दहेज का दानव और सूचना तकनीक*
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21वीं सदी सूचना तकनीक की सदी है। वैश्विक व्यवस्था में सूचना तकनीक के बल पर शिक्षा व्यापार अर्थव्यवस्था मे धरातलीय सकारात्मक परिवर्तन आए हैं। चाहे सर्विस सेक्टर हो या मैन्युफैक्चरिंग कृषि क्षेत्र सूचना तकनीक की धमक प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई देती है। आज के युग मे आप चाहे किसी भी देश के नागरिक हो एक करदाता या किसी उत्पाद के उपभोक्ता को लेकर आपकी पसंद नापसंद आपकी राजनीतिक धार्मिक पंथीय विचारधारा का बोध कॉर्पोरेट सेक्टर, सोशल मीडिया नेटवर्क हाउस व समुचित केंद्र व राज्य सरकारो के पास उपलब्ध है। आपकी राजनीतिक सामाजिक आर्थिक विषयों की समझ विभिन्न मुद्दों पर आपकी राय भी आज व्यक्तिगत गोपनीय ना होकर सोशल मीडिया नेटवर्क आदि के माध्यम से फेसबुक ट्विटर जैसी अभिव्यक्ति के ग्लोबल प्लेटफॉर्म से वैश्विक तौर पर सार्वजनिक है। एक बैंक चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी आपके वित्तीय लेनदेन वित्तीय चरित्र समय पर लोन ईएमआई चुकाने की अनुशासित आदतों की जानकारी रखता है *सिबिल* जैसी रेटिंग /स्कोर के माध्यम से। सिबिल भारत की प्राइवेट क्रेडिट इनफॉरमेशन लिमिटेड कंपनी है। जिसका मुख्यालय के *आर्थिक राजधानी मुंबई* में है। यह कंपनी भारत के करोड़ों बैंक खाता धारको के बैंकिंग लेनदेन में उसके द्वारा बरती गयी इमानदारी नियमितता अनुशासन बेईमानी अनियमितता का आंकड़ा एकत्रित रखती है। मोटी भाषा में कहीं तो आप व्यापारिक तौर पर कितने इमानदार बेईमान है एक कर्जदार की तौर पर आपकी साख कैसी है ?यह सभी आंकड़े इस निजि कंपनी के पास है। वर्तमान में भारत के करोडो नागरिकों का आंकड़ा सिबिल (क्रेडिट इनफार्मेशन ब्यूरो इंडिया लिमिटेड) कंपनी के पास है । इतना ही नहीं संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों में फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन जैसी अनुसंधान जांच एजेंसियां प्रत्येक नागरिक का आपराधिक सामाजिक रिकॉर्ड रखती हैं इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों के रूप में इस सारी व्यवस्था में भी सूचना तकनीक का जबरदस्त प्रयोग सर्व सिद्ध है । अंतरराष्ट्रीय अपराधियों को लेकर इंटरपोल भी ठीक ऐसे ही व्यवस्था है इन सब व्यवस्थाओं के मूल में सूचना तकनीक की उपयोगिता से कोई इनकार नहीं कर सकता बगैर सूचना तकनीकी यह संभव नहीं हो सकता।अपने भारतवर्ष में आधार कार्ड प्रणाली उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो फिलहाल अभी अपने शुरुआती दौर में है ।अब लेख के मूल विषय पर लौटते हैं। दहेज जैसी कुप्रथा आज भारतवर्ष में आज विकराल रूप धारण कर चुकी है भारत के उत्तर दक्षिण उत्तर पूर्वी राज्य सभी में मोटे पैमाने पर शादियों में दहेज की एवज में नगद धनराशि महंगे आभूषण लग्जरी गाड़ियां आदि आदि का लेनदेन होता है। भारत में जब महिलाओं के विरुद्ध अपराध अर्थात क्राइम अगेंस्ट वूमन की बात होती है तो उसमें सबसे बड़ा कारण दहेज ही होता है प्रत्येक वर्ष 10,000 से अधिक आईपीसी 304 B डोरी डेथ के मामले राष्ट्रीय शर्म के तौर पर प्रकाश में आते हैं अर्थात बेटियों को दहेज के लिए मार दिया जाता है फर्क सिर्फ इतना होता है कहीं बेटियों को जलाकर मारा जाता है तो कहीं मार कर फांसी पर टांग दिया जाता है मामले को आत्महत्या का रूप दे दिया जाता है । दहेज प्रताड़ना 498A के तो लाखों मामले अनेक राज्यों के संबंधित थानों में दर्ज होते हैं मासिक वार्षिक स्तर पर। समस्या यह है दहेज मांगने वाले लोभी वर पक्ष के व्यक्तियों संबंधियों की पहचान समाज में गोपनीय तौर पर सार्वजनिक नहीं हो पाती। जब बैंक किसी बेईमान को कर्ज नहीं देता, लो एण्ड ऑर्डर की दृष्टि से सरकार जब किसी आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति को निरुद्ध कर सकती है तो दहेज लोभीयो से प्रत्येक बेटी व उसके संबंधियों को जागरूक सुरक्षित रहने का सामाजिक अधिकार है। किसी भी जानकारी के आम तौर पर सार्वजनिक होने गोपनीय तौर पर सार्वजनिक होने में जमीन आसमान का अंतर है ।दहेज के दानव के विरुद्ध साइबर टूल्स इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक महत्वपूर्ण हथियार साबित हो सकता है ।बस थोड़ी सी समझ सूझबूझ साहस की आवश्यकता है। उदाहरण के तौर पर किसी विश्वविद्यालय में एक गोपनीय विभाग होता है जिसे कॉन्फिडेंसअल डिपार्टमेंट करते हैं जहाँ चेक्ड व अनचेक्ड उत्तर पुस्तिका अन्य शैक्षणिक दस्तावेज गोपनीय तौर पर सुरक्षित रहते है। कोई भी हित धारक व्यक्ति उनका निर्धारित प्रक्रिया का पालन कर निरीक्षण कर सकता है। ठीक ऐसे ही विभिन्न राज्य व केंद्र सरकारों के विभागों में गोपनीय विभाग होता है जहां विभाग के कर्मचारियों अधिकारियों की जानकारी गोपनीय तौर पर सुरक्षित रहती हैं डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से विभागीय वेबसाइट पर मसलन किसी अधिकारी कर्मचारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार अनुशासनहीनता की शिकायतें उनका निपटारा आदि आदि। ठीक ऐसे ही सामाजिक व्यवस्था में *मेट्रोमोनियल वेबसाइट* की तरह किसी भी परिवार की दहेज की पसंद व नापसंद को लेकर डेटा कॉन्फिडेंसअल वेबसाइट पर उपलब्ध होना चाहिए अर्थात एंटी डोरी कॉन्फिडेंसअल इंटरनेट प्लेटफार्म बनना चाहिए । संबंधित परिवार चाहे लडके के संबंधी,या स्वयं लडका हो सभी जो दहेज की मांग करते हैं विवाह पुर्व ,उनके विरुद्ध गोपनीय रेटिंग लड़की पक्ष जिससे सहित की मांग की गई है तथा समाज के किसी भी व्यक्ति संगठन द्वारा ऐसे पोर्टल पर अपलोड कर दी जानी चाहिए अर्थात समाज हित मे यह जानकारी गोपनीय तरीके से उपलब्ध हो कथित परिवार कितना लालची है इस एंटी डोरी आईटी सिस्टम कि व्यवहारिकता के लिए यह जरूरी है रेटिंग की क्रेडिबिलिटी आरोपों की सत्यता के लिए भी एक चेक एंड बैलेंस सिस्टम होना चाहिए अर्थात काउंटर एग्जामिनेशन हो इसके लिए भी बेहतर व्यवस्था बन सकती है क्योंकि संसार में कोई ऐसी समस्या नहीं जिसका समाधान ना हो ,कोई ऐसी ताला नहीं जिसकी चाबी ना हो। उपरोक्त वर्णित एंटी डोरी साइबर सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका सुप्रीम ऑब्जर्वर सोशल मामलों की जानकार व आईटी एक्सपर्ट की संयुक्त टीम हो जो दहेज की मांग करने वाले परिवारों व्यक्तियों उनसे संबंधित आंकड़ों उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की सत्यता की पुष्टि करें फिर सोशल ऑडिट के आधार पर फाइनल डेटा को अपलोड करें तथा उसे कंफर्म करें फिर एंटी डोरी रेटिंग जारी करें। समस्या सामाजिक है तो इसके लिए दहेज के विरुद्ध गठित सामाजिक संगठन महत्वपूर्ण भूमिका इस व्यवस्था में निभा सकते हैं। दिल्ली एनसीआर के मामले में दहेज को लेकर पिछले 2 वर्षों से *दहेज एक अभिशाप निवारण संगठन* बहुत ही सराहनीय धरातलीय कार्य कर रहा है जो दहेज मुक्त शादी करने वाले परिवारों को घर-घर जाकर व सार्वजनिक तौर पर सम्मानित कर रहा है। विगत 15 मई 2022 को ग्रेटर नोएडा के गुर्जर संस्कृति शोध संस्थान में बहुत ही ऐतिहासिक सांस्कृतिक सफल सार्थक कार्यक्रम का आयोजन उक्त संगठन द्वारा किया गया जिसमें सैकड़ों आदर्श परिवारों का उत्साहवर्धन किया गया । ऐसे संगठन ही सूचना तकनीक के माध्यम से भी दहेज के विरुद्ध लड़ाई में क्रांतिकारी बढ़त हासिल कर सकते हैं। ऐसा होने से अभूतपूर्व क्रांतिकारी बदलाव समाज में आएंगे। दहेज की कुप्रथा पर सोशल सेंसरसिप स्वतः लागू हो जाएंगी वगैरा-वगैरा।
*आर्य सागर खारी*✍✍✍
(लेखक सूचना का अधिकार कार्यकर्ता है व पर्यावरण व सामाजिक मुद्दों पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखक के लेख प्रकाशित होते रहते हैं)