ज्ञानवापी प्रकरण अयोध्या मामले से भिन्न है और इसके संदर्भ में 1991 में बनाए गए धर्मस्थल कानून को भी रेखांकित किया जा रहा है, जो यह कहता है कि सभी धार्मिक स्थल उसी स्थिति में रहेंगे, जिसमें वे 15 अगस्त 1947 को थे, लेकिन इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं।
ज्ञानवापी मस्जिद/विश्ववेश्वर मंदिर की लड़ाई हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की चौखट से होते हुए पुनः वाराणसी की जिला कोर्ट में पहुंच गई है। दोनों ही शीर्ष अदालतों को जरा भी यह नहीं लगा कि जिला अदालत उक्त मामले की ठीक से सुनवाई नहीं कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुचर्चित ज्ञानवापी मामले की सुनवाई जिस तरह वाराणसी की सिविल अदालत की बजाय जिला अदालत को सौंपी और उसे आठ हफ्ते में सुनवाई पूरी करने को कहा, उससे यही प्रतीत होता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद अयोध्या के प्रभु राम जन्मभूमि विवाद की तरह से लम्बा नहीं खिंच पाएगा। सब जानते हैं कि अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट के भीतर किस तरह से लटकाने-भटकाने का काम किया था। यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार वाराणसी की जिला कोर्ट में सुनवाई आगे बढ़ी तो यह सुखद होगा कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का निस्तारण दो महीने के भीतर हो जाएगा, जोकि दोनों पक्षकारों के लिए ही नहीं बल्कि देश-प्रदेश के अमन-चैन के लिए भी जरूरी है। ज्ञानवापी को लेकर पिछले कुछ दिनों से जिस तरह का माहौल गरमाया हुआ है, वह होना तो नहीं चाहिए था, क्योंकि मामला कोर्ट में चल रहा है, कोर्ट का फैसला जब आएगा, तब आएगा इससे पहले ही दोनों ही पक्षों के लोग और समर्थक अपने-अपने खोखले और आधे-अधूरे ज्ञान एवं दावों के बल पर अपना फैसला सुनाने में लगे हैं।
आश्चर्य होता है कि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट तक ने कह दिया है कि पूजा स्थल कानून 1991 किसी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप का पता लगाने पर रोक नहीं लगाता है, तब भी ओवैसी जैसे नेता 1991 के पूजा स्थल कानून के उल्लघंन का ढिंढोरा पीटने से बाज नहीं आ रहे हैं। वहीं ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जारी विवाद के बीच इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल (आईएमसी) के प्रमुख मौलाना तौकीर रजा जैसे लोग अपनी कौम को भड़काने में लगे हैं और ज्ञानवापी विवाद के बीच मुसलमानों से जेल भरो आंदोलन चलाने का आह्वान करते हुए कह रहे हैं कि हर जिले में दो लाख मुसलमान गिरफ्तारी दें। दिल्ली के इंडिया इस्लामिक सेंटर में आयोजित एक कार्यक्रम में मौलाना तौकीर रजा ने कहा कि अगर ज्ञानवापी पर कुछ नहीं किया गया तो यहां भी बाबरी मस्जिद की तरह पाबंदी लगेगी। तौकीर रजा हाल में सम्पन्न हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के साथ खड़े नजर आए थे और मुसलमानों से कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की अपील भी कि थी, लेकिन उनकी बात किसी मुसलमान ने नहीं सुनी थी। ओवैसी और तौकीर ही नहीं, तमाम मुस्लिम धर्म गुरु कयामत तक मस्जिद रहने की बात कर रहे हैं।
चूंकि यह एक बेहद संवेदनशील प्रकरण है, इसलिए यह सभी के हित में है कि इस मामले का जितनी जल्दी संभव हो, समाधान किया जाए। निःसंदेह ऐसा न्यायपालिका की सक्रियता से ही संभव है। इस मामले में न्यायपालिका के स्तर पर वैसी देरी नहीं होनी चाहिए, जैसी अयोध्या मामले में हुई और जिसके नतीजे अच्छे नहीं रहे। इसके साथ ही नेताओं को भी ज्ञानवापी मस्जिद/विश्ववेश्वर मंदिर मामले में फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए। ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर सपा प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान भी काफी शर्मनाक नजर आ रहा है। ज्ञानवापी विवाद के बीच एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने अयोध्या पहुंचे अखिलेश यादव ने वहीं से विवादित बयान देते हुए बीजेपी को तो निशाने पर लिया ही, इसके साथ ही अखिलेश यादव ने ज्ञानवापी विवाद को राममंदिर विवाद से जोड़ते हुए कहा कि रात के अंधेरे में मूर्तियां रखवा दी गयी थीं। उन्होंने शिवलिंग मिलने के दावे पर कहा कि कहीं भी पत्थर रख दो मंदिर बन जाता है। आश्चर्य होता है अखिलेश के मुंह से ऐसे बयान सुनकर। अखिलेश से समझदार तो आजम खान निकले। जेल से छूटकर आजम खान जब रामपुर में मीडिया से रूबरू हुए तो उनसे ज्ञानवापी पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने मामला न्यायलय में होने की बात कहते हुए किसी भी तरह का बयान देने से मना कर दिया। ज्ञानवापी मामले पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विवादित बयान के बाद ही उनकी पार्टी के एक और नेता का इस मामले में भड़काऊ बयान सामने आया। अक्सर अपने विवादित बयानों की वजह से चर्चा में रहने वाले संभल से सपा नेता शफीकुर्रहमान बर्क का ज्ञानवापी मामले पर भड़काऊ बयान सामने आया है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद पर कब्जा हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कथित रूप से कहा कि अगर ज्ञानवापी को सील किया जाएगा तो कई जाने कुर्बान जाएंगी।
बहरहाल, एक तरफ ज्ञानवापी मस्जिद/विश्ववेश्वर मंदिर विवाद कोर्ट में चल रहा है तो दूसरी तरफ कुछ लोग चाहते हैं कि यह विवाद कोर्ट की बजाए हिन्दू और मुस्लिम दोनों पक्षों के लोग आपस में मिल बैठकर सुलझा लें। ऐसी सोच रखने वालों का तर्क है कि इससे सामाजिक सद्भाव को बल मिलने के साथ ही राष्ट्रीय एकता का भाव भी प्रबल होगा। अयोध्या मामले में ऐसा नहीं हो पाया था तो इसीलिए कि स्वस्थ संवाद की बजाय वाद-विवाद को ज्यादा तूल दिया गया। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अयोध्या मामले को आपसी बातचीत से हल करने में कई राजनीतिक दल बाधक बने थे। उनका स्वार्थ इसी में था कि किसी तरह इस विवाद का समाधान न होने पाए। कम से कम इस बार ऐसे राजनीतिक दलों को अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन ऐसा हो पाएगा, इस बात की संभावना काफी कम है।
खैर, यह सच है कि काशी का ज्ञानवापी प्रकरण अयोध्या मामले से भिन्न है और इसके संदर्भ में 1991 में बनाए गए धर्मस्थल कानून को भी रेखांकित किया जा रहा है, जो यह कहता है कि सभी धार्मिक स्थल उसी स्थिति में रहेंगे, जिसमें वे 15 अगस्त 1947 को थे, लेकिन इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं। यह उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले की सुनवाई करते हुए यह कहा कि किसी स्थल के धार्मिक चरित्र यानी उसके रूप-स्वरूप का आकलन प्रतिबंधित नहीं है। इससे यही स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी की सिविल अदालत के उस फैसले को सही पाया, जिसमें उसने ज्ञानवापी परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था।
यहां यह बता देना भी जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट की तरह से इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी वाराणसी की सिविल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं समझी और वह भी तब जब उसके समक्ष 1991 के धर्मस्थल कानून का संदर्भ दिया गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धर्मस्थल कानून किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के आकलन पर पाबंदी नहीं लगाता, तब फिर सवाल यह है कि यदि ज्ञानवापी परिसर अथवा इसी प्रकार के अन्य धार्मिक स्थलों का सर्वेक्षण ऐसे किसी नतीजे पर ले जाता है कि वह वैसा नहीं, जैसा दावा किया जा रहा है तो क्या उसकी अनदेखी कर दी जाएगी? वास्तव में यह वह जरूरी सवाल है जिसका जवाब सामने आना ही चाहिए। कुछ लोग तो यहां तक कहते हैं कि अभी भले ही पांच हिन्दू महिलाओं ने श्रृंगार गौरी माता की पूजा अर्चना की इजाजत मांगी हो, लेकिन अब यह मामला इन महिलाओं के हाथ से निकल कर अन्य लोगों के हाथ में पहुंच गया है, इसीलिए अब ज्ञानवापी को विश्ववेश्वर मंदिर की धरोहर मानकर हिन्दुओं को इसे सौंपने की भी मांग शुरू हो गई है। कुल मिलाकर कोर्ट से ज्ञानवापी के भीतर स्थित माँ श्रृंगार गौरी की मूर्ति की पूजा करने की पांच हिन्दू महिलाओं की मांग से शुरू हुई दावेदारी की लड़ाई आगे चलकर ज्ञानवापी के स्वामित्व तक पहुंच सकती है।