अवकाशों का राजनीतिकरण
उत्तर प्रदेश में अवकाशों को लेकर जिस प्रकार की राजनीति हो रही है वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इस प्रकार की ओछी मानसकिता की राजनीति करने वाले गैर कांग्रेसी दल सबसे आगे हैं। विगत दिनों उत्तर प्रदेष की समाजवादी सरकार ने पुराने जनता परिवार के प्रति एकजुटता का प्रदर्षन करने केे लिए पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और फिर पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रषेखर और निषाद राज गुहा की जयंती के अवसर पर प्रदेष में सार्वजनिक अवकाष का ऐलान किया था। इससे पूर्व विगत वर्ष किसान मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चराण सिंह की जयंती पर भी सार्वजनिक अवकाश हो चुका है। अब इन्हीं अवकाषंो की कड़ी महाराणा प्रताप की जयंती का अवकाश भी जुड़ गया हैं । आज पूरा प्रदेश अवकाषों का प्रदेष बन चुका है। महाराणा प्रताप की जयंती पर सार्वजनिक अवकाष की घोषणा करके समाजवादी सरकार व मुख्यमंत्री अखिलेष यादव क्षत्रिय समाज के बीच में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का प्रयास करती हुर्द दिखलाई पड़ रही है। आज की तारीख में प्रदेष के सभी सामचार पत्र और पत्रिकाओं में में उप्र के मुख्यमंत्री अखिलेष यादव और सपा मुखिया मुलायम सिंह को बधाई दी जा रही है। क्षत्रिय महासभा जिस प्रकार से सपा सरकार का गुणगान कर रही है उससे साफ पता चल रहा है कि यह सबकुछ वोट के लिए ही किया जा रहा है। इस प्रकार की राजनीति से प्रदेष का विकास तो नहीं हो सकता है इसके विपरीत आफिसों में फाइलों का जमावड़ा और गहराता जा रहा है। लगातार एक के बाद अवकाषों की घोषणा से प्रदेष की छवि को भी गहरा आघात लग रहा है। समाजवादी नेतृत्व का कहना है कि प्रदेष में भाजपा की बढ़त को बुद्धिदांव से रोका जा सकता है लेकिन यह तथाकथित समाजवादी वंषवादी विचारधारा का परिवार जिस प्रकार से राजनीति कर रहा है वह उनका बुद्धिदांव नहीं अपितु उनकी विचारधारा की राजनीति का अस्तांचल दांव चल रहा है।
अवकाषों की राजनीति जनता को छलने की राजनीति हैं। आज प्रदेष मंे महान मनीषियों व विभूतियों की कोई कमी नहीं हैं तथा साथ ही साथ हर दिन कोई न कोई महान संत ,नेता पैदा हुआ है तथा जिसने देष व प्रदेष को नई ऊचाईंयों तक पहंुचाया है उन सभी के लिए अवकाष की घोषणा कर देनी चाहिए। हमारे देष व प्रदेष में पहले से ही इतनी अधिक छुटिटयां हैं कि कोई काम ठीक से नहीं हो पाता। सरकारी कर्मचारी वेतन तो खूब लेना चाहते हैं लेेकिन बदले में जनता की सेवा नहीं करना चाहते। लगातार अवकाषों के चलते कार्यालयों में छोटी -छोटी फाइलें तक लटकी रहती हैं विकास कार्य लम्बित हो जाते हैं जिसके कारण परियोजनाओं की लागत भी बढ़ जाती है। भ्रष्टाचार व लालफीताषाही को बढ़ावा मिलता है। कर्मचारियों में आलस का भाव बढ़ता है तथा उनमें काम को टालने की प्रवृत्ति गहरा जाती है। सरकार अवकाष तो खूब बढ़ा रही है लेकिन काम के घंटे भी बढ़ा देती तो ज्यादा अच्छा होता। यह बात पूरी तरह से साफ है कि प्रदेष की समाजवादी सरकार अपने मिषन में लगातार फेल होती जा रही है। वह केवल और केवल खोखले दावे कर रही है। समाजवाद का ढोंग कर रही हैं। प्रदेष में अवकाष मजाक के पात्र बनते जा रहे हैं। वैसे तो हर दिन किसी न किसी रूप में पवित्र और पावन है वर्ष भर का अवकाष ही घोषित कर दिया जाये।