इसका अर्थ यह कतई नहीं कि वैवाहिक जीवन में बलात्कार होता ही नहीं है। वह कभी-कभी होता है और जब वह हिंसक रूप धारण कर लेता है तभी हम उसे बलात्कार कहते हैं लेकिन क्या वह कानून से रोका जा सकता है ? पहली बात तो यह कि पति-पत्नी के बीच बलात्कार हुआ या नहीं, यह सिद्ध करना अति कठिन है। यदि यह सिद्ध हो भी जाए तो अदालत क्या करेगी? वह सिर्फ सजा ही दे सकती है। सजा काटने के बाद फिर बलात्कार शुरू हो जाएगा। कोर्ट तलाक करवा सकती है। तो वह तलाक तो पहले ही लिया जा सकता है। दूसरी बात यह कि क्या बलात्कार सिर्फ पुरुष ही करता है? क्या स्त्री बलात्कार नहीं करती? जिस पश्चिमी समाज से वैवाहिक बलात्कार की धारणा आई है, उसमें तो स्त्रियों द्वारा किये जाने वाले बलात्कारों की चर्चा अक्सर सुनी जाती है। जिसके पास बल होता है, वही बलात्कार कर सकता है। पश्चिमी समाज की सबल स्त्रियों की आक्रामकता का अनुभव हमारे वकीलों को नहीं है। मान लें कि स्त्री-पुरुष, दोनों ही बलात्कारी हो सकते हैं तो भी वैवाहिक बलात्कार को कानून से रोक पाना असंभव है। बलात्कार और वैवाहिक बलात्कार में फर्क है। बलात्कार तो अनैतिक है और अपराध है जबकि विवाह तो सतत सहमति का दूसरा नाम है। उसमें बलात्कार तो हो ही नहीं सकता। शारीरिक संबंध के लिए सतत सहमति होती है। शारीरिक संबंध इच्छापूर्वक भी हो सकता है और अनिच्छापूर्वक भी हो सकता है।
जो शारीरिक संबंध, पति करे या पत्नी, हिंसक रूप ले लेता है, वह अनैतिक और गैर-कानूनी है। सिर्फ हिंसा ही काफी है, किसी को सजा देने के लिए! मैं तो यह मानता हूँ कि किसी के सहर्ष स्वीकृति के बिना किसी के साथ शारीरिक संबंध तो क्या, किसी भी प्रकार का कोई भी संबंध स्थापित नहीं किया जाना चाहिए।
वैवाहिक बलात्कार को कानूनी दर्जा मिलने पर अदालतें झूठे मुक़दमों से पट जाएंगी। पश्चिमी समाज में एकल परिवार होते हैं। उनमें बलात्कृत पति या पत्नी के पास अदालत के अलावा कोई चारा नहीं है जबकि भारत के सयुंक्त परिवार अपने आप में तथाकथित वैवाहिक बलात्कार या हिंसा के विरुद्ध सामाजिक गारंटी होते हैं। हम पश्चिमी के दुखी समाज की नक़ल करने की बजाय इस समस्या का कोई भारतीय समाधान खोजें तो बेहतर होगा।