प्रेरणा प्रवाह – अस्सी पार, जोश अपार
– डॉ. दीपक आचार्य
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एक ओर जहाँ अधिकांश बुजुर्ग रिटायरमेंट के बाद केवल और केवल टाईमपास के लिए ब्रह्माण्ड भर की चर्चाओं में व्यस्त रहा करते हैं, पाटों, पेढ़ियों, चौपालों और कई जगहों पर चर्चाओं में रमे हुए नज़र आते हैं वहीं ताजिन्दगी कर्मयोग और मानव शरीर से सेवा का भाव अपनाने का संकल्प लिए हुए खूब सारे व्यक्तित्व ऎसे हैं जो शरीर के स्वस्थ रहने तक कुछ न कुछ समाजसेवा और कर्मयोग में रमे रहकर समाज को अपने ज्ञान एवं अनुभवों का लाभ प्रदान करते ही रहते हैं।
निष्काम सेवा और परोपकार को जीवन का लक्ष्य मानने वाले ऎसे खूब सारे बुजुर्गों से साक्षात होता रहता है। धन्य हैं ये बुजुर्ग जो दिन-रात समाज सेवा का चिन्तन करते हुए किसी न किसी प्रकार से अपने अनुभवों और ज्ञान का लाभ समाज को प्रदान करते रहते हैं।
समाज भी ऎसे लोगों की कद्र करता है, दिल से सम्मान देता है। यौवन और पदीय अहंकारों से लथ-पथ युवाओं और ज्ञानी-अनुभवी बुद्धिजीवियों की अपार भीड़ देखने को मिलती है जिसके पास न संस्कार हैं, न सेवा भाव, और न ही समाज और मातृभूमि के लिए कुछ करने का माद्दा। ऎसे तथाकथित प्रबुद्धजनों की ढेरों किस्में हमारे सामने हैं जो या तो तटस्थ होकर कायर और मुर्दाल पड़े रहते हैं या फिर जीवन का एकमात्र उद्देश्य भोग-विलास, नशाखोरी और भ्रष्टाचार से धनसंग्रह ही रह गया है।
इन तमाम प्रकार की नैराश्यपूर्ण और विषमताजनक, दुर्भाग्यशाली परिस्थितियों में कई सारे बुजुर्ग हैं जो समाज के जरूरतमन्दों की किसी न किसी प्रकार से सेवा करने में अग्रणी हैं, भले ही उनकी आयु 70-80 पार ही क्यों न हो गई हो। सच्चा इंसान वही है जो मृत्यु होने तक धरती पर निष्काम सेवा, परोपकार और लोकमंगल के भावों को अपनाता हुआ कर्मयोग की सुगंध के कतरों से प्रेरणा जगाता रहे।
बहुत सारे सेवाभावी बुजुर्गों से हमारा मिलना-जुलना होता रहता है। इन्हीं में हाल ही जोधपुर में अनेक ज्ञानी-अनुभवी वरिष्ठ नागरिकों से हुई पहली मुलाकात ने ही प्रभावित कर दिया। इनमें रिटायर्ड चीफ अकाउंट आफिसर श्री एन.के. जोशी और पुरातत्व विभाग में निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त पुरातात्विक विषयों के जानकार श्री अर्जुन राज मेहता शामिल हैं। अस्सी पार होने के बावजूद युवाओं जैसा जोश और समाज के लिए समर्पित भाव से जीने का इनका ज़ज़्बा भीतर तक अभिभूत कर गया।
मारवाड़ की सेवाव्रती गौरवशाली परम्परा के संवाहक कर्मयोगियों के रूप में उनसे मुलाकात यादगार रही। धन्य हैं इस परंपरा के व्यक्तित्व, जो आयु को पीछे छोड़ कर जनकल्याण के लिए समर्पित जीवन जीते हैं।
वस्तुतः जीवन वही है जो समाज में जीवनी शक्ति का संचार करने के साथ ही आने वाली पीढ़ियों में प्रेरणा जगाता है। यह सब यही बात सिद्ध करते हैं कि पुरखों के निष्काम कर्मयोग, लोकमंगलकारी सेवाव्रत और पराक्रमी जीवन के बीज अभी जिन्दा हैं धरा पर। आईये हम सभी लोग इनसे कुछ सीखें और समाज तथा देश के लिए जीने-मरने का संकल्प ग्रहण करें।