*कृषक हितैषी, कृषि में सहयोगी परिंदे*

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इमानदारी पक्षपात पूर्ण भाव से कृषि के विकास, किसानों के कल्याण के लिए कोई पुरस्कार दिया जाए तो ऐसे किसी पुरस्कार को पाने के प्रथम अधिकारी पक्षी ही होंगे। फल, सब्जी, दलहन तिलहन जैसी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटो को खाकर पक्षी सदियों से किसानों की अपूर्व अतुलनीय निशुल्क मदद करते आए हैं। फसलों में कीट नियंत्रण (पेस्ट कंट्रोल )के नाम पर जब जहरीले महंगे रसायन नहीं थे उनका छिड़काव फसलों पर नहीं होता तब भी फसलें होती थी क्योंकि जो कार्य आज जहरीले रसायनों से हो रहा है उस काम के लिए भगवान की प्राकृतिक व्यवस्था थी जिसके संचालक थे पक्षी। पक्षी कीटों को खाकर कीट नियंत्रण करते हैं। हम सब की चिर परिचित घरेलू चिड़िया गौरैया दिन भर में जब अपने चूजे को पालती वह 130 से अधिक कीटों को खा जाती है। उल्लू वर्ष भर में 1100 से अधिक खेतों में फसलों के लिए नुकसानदायक चूहों को खा जाता है। यही काम मैना और बगुला करते हैं बगुला तो परोपकार की सारी सीमाओं को लाघं कर खेतों से होते हुए पशुपालको के बाडे में आ जाता है पशुओं के शरीर पर चिपके रहने वाले बाह्य परजीवी कीट जू चिचडी पिस्सू आदि को चुन चुन कर खाता है जो पशुओं का खून चूसते रहते हैं पशुओं के लिए इससे बड़ी राहत हो ही नहीं सकती । इन कीटो के कारण अक्सर पालतू दुधारू पशु तनाव में रहते हैं…. दुग्ध उत्पादन क्षमता भी प्रभावित होती है क्योंकि दुग्ध देने वाला स्तनधारी जीवो में उनके रक्त से ही दूध का निर्माण होता है विज्ञान के मुताबिक 1 लीटर रक्त जब पशु की दुग्ध ग्रंथियों से होकर गुजरता है तब जाकर 1ml सार रूप अमृत तुल्य दुद्ध बनता है। बात कठफोडवा की करें तो महंगे फर्नीचर अलमारी लकड़ी के सबसे बड़े दुश्मन दीमक का नियंत्रण यह पक्षी बहुत बेहतरी से करता है। खेती में जहरीले रसायनों के प्रयोग के कारण कम होते जंगलों के कारण पक्षियों की आबादी में तेजी से गिरावट आई है भारत जैसे देश में जहां सर्वाधिक पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती थी यहा तो हालात बहुत चिंताजनक है। पक्षी जो पेस्ट कंट्रोल करते थे इंसानों ने जहरीले रसायनों के प्रयोग से उल्टा पक्षियों का कंट्रोल अर्थात बर्ड कंट्रोल कर दिया है। सनातन भारतीय वैदिक संस्कृति में पक्षियों के योगदान को मुक्त कंठ से सराहया गया है संसार के पुस्तकालय की सबसे प्राचीन पुस्तकों चारों वेदों में दूसरी पुस्तक यजुर्वेद के 24 अध्याय में 337 प्रकार के पशु पक्षियों का उल्लेख मिलता है उक्त अध्याय के प्रत्येक मंत्र में किसी ना किसी पक्षी से प्रेरणा उसके गुण धर्मों को जानना तथा पक्षियों के माध्यम से प्राकृतिक व्यवस्थाओं मौसम ऋतु चक्र आदि को समझने का निर्देश मिलता है इकोसिस्टम में पक्षियों के महत्व योगदान की महिमा का बोधक है यजुर्वेद का 24 वां अध्याय। 24 वे अध्याय का एक मंत्र इस प्रकार है।

वसन्ताय कपिञ्जलानालभते ग्रीष्माय कलविडंवर्षाभ्यिरीस्तिञ्छरदे वर्तिका हेमन्ताय ककराञ्छिशिराय विककरान् (यजुर्वेद 24 /20)

भावार्थ _पक्षियों को जानने वाले जनो को यह जाना चाहिए वसंत ऋतु कपिजल , ग्रीष्म ऋतु चिरोटा, वर्षा ऋतु तीतर, शरद ऋतु बत्तख हेमंत ऋतु विकर पक्षी के लिए अनुकूल सुखद होती है। दुनिया के किसी भी कथित धर्म ग्रंथ में पशु पक्षियों को लेकर कोई जानकारी नहीं है। यजुर्वेद का यह 24 वां अध्याय विद्वानों के बीच प्राणी शास्त्र(जूलॉजी) के नाम से विख्यात है अर्थात व्यवस्थित सुव्यवस्थित क्रमबद्ध जंतुओं के अध्ययन की नीव इसी अध्याय के आधार पर पड़ी है एक स्वर से दुनिया के विद्वान इसे स्वीकार करते हैं। वेदों को छोड़कर पशु पक्षियों पर अध्ययन के मामले में धर्म ग्रंथ तो छोड़िए पश्चिम में ज्ञान के पुनर्जागरण काल मैं चार्ल्स डार्विन से पहले पशु पक्षियों पर अनुसंधान की कोई विकसित अध्ययन की परिपाटी भी नहीं थी। वेद ज्ञान विज्ञान के भंडार है। हमने अपनी अज्ञानता से कृषि के मामले में पश्चिम के अंधानुकरण से जैव विविधता का सर्वनाश कर दिया है। आज अधिकांश चिर परिचित पक्षी खोजने पर भी दिखाई नहीं देते। पक्षियों की अच्छी संख्या व विविधता स्वस्थ पर्यावरण इकोसिस्टम की सूचक है। पक्षियों की घटती संख्या लुप्त होती प्रजातियां पर्यावरण के गंभीर तौर पर बीमार होने की सूचक है पक्षी पर्यावरण के जैव संकेतक (बायोइंडिकेटर) है ।पश्चिम अब जाग रहा है अमेरिका ऑस्ट्रेलिया के कृषि फार्म में बर्ड हाउस स्थापित किए जा रहे हैं प्राकृतिक कीट नियंत्रण के लिए वहां के हजारों एकड़ के किसान पक्षियों को आमंत्रित कर रहे हैं खेतों पर और हमारे यहां खेतों से पेड़ों को काटकर खेतों में कंप्यूटर मांझा चलाकर ड्रोन से जहरीले रसायन पेस्ट कंट्रोल का स्प्रे कर प्रगतिशील किसान का तमगा हासिल किया जा रहा है । छोटा किसान बड़े किसान की होड़ में मर रहा है उसके लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है। जब-जब वेद की आज्ञा और शिक्षाओं का उल्लंघन अतिक्रमण किया जाएगा तब तक मनुष्य घाटा उठाएगा चाहे किसान हो या राजा सेवक हो या कर्मचारी व्यापारी हो या विद्यार्थी। जैव विविधता के संरक्षण मे ही हम सबका हित निहित है जितनी जल्दी यह बात हमारी समझ में आ जाए उतना हमारे व हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभदायक है।

आर्य सागर खारी ✍✍✍

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