कई टी वी चैनलों के रिपोर्टरों ने भूकंप-पीड़ितों के परम कारुणिक दृश्य दिखाए और भयंकर विनाश लीला को भी करोड़ों दर्शकों के सामने प्रस्तुत कर दिया। इसी के फलस्वरूप नेपाल की सहायता के लिए अनेक देश दौड़ पड़े लेकिन हमारे कुछ टी वी रिपोर्टरों की अति उत्साह और नादानी ने सब किए-कराए पर पानी फेर दिया। कुछ रिपोर्टरों ने काठमांडू हवाई अड्डे पर दादागिरी की और कुछ ने फौज के हेलिकोप्टरों को इस्तेमाल सिर्फ अपनी टी. आर. पी. बढ़ाने के लिए किया। हमारे फौजी भी प्रचार के लालच में फंस गए। नेपालियों का कहना है कि उन टी वी पत्रकारों ने विनाशलीला को किसी टी वी सीरियल की तरह पेश किया। उन्हें पीड़ितों का कष्ट नहीं दीख रहा था। उस कष्ट में से वे रोचक कहानियां निकाल रहे थे। वे भारतीय सहायता को इस तरह से पेश कर रहे थे, जिससे नेपालियों के स्वाभिमान को चोट पहुँचती है।
टी वी पत्रकारिता को बेहद जिम्मेदार और मर्यादित होने की जरूरत है। वह जितनी प्रभावशाली है, उसे उतना ही संतुलित होना चाहिए। किसी भी घटना को चटपटा बनाकर पेश करने की प्रतिस्पर्धा ने उनकी प्रतिष्ठा को पैंदे में बिठा दिया है। यदि टी वी पत्रकारिता इसी तरह चलती रही तो उसके दो परिणाम हो सकते हैं। एक तो आम आदमी उस पर भरोसा करना ही बंद कर दे और दूसरा सरकार को उस पर तरह-तरह के प्रतिबन्ध लगाना पड़ें । ये दोनों स्थितियाँ ही शुभ नहीं है। नेपाल की घटना टी वी पत्रकारिता के गिरते हुए स्तर का स्वतः प्रमाण है।