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आज का चिंतन बिखरे मोती

फूल की खुशबू बहत है, जिस दिश बहे समीर।

चरित्र की खुशबू चारों दिशाओं को सुरभित करती है:-
फूल की खुशबू बहत है,
जिस दिश बहे समीर।
रामचरित चहुँ दिश बहे,
सुलोचना भई अधीर॥1682॥

भावार्थ:- माना कि फूल अपने आसपास के वातावरण को सौन्दर्य देते हैं, सुगन्धित करते हैं किन्तु इनकी सुगन्ध उस दिशा को बहती है जिस दिशा को वायु का वेग होता है जबकि ऊँचे चरित्र की सुगन्ध धरती और आकाश में चारों दिशाओं को सुरभित करती है, स्वर्ग में बैठे देवताओं को रोमांचित और आह् लादित करती है, जैसा कि रामायण में इसका उल्लेख मिलता है। रावण के पुत्र मेघनाद का वध जब लक्ष्मण ने युद्ध में कर दिया तो, रावण की पुत्रवधू रावण से आग्रह करने लगी कि, पिताजी मैं अपने पति का शव लेकर चित में समाहित होना चाहती हूं , अतः मेरी सुरक्षा के लिए कुछ सैनिक भेजे जाय ताकि मैं राम के शिविर से अपने पति का शव लेकर सुरक्षित लौट आऊँ। बेशक रावण राम का शत्रु था घोर विरोधी था किन्तु भगवान राम के ऊंचे चरित्र की खुशबू रावण जैसे राक्षस के हृदय में रच बस गई थी। इसलिए रावण ने अपनी पुत्रवधू सुलोचना को आश्वस्त करते हुए कहा, – “बेटी ! राम के शिविर में तुम नि:संकोच जाओ वो तुम्हारे पति का शव भी देंगे और सुरक्षा भी।” और यही हुआ भी। अतः ऊँचा चरित्र मनुष्य के यश की सौरभ को सब दिखाओं में फैलाता है।

प्रभु – कृपा कपड़ों से नहीं अपितु अन्तःकरण की पवित्रता से प्राप्त होती है:-

कपड़ों से कृपा नहीं,
ऊँचा राख चरित्र।
कृपा का भाजन बने,
अन्तःकरण पवित्र॥1683॥

भावार्थ:- यहाँ कृपा से अभिप्राय – प्रभु – कृपा से है, परमात्मा की सायुज्यता से है, शरणागति से है। परमपिता परमात्मा की कृपा प्राप्त करने के लिए कोई गेरूवे अथवा रेशमी चमकीले ज़रीदार सुन्दर वस्त्रों की आवश्यकता नहीं है अपितु उत्कृष्ट बेदाग चरित्र की आवश्यकता है, अन्तःकरण की पवित्रता की आवश्यकता है,जैसे कि रामचरितमानस में शबरी नामक भीलनी का उल्लेख मिलता है। वह धर्मज्ञ और पवित्र – हृदय की महिला थी। इसलिए उसे भगवान राम ने अपने स्नेह और आशीर्वाद से धन्य कर दिया था। अतः प्रभु – कृपा का पात्र वही व्यक्ति बनता है, जिसका अन्तः करण अर्थात् जिसके मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार पवित्र होते हैं। इसलिए प्रभु – प्राप्ति के लिए अन्तः करण का पवित्र होना नितान्त आवश्यक है।
क्रमशः

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