नारद और पूर्णिमा का रहस्य

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बहुत सारे साथियों को आज नारद जी को स्मरण करते हुए सुना है तथा उनके संदेश भी पढ़े हैं।ऐसा संदेश पढ़कर सुनकर मुझे ऐसी अनुभूति हो रही है कि मैं नारद जी के विषय में जो सत्य है उसका निरूपण करूं।

वास्तव में नारद कौन हैं? क्या कोई मनुष्य है या कोई ऋषि है अथवा कोई योगी है? अथवा नारद किसी की उपाधि है ?
वास्तव में प्राचीन काल से हमारे यहां भिन्न भिन्न प्रकार की उपाधि होती थी।
पुरातन काल में वैदिक रीति -नीति के अनुसार उपाधियां बुद्धिमानो के द्वारा प्रदान की जाती थी। नारद वह कहलाता है जो “मन मन्चती”अर्थात हमारा मन नारद है। अर्थात नारद नाम मन का है।
जब यह मन नाना प्रकार के विषयों को त्याग कर आत्मा के समीप हो जाता है तो यह मन उस नारायणस्वामी से अर्थात ईश्वर से अपना संबंध बना लेता है। उस समय नारायण महाराज कहते हैं कि ‘हे मन तू बड़ा उच्चंग है ,तेरी मनोहरता का कोई प्रमाण नहीं।
संसार को सुखी बनाने का एकमात्र आदेश है कि पूर्णिमा का व्रत धारण करें। अर्थात प्रत्येक व्रत को पूर्ण बनाने का आदेश है।
दूसरे शब्दों में कह रहे हैं कि किसी भी व्रत को अधूरा न छोड़ कर के उसको पूर्ण करना चाहिए । जैसे सत्य बोलना है, यह एक व्रत है। इस व्रत को जीवन में धारते हुए इसको पूर्ण बनाने का आदेश है। इसको पूर्णिमा का व्रत कहते हैं। पूर्णिमा के व्रत से तात्पर्य पूर्णमासी के व्रत से नहीं है। जिसको लोग साधारण अर्थों में ले लेते हैं ।लेकिन यहां इस संदर्भ में इसका विशेष अर्थ है।
मन रूपी नारद को स्थिर करना चाहिए । यदि स्थिर नहीं रहेगा स्थिर चित्त नहीं होगा तो वह पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाएगा। एवं उसकी स्थिति वानर की तरह हो जाएगी जैसे वानर ऐसा अंतचित होकर इधर-उधर घूमता रहता है।
“नारद प्रवे”अर्थात जो मन में या हृदय में किसी प्रकार का कपट न रहने दें, उसको नारद कहा जाता है। दूसरे अर्थों में जो अपने आपको इस संसार में रमण करा देता है, अपनी आभाओं को लोक लोकांतरों में प्राप्त करने वाला एवं ले जाने वाला होता है। अपनी इच्छाओं के संसार को त्याग देता है।
नारद एक उपाधि भी है जो आत्मसत वेता बंद करके अपनी स्थिति इस प्रकार बना लेता है जैसे मन बहुत दूर-दूर तक विचरण करने वाला होता है। इसी प्रकार अपनी प्रवृत्तियों को बना लेता है । तथा उसका आत्मा अब यहां विचरण कर रहा है कि कुछ समय हुआ कहीं दूसरी जगह विचरण करता होता है, जब इस प्रकार की आकृति जिस योगी की हो जाती है, उसको भी नारद नाम से पुकारा जाता है। जो योगी मन की गति पर नियंत्रण स्थापित कर लिया यत्र तत्र सर्वत्र की खबर रखने लगता है उसे नारद कहा जाता है।
नारद मन के अतिरिक्त परमात्मा को भी कहते हैं।परंतु हमारे यहां नारद नाम के ऋषि भी हुए हैं। कभी-कभी हम सुनते हैं कि नारद विष्णु लोक में भ्रमण करते हैं। नारद मृत्युलोक में भी रमण करते हैं। स्वर्ग में भी जाते हैं, तथा नारद नर्क में भी बने रहे हैं।
इन बातों से हमें क्या अर्थ लेना चाहिए।
जब मानव शांत विराजमान हैं और किसी बुद्धिमान की वार्ताएं स्वीकार कर रहा है उस समय मन विचारों में विद्यमान रहता है। जब उसके मन में स्वर्ग की कल्पना आती है तो वह स्वर्ग में पहुंच जाता है । जो विष्णु के राष्ट्र में रमण करना कहा जाता है।कभी-कभी यह मन नाना प्रकार के पापाचारों में रमण करता है तो इसी का नाम नरक है।
वस्तुतः नारद अपने जीवन में ज्ञान विज्ञान में इतना प्रगतिशील होता है कि वह अपनी आत्मा को आज सूर्यलोक में रमण करा रहा है, तो द्वितीय काल में चंद्रलोक में तथा अगले ही क्षण ध्रुव लोक में । ऐसे में जिसका आत्मा लोक लोकान्तर में भ्रमण करने वाला हो उसको नारद नाम की उपाधि प्रदान की जाती है।
नारद मुनि कौन है? मुनि नारद उसे कहते हैं जिसका आत्मा पवित्र हो। संसार में विचरण करने वाला और दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करता हो।
अब प्रश्न उठता है कि परमात्मा को नारद क्यों कहा? परमात्मा की तरह यह मन लोक लोकांतरों में जब व्याप्त हो जाता है और कोई भी स्थान ऐसा नहीं जहां परमात्मा न हो तो इस प्रकार देखें कि इस मन को जो प्रत्येक स्थान में पहुंच जाता है। नारद कहा जाता है और एक क्षण में करोड़ों योजन की बातों को अंतःकरण में विराजमान कर देता है,तो इस अंतः करण में अनेक चित्र खिंच आते हैं। ब्रह्मलोक की बस्ती हमारे समक्ष आ जाती है। इसीलिए नारद को ब्रह्मपुत्र भी कहते हैं।
किसी समस्या का समाधान न मिल रहा हो तो मन में तुरंत कुछ विचार आते हैं जिससे समस्या का समाधान निकल आता है, उस समय समझो जैसे नारद मुनि आ गए हो। वह केवल हमारा उस समय मन ही होता है जो उपाय दे रहा होता है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट होता है कि मन नारद है। परमात्मा नारद है ।एक योगी नारद है । नारद एक उपाधि है। हमें इनमें अंतर करना चाहिए।
आज हम कौन से नारद की बात कर रहे थे ? योगी नारद की या नारद जिनकी उपाधि थी उनकी, या परमात्मा की अथवा मन की,?
अपने इस प्रश्न का उत्तर हम पाठकों पर ही छोड़ते हैं।

देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र
ग्रेटर नोएडा

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