
यह प्रावधान अच्छा है कि सिर्फ नकद लेने पर नहीं, बल्कि रिश्वत के अन्य तरीकों पर भी सजा होगी। अपने बच्चों की पढ़ाई, विदेशों में सैर-सपाटे, मोटे-मोटे उपहार, विदेशी चिकित्सा आदि किसी भी रूप में बाबुओं को दी गई रिश्वत दंडनीय होगी । बाबुओं की चल-अचल संपत्ति पर भी सरकार कड़ी नज़र रखेगी। वह अय्याश अफसरों को भी पकड़ेगी । सारे भ्रष्ट अफसरों के मुक़दमे अब आठ साल की बजाय दो साल में ही तय किए जाएँगे। सेवा-निवृत्त बाबुओं पर मुकदमा चलाने के लिए सरकारी अनुमति लेनी होगी । ये सब प्रावधान देखने में अच्छे लगते हैं। इनसे यह आभास भी होता है कि भाजपा सरकार भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए कटिबद्ध है लेकिन उसे कितनी सफलता मिलेगी ? यह प्रश्न इसलिए उठता है कि बाबुओं के स्वामी राजनेता लोग पाँव से सिर तक भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं । क्या भ्रष्टाचार किए बिना कोई नेता बन सकता है ? सिर्फ कंपनियों और बाबुओं को पकड़ने की बात खोखला झुनझुना है । जब तक नेताओं के कान नहीं खिचेंगे, भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा ।