हमारे देश में विभिन्न राजैतिक दलों के कई प्रमुख नेताओं द्वारा यहां तक कि मंत्री व सांसदों जैसे संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा एक-दूसरे के चरित्र पर प्रहार करना, उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करना यहां तक कि अभद्र भाषा का इस्तेमाल या गालियां तक दे डालना कोई आम बात नहीं है। सांप्रदायिकतावादी तथा जातिवादी टिप्पणीयां करना या संप्रदाय अथवा जाति विशेष को निशाना बनाकर उन्हें अपमानित करना भी अब देश की राजनीति में गोया एक फैशन सा बन गया है। परंतु अब बात इससे भी आगे बढ़ चुकी है। अब तो देश के अत्यंत जिम्मेदार लोगों द्वारा नस्लवादी तथा लिंग-भेद आधारित टिप्पणियां की जाने लगी हैं जिसके कारण अब देश के राजनीतिज्ञों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की आलोचना का भी सामना करना पड़ रहा है। और ऐसी स्थिति देश के लिए बेहद अफसोसनाक है।
बिहार से संबंध रखने वाले तथा भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले नए-नवेले नेता संभवत: अपनी विवादित अभद्र टिप्पणी को ही अपनी राजनीति की कमाई का माध्यम समझ बैठे हैं। राष्ट्रीय स्तर पर सबसे पहले गिरिराज सिंह का नाम उस समय सुर्ख़ियों में आया जब वे पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान नितिन गडकरी के साथ बिहार में एक जनसभा में मंच सांझा करते हुए अपने भाषण में यह बोले कि मोदी विरोधियों के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है और जो लोग मोदी की आलोचना कर रहे हैं उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए। गिरिराज सिंह की इस टिप्पणी के बाद नितिन गडकरी ने भी अपना भाषण दिया परंतु उन्होंने भी गिरिराज की टिप्पणी पर न तो केाई एतराज़ जताया न ही उसका जि़क्र किया। जबकि देश के कई राजनैतिक दलों सहित मीडिया ने भी गिरिराज सिंह के इस $गैरजि़ मेदाराना बयान की काफी आलोचना की। लोकसभा चुनावों के बाद गिरिराज सिंह को केंद्रीय लघु एवं सूक्ष्म उद्योग के राज्यमंत्री के तौर पर एक जिम्मेदार मंत्रालय का कार्यभार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उस समय सौंपा गया जबकि वे इसी विवादित टिप्पणी को लेकर दायर किए गए एक मुकद्दमे में ज़मानत पर थे।
ज़ाहिर है राजनैतिक हलक़ो में इसे गिरिराज सिंह की बदज़ुबानी व बदकलामी का पुरस्कार ही समझा गया। निश्चित रूप से इस प्रकार की हौसला अफज़ाई बदज़ुबानी करने वाले किसी भी व्यक्ति के मनोबल को ऊंचा कर सकती है? और गिरिराज सिंह के साथ भी ऐसा ही हुआ। नरेंद्र मोदी के विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देने वाले इसी नेता ने पिछले दिनों एक बार फिर एक ऐसा नस्लभेदी बयान दे डाला है जिसकी गूंज दूसरे देशों में भी जा पहुंची। गिरिराज सिंह ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए यह कह दिया कि यदि राजीव गांधी गोरी चमड़ी के बजाए नाईजीरिया की किसी महिला से विवाह करते तो क्या कांग्रेस उसका नेतृत्व स्वीकार करती? इस प्रकार की निरर्थक टिप्पणी उन्होंने अपने नए भाजपाई आकाओंको महज़ खुश करने के लिए ही की होगी। क्योंकि पूर्व में उन्हें मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने जैसे बयान के लिए मंत्रीपद देकर पुरस्कृत किया जा चुका था।
गिरीराज सिंह की इस नस्लभेदी मानसिकता वाली टिप्पणी के लिए हालांकि पार्टी स्तर पर कोई वक्तव्य जारी नहीं किया गया। परंतु पार्टी के कुछ जि़ मेदार नेताओं ने उनके इस वक्तव्य से किनारा ज़रूर किया है। परंतु गिरिराज सिंह के मुंह से निकले बोल अपना दुष्प्रभाव छोड़ते हुए देश की प्रतिष्ठा को आघात पहुंचा चुके थे। उनके इस विवादित बयान पर संज्ञान लेते हुए भारत में नाईजीरियाई उच्चायुक्त ओबी ओवानगोर ने कहा कि केंद्र सरकार में इतने बड़े पद पर बैठे मंत्री की इस प्रकार की टिप्पणी दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि भारत व नाईजीरिया के बीच बहुत घनिष्ठ संबंध हैं और इस तरह की टिप्पणी स्वीकार्य नहीं होगी। केवल नाईजीरियाई उच्चायक्त ही नहीं बल्कि दिल्ली में 2013 में हुए निर्भया बलात्कार कांड पर डॉक्यूमेंटरी फिल्म बनाकर चर्चा में आने वाली ब्रिटिश फिल्मकार लेसली इडविन ने भी गिरिराज सिंह के इस नस्लभेदी बयान की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए यह तक कह डाला कि वे किसी बलात्कारी से बेहतर नहीं हैं। ज़रा सोचिए कि मात्र अपनी बदज़ुबानी के लिए देश के एक केंद्रीय मंत्री की तुलना किसी विदेशी द्वारा एक बलात्कारी से की जाए,देश की प्रतिष्ठा के लिए इससे बड़ा आघात और क्या हो सकता है? क्या देश के किसी नागरिक को इस बात का अधिकार हासिल है कि वह केंद्रीय मंत्री जैसे जि़ मेदार पद पर बैठकर अपनी बदज़ुबानी व बदकलामी के चलते तथा अपनी नस्लभेदी मानसिकता के कारण देश की प्रतिष्ठा को धूमिल करता फिरे?
यह तो थी एक केंद्रीय मंत्री की बदज़ुबानी की दास्तान। अब ज़रा पिछले दिनों हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री जी के विवादित शब्दों को देखिये। गिरीराज सिंह ने तो नस्लभेदी टिप्पणी कर देश को बदनाम करने की कोशिश की। परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो अपनी लिंग भेद मानसिकता को ही अपने भाषण में उजागर कर दिया। गत् दिनों मुद्रा बैंक के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने अपने विशेष अंदाज़ में फरमाया कि किसान यदि आम बेचे तो पैसा मिलता है, आम का अचार बना कर बेचे तो ज़्यादा पैसा मिलता है, अचार को बोतल में बंद करके बेचे तो और भी ज़यादा पैसा मिलता है। और अगर लड़की अचार की बोलत लेकर खड़ी हो जाए तो बिक्री बढ़ जाती है। प्रधानमंत्री द्वारा लड़की को विज्ञापन का माध्यम प्रचारित करने को लेकर उनकी भी तीखी आलोचना की जा रही है। एक ओर जहां स्वयं उन्हीं के द्वारा बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ जैसी कन्या संरक्षण मुहिम की घोषणा की गई है वहीं उन्ही के द्वारा महिला को विज्ञापन की वस्तु बताना कितना उचित है? जहां तक विज्ञापन बाज़ार का प्रश्र है तो माडलिंग के क्षेत्र में भी पुरूष अथवा बच्चे महिलाओं से कम भागीदार नहीं हैं। बल्कि महिला मॉडल को तो इस बात की भी शिकायत रहती है कि उन्हें विज्ञापन के लिए पुरुषों से कम पैसे कयों दिए जाते हैँ? प्रधानमंत्री का यह कहना भी गलत है कि अचार की बोतल की बिक्री बढ़ाने के लिए महिला के हाथ में ही बोतल का होना ज़रूरी है। कोई पुरुष भी उस अचार की बोतल का विज्ञापन कर सकता है। यहां तक कि बुज़ुर्ग दंपत्ति और बच्चे भी कर सकते हैं। फिर लड़की को विशेष रूप से अचार के विज्ञापन से जोडऩे का प्रधानमंत्री का तात्पर्य क्या था?
नरेंद्र मोदी अपने समर्थकों के बीच ‘अच्छा भाषण देने के लिए जाने जाते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भी भारतीय जनता पार्टी के प्रथम श्रेणी के वक्ताओं में रहे हैँ। परंतु उनके मुंह से आज तक नस्ल भेद,लिंग भेद अथवा जाति या संप्रदायवादी टिप्पणी किए जाने का कोई प्रमाण नहीं है। परंतु यदि चुनाव पूर्व नरेंद्र मोदी के भाषणों में उनके अपने अंदाज़ व उनके द्वारा प्रयोग किए जाने वाले शब्दों पर गौर किया जाए तो हमें उनकी मंशा का साफ पता चलता है कि वे ऐसे गिने-चुने शब्द किस मकसद से इस्तेमाल करते थे तथा ऐसे शब्दों का प्रयोग कर वे किस समुदाय विशेष को क्या संदेश देना चाहते थे। मिसाल के तौर मोदी राहुल गांधी को संबोधित करते हुए प्राय: शहज़ादा शब्द का इस्तेमाल करते थे। मुशर्रफ का नाम लेते थे तो मियां मुशर्रफ कहकर बुलाते थे। इसी प्रकार पूर्व चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को उनका पूरा नाम लेकर माईकिल लिंगदोह कह कर उन्हें संबोधित करते थे। गुजरात के दंगों में मरने वालों की तुलना उन्होंने कार के नीचे आने वाले कुत्ते के बच्चे से कर डाली थी। इस प्रकार की और भी कई बातें प्रधानमंत्री मोदी व उनके कई मंत्रियों द्वारा की जा चुकी हैं जिन्हें लेकर कई बार भारी विवाद खड़ा हो चुका है। अभी पिछले ही दिनों यमन से भारतीय नागरिकों को सुरक्षित निकालने के समय विदेश राज्यमंत्री जनरल विक्रमसिंह ने मीडिया को ‘प्रेस्टीटयूट बता डाला। उनके इस नवरचित अमर्यादित शब्द के लिए उनकी भी घोर आलोचना की जा रही है। ऐसे में सांप्रदायिकता व जातिवाद की आग भड़काने वाले दूसरे दर्जनों सांसदों व मंत्रियों को क्या कहा जाए जब कि देश के पदों पर बैठे लोगों द्वारा इस प्रकार की घटिया व स्तरहीन बातें कर देश की प्रतिष्ठा पर आघात पहुंचाया जा रहा है?