पूरे दिन स्वयं को जलाकर उच्चतम तपिश को झेलने के पश्चात अपने प्रकाश को पृथ्वी के भूभाग पर फैलाने के बाद और अंधेरे को दूर भगा कर अपनी यात्रा के अवसान पर सूर्य देव के मन में एक प्रश्न उठ रहा था, बार बार उसको परेशान और उद्वेलित कर रहा था प्रश्न कि मेरे अस्त हो जाने के पश्चात पृथ्वी के इस भूभाग पर कौन अंधकार को दूर करेगा ?
जब उसने यह प्रश्न किया तो सभी मौन हो गये।लेकिन एक छोटे से दीपक ने बहुत ही दृढ़ता से संकल्पबद्ध होते हुए सूर्य से कहा कि मैं अपनी पूर्ण क्षमता के साथ अंधकार से लडूंगा,और जहां तक भी संभव हो सकेगा मैं प्रकाश को फैलाऊंगा।
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ऐसा ही यदि प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश को फैलाने का प्रयास करें, और एक दूसरे के लिए दीपक का काम करें, प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे के अंतरतम में बसे अंधकार रूपी अज्ञान को दूर करके सत्य को प्रस्तुत करते हुए सत्य के मार्ग पर चलने के लिए सम्प्रेरित करे, उस दिन मनुष्य मात्र का ही नहीं बल्कि इस धरा का, सृष्टि का कल्याण संभव है।
वेद कहता है :–
असूर्या नाम ते लोका अंधेन तमसावृता:।
तांस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जना:।।
(यजु. अ. 40)
अर्थात जो लोग आत्मा के विरूद्घ कार्य करते हैं, वे अज्ञान रोग शोक युक्त अंधकार के मार्ग पर चल रहे हैं। ऐसे लोगों का मृत्यु के पश्चात पुनरागमन चलता ही रहेगा। वे जीवन-मरण के दो पाटों के बीच पिसते ही रहेंगे। यह क्रम तब तक चलेगा जब तक कि मुक्ति नही हो जाती। इस प्रकार मृत्यु भी एक भयंकर रोग है, जिससे मुक्ति पाना जीव का और मनुष्य मात्र का जीवनोद्देश्य है। इस प्रकार मुक्ति की प्राप्ति का अर्थ है-सभी प्रकार के रोग व शोक से मुक्त हो जाना, छूट जाना। वेद का यह मंत्र स्पष्ट कर रहा है कि अज्ञान अंधकार के मार्ग पर जाने वाले लोग जिधर जा रहे हैं उधर अंधकार ही अंधकार है। उस अंधकार को अपने सामने गहराता देखकर ही व्यक्ति का आत्मा कह उठता है :—
असतो मा सदगमय
तमसो मा ज्योर्तिगमय।
मृत्योर्माम्अमृतंगमय।। (उपनिषद)
आत्मा की खोज ईश्वर के लिए रहती है। इसलिए वह अज्ञानांधकार में भटक रहे प्राणी को सचेत करते हुए अपने प्रियतम से मिलने के लिए झकझोरती है और कहती है कि यदि प्रत्येक प्रकार के रोगशोक से मुक्त होना चाहता है तो गतानुगतिकमार्ग को छोडक़र अपने वास्तविक जीवन ध्येय को पहचान, अपने वास्तविक मार्ग का अनुकरण कर और असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरत्व की ओर चल। इसी से तेरे जीवन को रोग-शोक से मुक्ति मिलेगी।
हमारे वैद्य लोग व्यक्ति को पूर्ण स्वस्थ रखने के लिए उसे भी उसी मार्ग का पथिक बनाया करते थे जो उसके शरीर की आरोग्य साधना को पूर्ण कराने वाला होता था। किसी भी कारण से व्यक्ति की जीवन गाड़ी यदि पटरी से उतर जाती थी तो वैद्य लोग उसे सहारा देकर फिर उसी पटरी पर डाल देते थे और वह फिर गाने लगता था :—
‘‘ओ३म् असतो मा सद्गमय…..।।’
हमारे ऋषि-मुनि आरोग्यता की प्राप्ति के लिए नदियों के संगम पर जाते थे, नदियों के तटों पर जाते थे और वहां बैठकर साधना किया करते थे। इलाहाबाद संगम के प्रति लोगों की आस्था यूं ही नहीं बन गयी थी, इसके भी कारण थे। नदियां हमारी मुक्ति में सहायता करती थीं। हमने गलती केवल यह की कि ऋषियों के कहे का सही अर्थ भुला दिया।
जीवन में हम अनेक व्रत करते हैं ,परंतु अनेक व्रत करने के पश्चात कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। आज से एक ही व्रत ले लीजिए कि हम अंधकार को दूर करके ज्ञान रूपी प्रकाश का प्रचार प्रसार करेंगे।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन उगता भारत समाचार पत्र
ग्रेटर नोएडा