उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
अमेरिका में गजब का ढोंग चलता है। अमेरिकी संसद (क्रांगेस) की एक संस्था ‘अंतरराष्ट्रीय धार्मिक आजादी आयोग’ ने अपनी रपट में कहा है कि भारत दुनिया के उन 30 देशों में से हैं, जहां धार्मिक आजादी नहीं है। इस आयोग ने घर वापसी, चर्चों पर हमले और कई घृणा अभियानों का जिक्र किया है। इस रपट में भारत सरकार से आग्रह किया गया है कि वह उन सांप्रदायिक धार्मिक नेताओं को खुले आम डांट लगाए, जो घृणा अभियान चलाते हैं। इस आयोग ने भारत में अमेरिकी राजदूत को यह निर्देश दिया है कि भारत में जहां भी सांप्रदायिक दंगा हो या होने की संभावना हो, वह वहां खुद जाएं, जैसे कि वह राजदूत नहीं, पुलिस इंस्पेक्टर हो। इस रपट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण का भी मजाक उड़ाया गया है, जो उन्होंने फरवरी 2015 में बिशपों के बीच दिया था।
हमारे विदेश मंत्रालय ने बड़ी संयत और दब्बू सी प्रतिक्रिया की है। अमेरिका जैसा देश भारत पर यह भौंडा आरोप लगा रहा है। एक रंगभेदी, हिंसक, अपराधग्रस्त, अशांत और असहिष्णु देश भारत को धार्मिक आजादी का पाठ पढ़ा रहा है। भारत में जितने धर्म पैदा हुए और पनपते रहे, क्या दुनिया के किसी और देश में हुए? विदेशी धर्मों को भारत में जैसी पनाह मिली, क्या दुनिया के किसी देश में मिली? भारत के सर्वोच्च पदों पर जैसे विभिन्न धर्मों के लोग पहुंचे, क्या अमेरिका या यूरोप में कभी पहुंचे?
जहां तक ‘घर वापसी’ और परस्पर विरोधी बयानों का सवाल है, उनको भारत की आम जनता रद्द करती रहती है। लेकिन बोलने की आजादी का कुछ लोग दुरुपयोग करते ही हैं। यदि उनका गला दबा दिया जाए तो ये ही अमेरिकी भौंपू मानव अधिकारों का राग अलापने लगेंगे। अमेरिकी संस्थाएं जब दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में टांग अड़ाती हैं तो ऐसा लगता है, जैसे कोई चोर कोतवाल को डांट रहा है। एक तरफ ओबामा जहां मोदी को प्रमाण पत्र और प्रणाम पत्र भेजते रहते हैं और दूसरी तरफ अमेरिका के कुछ सतही समझ वाले मूढ़ मतिजन निंदा—पत्र प्रदान करते रहते हैं। वे भारत में धार्मिक आजादी का रोना रोते हैं लेकिन उनकी सरकारों ने तो कई देशों की राजनीतिक और आर्थिक आजादी नष्ट कर दी है। सद्दाम हुसैन और गद्दाफी के खून से किसके हाथ रंगे हुए हैं?