आम आदमी पार्टी के नेता और हिंदी के प्रसिद्ध लोककवि कुमार विश्वास के विरुद्ध आजकल जो अभियान चल रहा है, उसका औचित्य हमारी समझ के बाहर है । जो ‘आप’ कार्यकर्ता पीड़िता मानी जा रही है, उसकी पीड़ा क्या है ? उसकी पीड़ा यह नहीं है कि विश्वास ने उसके साथ कोई आपत्तिजनक बर्ताव किया है बल्कि यह है कि उसके और विश्वास के बारे में झूठी अफ़वाहें उड़ाई जा रही हैं। उस महिला का परेशान होना स्वाभाविक है और उससे भी ज्यादा परेशान अगर कोई होगा तो वह विश्वास होगा। लेकिन आश्चर्य है कि उस महिला ने अपनी परेशानी पुलिस को बताई और खबरचियों को बताई। इससे उसको क्या लाभ हुआ ? जो अफवाह सौ-दो सौ लोगों तक फैली होगी, अब वह लाखों-करोड़ों लोगों तक फ़ैल गई। खबरचियों की चांदी हो गई। वे अपना धंधा कर रहे हैं । उन्हें कोई शर्म-लिहाज़ नहीं
लेकिन आश्चर्य है, मुझे भाजपा और कांग्रेस के नेताओं पर, जो टी.वी.चैनलों के ‘जोकरों’ (एंकरों) से भी बड़े मसखरे सिद्ध हो रहे हैं। वे कुमार विश्वास और अरविन्द केजरीवाल के विरुद्ध प्रदर्शन आयोजित करवा रहे हैं। महिला आयोग से पत्रकार-परिषद् करवा रहे हैं। उन्होंने राजनीति को मसखरी में बदल दिया है । अरविन्द और विश्वास के खिलाफ उनको लड़ना है तो लड़ें, राजनीतिक मुद्दों पर। वे जिस मुद्दे को महिला सम्मान का प्रश्न बना रहे हैं, उससे वे देश की महिलाओं का अपमान ही कर रहे हैं। जो महिला एक अफ़वाह से पीड़ित है, उसकी पीड़ा को उन्होंने हज़ार गुना बढ़ा दिया है।
इस सारे प्रकरण से अरविन्द केजरीवाल का आपे से बाहर हो जाना समझ में आता है। कल मैंने लिखा था कि हमारे टी.वी. रिपोर्टरों और एंकरों की करामात से नेपाल में हमारी कैसे बदनामी हुई, आज फिर उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि चैनलों पर कड़े प्रतिबन्ध लगाना जरूरी समझा जाएगा।यह मांग भी उठ सकती है कि चैनलों को दिन में केवल तीन बार ख़बरें दिखाने की छूट हो और जो वाद-विवाद होते हैं, उनमें यदि कोई भी आपत्तिजनक बात कही जाए और वह अश्लील और अपमानजनक हो तो उसके लिए चैनल के मालिक,प्रधान संचालक, एंकर और वक्ता को समुचित सजा दी जाए। यह चैनल पर निर्भर है कि वे आत्मानुशासन पसंद करते हैं या फिर अपने पर कठोर अनुशासन को आमंत्रित करते हैं।