गीत — 4
मरों का चिंतन मतकर बन्धु ! वेद विरुद्ध चिंतन को त्याग,
मृत्यु की बातें सोच – सोचकर जीवन से तू रहा भाग ।
तू जीवन – ज्योति जगा हृदय में अंधकार को दूर हटा,
आनंद इसी में जीवन का – ले जगा ह्रदय में पवित्र भाव।।
मृत्यु – मृत्यु को रटना अर्जुन ! मृत्यु को निकट बुलाना है,
चिंतन मृत्यु का – दुश्चिन्तन है , तुझे इससे ध्यान हटाना है।
ऊर्जावान सजग मानस में सदा शुभ चिंतन ही चलता है ,
तुझे शुभचिंतन में चित्त लगा , सात्विक भाव जगाना है।।
नहीं मृतक का शोक किया करते जो ज्ञानी ध्यानी जन होते,
पापों से दूर सदा रहते और जगत में बीज पुण्य के वे बोते ।
सत, रज ,तम इन तीन गुणों से, है घिरा हुआ जो -‘पूज्यदेव’,
‘ब्रह्मज्ञानी’ उसे समझ लेते और सदा उसी में जगते – सोते।।
तू उनका शोक मत कर अर्जुन ! जो शोक के होते योग्य नहीं,
मत कर अंतःकरण निर्बल सर्वथा तुझको ऐसा भी योग्य नहीं।
यहाँ जो भी आया जाना उसको , यह सत्य सनातन धर्म कहे,
समझ सत्य सनातन को – तेरा मेरा आत्मा मरण के योग्य नहीं।।
पार्थ ! तू बात करे पंडित जैसी ,पर वाणी में तेरे पांडित्य नहीं,
तुझ पर हावी अटकन – भटकन और मन पर तेरे लालित्य नहीं।
बता – धर्म से विमुख होकर अर्जुन ! तू कैसे मोक्ष को पाएगा ?
अधोमुखी जो चिंतन कर दे, ऋषि कहते उसको साहित्य नहीं।।
यदि तू पंडित होता अर्जुन ! तो निश्चय ही ऐसी बात नहीं करता,
क्योंकि पंडित कभी भी नाशवान का ह्रदय में शोक नहीं करता।
मुक्ति का अभिलाषी बनकर पंडित ‘अपनी’ खोज किया करता,
वह आत्म तत्व से परम तत्व तक संध्या में सफर किया करता।।
डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत