!!ओ३म्!!
*लेखक:- डॉ. सोमदेव शास्त्री(मुम्बई)*
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आर्य समाज के नियमों का पाठ करते हुए आर्य जन अपने साप्ताहिक सत्संग में कहते हैं कि अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए। ईश्वर और धर्म के नाम पर प्रचलित सभी प्रकार के पाखंडों का पुरजोर खंडन आर्य समाज करता रहा है। चाहे वह पाखंडवाद,अंधविश्वास हिंदू का हो या जैन, बौद्ध ईसाई या मुसलमान का हो। सभी का खंडन आर्य समाज द्वारा किया जाता है। इसके लिए आर्य समाज में अनेक शास्त्रार्थ किए और खंडन विषयक पुस्तकें लिखी। पंडित लेखराम, स्वामी श्रद्धानंद, महाशय राजपाल आदि ने बलिदान दिया। किंतु पाखंड खंडन से पीछे नहीं हटे। अर्थ के लालची,लोभी एवं स्वार्थी व्यक्ति पाखंड समर्थन ही नहीं कर रहे अपितु निर्लज्ज होकर पाखंड करने का दुस्साहस भी कर रहे हैं और आर्य समाज के सदस्य एवं पदाधिकारी , प्रतिनिधि सभाएं एवं सार्वदेशिक सभा कुंभकरण की निद्रा में सो रहे हैं, तो पाखंड से कौन बचाएगा यह एक यक्ष प्रश्न है। आर्य समाज रूपी चौकीदार ही सो जाएगा तो मानव जाति को कौन बचाएगा। महर्षि दयानंद ने मूर्ति पूजा के विषय में सत्यार्थ प्रकाश के 11 में समुल्लास में लिखा है कि *”मूर्तिपूजा सीढी नहीं किंतु एक बड़ी खाई है”* जिसमें गिरकर मनुष्य चकनाचूर हो जाता है। मूर्ति पूजा से होने वाली 16 हानियों का वर्णन इस समुल्लास में किया है। जीवन भर अनेक प्रलोभनों को ठुकराते हुए ऋषि दयानंद मूर्ति पूजा का खंडन करते रहे। आर्य समाज में जिन विद्वानों ने थोड़ा भी समर्थन मूर्ति पूजा का या वेद विरुद्ध मान्यताओं का किया उनको आर्य समाज से बहिष्कृत कर दिया। चाहे पंडित भीमसेन शर्मा हों या पंडित अखिलानंद हों। आर्य समाज चौक मथुरा उत्तर प्रदेश के प्रधान श्रीराम शर्मा को भी निकाल दिया। वेद में लौकिक इतिहास मानने वाले पदानुक्रम कोष के संपादक विश्वबंधु शास्त्री हो, श्रीमद दयानंद प्रकाश के लेखक स्वामी सत्यानंद जी को भी आर्य समाज से निकाल दिया था। आज गुरुकुल कालवा जिला जींद हरियाणा का स्नातक आचार्य बलदेव जी का शिष्य आचार्य अखिलेश्वर शिवरात्रि के दिन जिस दिन को आर्य जगत बौद्ध दिवस मनाता है। शिवलिंग की पूजा करता दूध चढ़ाता वस्त्रं समर्पयामि आदि कहकर मूर्ति पर वस्त्र आदि चढ़ाता है। यह सब करते हुए वीडियो मोबाइल पर चल रही है। किसी ने ध्यान नहीं दिया। धन्य हैं स्वामी आदित्यवेश जी को जिन्होंने इसके विरुद्ध आवाज उठाई। गुरुकुल कालवा के सब स्नातक सो रहे हैं। अखिलेश्वर जी ने अपने गुरुकुल और आचार्य बलदेव जी का इस कृत्य द्वारा अपमान किया है। आर्य समाज को कलंकित किया है। यह एक निंदनीय अपराध है। आर्य विद्वानों, संन्यासियों तथा उपदेशकों द्वारा इस जघन्य कृत्य की घोर निंदा होनी चाहिए। इस व्यक्ति को आर्य समाज से बहिष्कृत करना चाहिए। सिद्धांत हीन आर्य समाज के पदाधिकारियों के कारण आर्य समाज में मूर्ति पूजा, मृतक श्राद्ध द्वादशाह-शुभ मुहूर्त राशिफल आदि अनेक पाखंड पनप रहे हैं। स्वाध्यायशील जागरूक आर्य सज्जनों! देव दयानंद के आर्य समाज को पाखंडियों से बचा लो। यही निवेदन है। किसी की निंदा या गुणगान करना लेख का प्रयोजन नहीं है।