‘मोदीमय’ एक वर्ष और मोदी का लक्ष्य
‘मोदीराज’ का एक वर्ष पूर्ण हो रहा है। देश ने सही एक वर्ष पूर्व ऐतिहासिक निर्णय देकर नरेन्द्र मोदी को अपना नेता चुना था। सचमुच यह वह काल था जब देश चारों ओर से नेतृत्वविहीनता की स्थिति से जूझ रहा था। देश के भीतर की स्थिति हो या देश के बाहर की, आर्थिक मोर्चा हो या सैनिक मोर्चा हो हम सभी स्थलों पर नेतृत्वविहीन थे। भारत तो था पर भारत का आत्मबल अपने न्यूनतम स्तर पर था। लोगों के लिए यह चुनौती थी कि वह किसे अपना नेता बनायें? लोगों को ‘56 इंच चौड़ी छाती’ के नेता की आवश्यकता थी। नेताओं की भीड़ भी पर्याप्त थी, लोग फीता लेकर अपने हाथों से नेताओं की छाती माप रहे थे, कि किसे अपना नेता बनायें? अंत में यह खोजी अभियान पूर्ण हुआ और लोगों ने मोदी को देश की कमान दे दी।
मोदी देश के दिशानायक बने। देश का जहाज चल दिया अपने गंतव्य की ओर। हर नये चालक के समक्ष सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारण करना आवश्यक होता है कि उसे जाना कहां है? मोदी का लक्ष्य भव्य भारत का निर्माण था, विश्वगुरू भारत का सपना उनकी आंखों में तैर रहा था। इसलिए मोदी ने भारत की दिशा तय कर दी, लक्ष्य घोषित कर दिया-भारत को हर क्षेत्र में सम्मान दिलाकर उसके लिए विश्वगुरू का पद प्राप्त करना। इसमें मोदी को कुछ भी मिलने वाला नही था-पर जो कुछ भी मिलेगा उस पर मोदी का अधिकार सबसे पहले और सबसे अधिक रहने वाला था।
अपने लक्ष्य निर्धारण के पश्चात मोदी ने सबसे अच्छी पहल यह की कि उन्होंने भारत का मनोबल ऊंचा करना आरंभ किया, क्योंकि बिना ऊंचे मनोबल के कोई भी लक्ष्य प्राप्त नही किया जा सकता। उन्होंने एक वर्ष में विश्व की नामचीन हस्तियों, राष्ट्रध्यक्षों और शासनाध्यक्षों से आंख में आंख डालकर बात कीं, सारा भारत उत्साहित हो उठा। उसका मनोबल ऊंचा होने लगा। मोदी ने अरूणांचल प्रदेश से लगती चीन की सीमा पर जाकर वहां खड़े अपने सैनिक से पूछा-‘‘जवान क्या चाहते हो?’’ सचमुच अब से पूर्व किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी पहल नही की थी। एक सैनिक ने अपने सामने खड़े अपने नेता को देखा तो गदगद हो गया, जो उसने मांगा, मोदी ने उसे वही दिया। फलस्वरूप आज हमारा जवान चीन की सेना के सामने ‘56 इंची सीना चौड़ा’ करके खड़ा होता है। जनता को लगा कि उसका निर्णय सही था तभी तो हमारे नेता ने जो माप हमारे देश की जनता ने चाही थी उसी माप का सीना हमारे जवानों का कर दिया। पाकिस्तान की ओर पी.एम. गये तो सैनिकों को समझा दिया गया कि घबराने की आवश्यकता नही है, सारा देश तुम्हारे पीछे खड़ा है। शत्रु को सबक देना सीखिए, शत्रु से सबक लेना छोडिय़े। एक वर्ष में ही हम देख रहे हैं कि देश की सीमाएं पहली बार सबसे अधिक सुरक्षित हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की आवाज को अब पहले से अधिक कान लगाकर ध्यानपूर्वक सुना जा रहा है। लोग मोदी को और मोदी के भाषण को सुनना चाहते हैं। मोदी भाषण पढ़ते नही हैं, अपितु भाषण देते हैं, जिनमें उनकी मौलिकता होती है, अपने हृदय के भाव होते हैं। हृदय से निकले भाव दूसरे के हृदय के भावों को झकझोरते हैं और लोगों को मोदी में कोई जादू दीखने लगता है। आर्थिक मोर्चे पर हम देख रहे थे कि पिछले 12 तिमाही से जीडीपी में निरंतर गिरावट महंगाई निरंतर बढ़ती ही जा रही थी, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र ‘व्यर्थ शास्त्र’ सिद्घ हो रहा था और उनके शासन के अंतिम दो वर्षों में सकल पूंजी निर्माण में गिरावट दर्ज की जा रही थी। जो गिरते गिरते 30 प्रतिशत तक आ गयी थी। मोदी का सार्थक अर्थशास्त्र अपना प्रभाव दिखा रहा है और पिछले 12 माह में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की सार्थक पहल हुई है। मंत्री और हमारे अधिकारी अपनी फिजूल खर्ची के कारण देश के लिए भारी बोझ बन चुके थे। मोदी ने दर्द के मर्म को समझा और सही स्थान से उपचार आरंभ किया। आज देश के नेता और अधिकारी फिजूलखर्ची पर रोक लगाने के लिए जाने जा रहे हैं। हम एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनते जा रहे हैं। कारोबार की स्थिति अच्छी बनी है और देश में पूंजीनिवेश के लिए विदेशी लोगों का भी मन बना है।
अब हिंदी की बात करते हैं। हिंदी देश की राष्ट्रभाषा है, परंतु हिंदी को जो सम्मान मिलना चाहिए था वह आज तक नही मिल पाया है। मुझे पर्यटन मंत्रालय में नियुक्त एक महिला अधिकारी ने बताया कि हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए मोदी सरकार ने अनूठी पहल की है। अब लोगों को हिंदी में काम करने के लिए पुरस्कार दिये जाते हैं। उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए हिंदी की उपयोगिता बतायी जाती है। जिससे लोग उत्साहित हो रहे हैं और अपनी भाषा के प्रति लोगों में प्रेम झलक रहा है। वैसे मोदी स्वयं भी हिंदी में धाराप्रवाह भाषण देते हैं, जिसका प्रभाव लोगों पर पड़ रहा है। इतना ही नही विदेशों में भी लोगों का हिंदी के प्रति लगाव बढ़ रहा है। जिस देश का पी.एम. हिंदी अर्थात अपनी राष्ट्रीय भाषा में बात करेगा उससे विदेशों में मिलने वाले लोग भी हिन्दी के प्रति प्रेम प्रदर्शन करने को अपने लिए अच्छा मानते हैं। मोदी ने हिंदी को लेकर कोई राजनीति नही की है, वह देश की राष्ट्रभाषा को उसका सम्मान जनक स्थान दिलाने के लिए वह कृतसंकल्प है। मोदी ने गंगा व गाय के लिए भी कुछ करना चाहा है। पहले से अधिक इस ओर ध्यान दिया गया है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर वह हर प्रधानमंत्री से अधिक गंभीर सिद्घ हो रहे हैं। उनके संस्कारों में गंगा के प्रति श्रद्घा है। वह गंगा को ‘मां गंगा’ के रूप में सम्मान देते हैं। इसलिए गंगा स्वच्छता अभियान एक यथार्थ बनता जा रहा है। इसी प्रकार गौरक्षा के लिए भी ठोस कार्य योजना को स्वरूप दिया जा रहा है। कई राज्यों ने पहली बार गौहत्या को अपने यहां पूर्णत: प्रतिबंधित किया है।
मोदी धारा 370 को हटाने, राममंदिर का निर्माण करने, समान नागरिक संहिता को लागू कराने पर मौन हंै। जिससे उनके आलोचकों की संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने अपनी जीत को विकास की जीत कहा, यह बात लोगों को पची नही। क्योंकि वह ‘हिंदुत्व’ के नाम पर जीत कर आये थे। जिस उत्तर प्रदेश में सपा सरकार के कार्यकाल में 100 से अधिक साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हों, वहां लोगों ने मोदी को 80 में से 73 सीटें इसलिए दीं कि वह दंगों पर अंकुश लगा देंगे और लोग शांति पूर्ण जीवन यापन कर सकेंगे। मोदी के आने के बाद देश का साम्प्रदायिक माहौल सुधरा भी है। सैकड़ों साम्प्रदायिक दंगे के दोषी उनके विरोधी भी यह देखकर दंग हैं कि ‘गोधरा का दोषी मोदी’ कोई और गोधरा नही होने दे रहा है तो आखिर इसका रहस्य क्या है?
हिन्दुत्व के नाम पर मोदी की मंशा साफ है, कि यह केवल एक जीवन शैली है, जो हमारे भीतर राष्ट्रवाद के और मानवतावाद के संस्कारों को प्रबल करता है। जिससे हम ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना केे आधार पर ‘एक विश्व परिवार’ बनाने में सफल हो सकते हैं। पर वह हिंदुत्व पर बोलते नही हैं। हां, उनके कुछ लोग अवश्य बोलते हैं, पर वह जो कुछ बोलते हैं, उससे देश में हिन्दुत्व को एक ‘प्रतिगामी संस्कार’ बनाने में सहायता मिल रही है। जबकि हिंदुत्व एक ‘प्रतिगामी संस्कार’ नही है। वह यह नही सिखाता कि ‘वे’ दस बच्चे पैदा कर रहे हैं तो तुम भी ऐसा ही करो। इसके विपरीत हिंदुत्व बताता है कि यदि देश की वर्तमान परिस्थितियां ‘हम दो और हमारे दो, की है तो वे भी, और हम भी दो बच्चे ही पैदा करेंगे। इसके लिए कानून बने और देश को गरीबी की ओर धकेलने वाली गतिविधियों पर रोक लगे। हिन्दुत्व कहता है कि समान नागरिक संहिता लागू करो। उल्टे सीधे बयान देकर देश की फिजाओं को विषैला मत बनाओ।
अंत में शास्त्री जी के जीवन की एक घटना सुनाकर बात समाप्त करता हूं। शास्त्री जी को एक विशेष सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन जाना था। उनके पास केवल दो ही कोट थे। उनका एक कोट फट गया था। उनके सचिव ने नया कोट सिलवाने का आग्रह उनसे किया। सचिव नये कोट के लिए कपड़ा भी ले आये। दर्जी आ गया। पर शास्त्रीजी ने उस दर्जी से कहा कि मैं अभी नया कोट नही सिलवाऊंगा, तुम पुराने कोट के कपड़े को ही पलट दो। अगर ठीक नही लगा तो दूसरा नया कोट सिलवाऊंगा। दर्जी ने कोट पलट दिया। शास्त्रीजी ने देखा कि कोट एक दम नया सा लग रहा था। तब उन्होंने कह दिया कि जब इसकी मरम्मत का हमें ही पता नही चल रहा है तो किसी अन्य को क्या चलेगा? शास्त्रीजी उसी कोट को पहनकर सम्मेलन में चले गये। आज मोदी के ‘कोट’ को लेकर भी आलोचना हुई है। हमारे पी.एम. शास्त्री भक्त हैं और एक ‘राजर्षि’ के रूप में लोग उनका सम्मान करते हैं, अच्छा होगा कि लोगों को उनकी सादगी पर पुन: उंगली उठाने का अवसर ना मिले।
मुख्य संपादक, उगता भारत