अरुण कुमार सिंह
दिल्ली के महरौली स्थित वह गुम्बदनुमा मकान, जो मनमोहन मलिक को 1947-48 में आवंटित किया गया था। अब वक्फ बोर्ड कह रहा है कि यह उसकी संपत्ति है। इस कारण मकान बंद पड़ा है
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका का निपटारा करते हुए कहा है कि बिना प्रमाण किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। कानूनविद् इस निर्णय को मील का पत्थर मान रहे हैं
नई दिल्ली के महरौली इलाके मेें रहने वाले मनमोहन मलिक वक्फ बोर्ड की बदमाशी का शिकार हैं। एक शरणार्थी के नाते सरकार ने उन्हें जो मकान 1947-48 में आवंटित किया था, उसमें उनके परिवार को रहने नहीं दिया जा रहा। इस कारण उन्हें किराए के मकान में रहना पड़ रहा है। सरकार ने उन्हें जो मकान आवंटित किया था, वह गुम्बदनुमा है और इसी आधार पर वक्फ बोर्ड उसे वक्फ संपत्ति बताता है। इस बात पर तीन बार मुकदमा हुआ और हर बार मनमोहन को जीत मिली। इसके बावजूद वक्फ बोर्ड मनमोहन को उस मकान का मालिक नहीं मानता और उन्हें उस मकान में कोई काम भी नहीं करने देता। 13/4 नंबर का यह मकान महारौली के वार्ड नंबर एक में है।
बता दें कि मनमोहन का परिवार 1947 में विभाजन के समय महरौली आया था। उन दिनों जितने भी लोग विभाजन की विभीषिका झेलते हुए दिल्ली या भारत के किसी भी हिस्से में पहुंच रहे थे, सरकार उन्हें बसाने के लिए कोई भी खाली भवन आवंटित कर देती थी। इसी दौरान उन्हें भी वह गुम्बदनुमा मकान आवंटित किया गया। लेकिन वक्फ बोर्ड सरकार के आवंटन को भी नहीं मान रहा। मनमोहन कहते हैं, ‘‘अब परिवार बढ़ गया है। इसलिए कई बार मकान को तोड़कर उसे बड़ा बनाना चाहा, लेकिन जैसे ही काम शुरू करते हैं सैकड़ों मुसलमान जमा होकर हंगामा करने लगते हैं कि यह वक्फ संपत्ति है, इस पर कुछ नहीं कर सकते।’’ उन्होंने यह भी कहा कि एक बार 1947 में उजड़ना पड़ा था और अब फिर से उजड़ने की स्थिति बन गई है।
इस देश में मनमोहन जैसे लोगों की संख्या लाखों में है। ये सब वक्फ बोर्ड की मनमानी और शैतानी चालों से त्रस्त हैं। ऐसे लोग न्याय की उम्मीद ही छोड़ चुके थे, क्योंकि ज्यादातर मामले वक्फ प्राधिकरण में चलते हैं और वहां वक्फ वालों की ही चलती है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय से ऐसे लोगों में न्याय की आस जगी है।
आज रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे अधिक संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास है। 2009 में वक्फ बोर्ड के पास 4,00,000 एकड़ की संपत्ति थी और 2020 में यह बढ़कर 8,00,000 एकड़ हो गई। देश में जमीन उतनी ही है, जितनी पहले थी। फिर वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है?
उल्लेखनीय है कि ‘वक्फ बोर्ड आफ राजस्थान बनाम जिंदल सॉ लिमिटेड अन्य’ से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि बिना प्रमाण किसी ढांचे को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ कानून 1995 की धारा 3 का ही सहारा लिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति तभी हो सकती है जब वह निम्न शर्तों को पूरा करती है- पहली शर्त, जिसकी संपत्ति है वह इसे वक्फ के रूप में यानी इस्लामिक इबादत के लिए सार्वजनिक तौर पर उपयोग करता हो/ करता था। दूसरी शर्त, वह संपत्ति वक्फ के रूप में उपयोग करने के लिए दान की गई हो। तीसरी शर्त, राज्य सरकार ने उस भूमि को किसी मजहबी कार्य के लिए दिया हो। चौथी शर्त, उस भूमि के मजहबी उपयोग के लिए भूस्वामी ने नियमावली बना कर दी हो। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि इसके अतिरिक्त कोई भी संपत्ति वक्फ की संपत्ति नहीं है। इसके साथ ही न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की खंडपीठ ने राजस्थान उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध दायर उस अपील को खारिज कर दिया, जिसके अंतर्गत ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ को खनन के लिए आवंटित भूखंड से एक ढांचे को हटाने की अनुमति दी गई थी।
कानूनविद् इसे दूरगामी असर वाला निर्णय बताते हैं। वक्फ बोर्ड से जुड़े अनेक विवादों की सर्वोच्च न्यायालय में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन कहते हैं, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय जमीन जिहाद पर कुछ हद तक अंकुश लगा सकता है। इससे उन संपत्तियों को लेकर आवाज उठ सकती है, जिन पर वक्फ बोर्ड ने जबरन कब्जा कर रखा है।’’
उल्लेखनीय है कि 8 दिसंबर, 2010 को ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ को खनन के लिए राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के ढेडवास गांव में एक भूखंड का पट्टा दिया गया था। उस भूखंड में एक चबूतरा और जर्जर दीवार भी है। जब कंपनी ने वहां काम शुरू किया तो राजस्थान वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह उसकी जमीन है। वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि 1963 में राजस्थान के सर्वेक्षण आयुक्त (वक्फ) ने एक सर्वेक्षण किया था और इसे ‘तिरंगा की कलंदरी मस्जिद’ के ढांचे के रूप में अधिसूचित किया था। वक्फ रजिस्टर के अनुसार मस्जिद का ढांचा 108 फीट मापा गया था। एक अन्य सर्वेक्षण वक्फ अधिनियम, 1995 के अनुसार किया गया था और 15 जनवरी, 2002 को उसकी रपट प्रस्तुत की गई थी। इसमें कथित मस्जिद को 525 फीट में बताया गया है। (दो सर्वेक्षण में एक कथित मस्जिद के क्षेत्रफल को अलग-अलग बताया गया, यह वक्फ बोर्ड के दावे को कमजोर साबित करने वाला सिद्ध हुआ।) इसी आधार पर राजस्थान वक्फ बोर्ड ने उस जगह पर दावा किया।
इसके बाद ‘जिंदल सॉ लिमिटेड’ ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। न्यायालय ने एक विशेषज्ञ समिति बनाकर कहा कि वह यह बताए कि वहां बना ढांचा मस्जिद है या नहीं। समिति ने 10 जनवरी, 2021 को अपनी रपट दी। उसने साफ लिखा कि वहां कोई मस्जिद थी ही नहीं। इसका कोई ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य भी नहीं है। इस आधार पर उच्च न्यायालय ने वक्फ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया। इसके बाद वक्फ बोर्ड सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, लेकिन वहां भी उसे हार मिली। अधिवक्ता प्रभात रंजन सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को बहुत बड़ा मानते हैं। वे कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड के लोग वक्फ बोर्ड की धारा 83 का भय दिखाकर लाखों एकड़ सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा कर चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद उनकी यह मनमानी बंद हो जाएगी।’’ बता दें कि वक्फ बोर्ड की धारा 83 के अंतर्गत कोई भी राज्य सरकार किसी विवाद पर विचार करने के लिए वक्फ प्राधिकरण का गठन करती है और उसमें 100 प्रतिशत लोग एक ही समुदाय से होते हैं। इस कारण ज्यादातर फैसले एकतरफा होते हैं। वक्फ बोर्ड इसका पूरा लाभ उठाता है और जमीन जिहाद करता रहता है। एक अन्य वकील अनुपम राज कहते हैं, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय भारत को इस्लामीकरण की ओर बढ़ने से रोक सकता है, बशर्ते लोग वक्फ संपत्ति से जुड़े मामलों को अदालत तक पहुंचाएं।’’
बढ़ती जा रही है संपत्ति
वक्फ बोर्ड की बढ़ती संपत्ति को लेकर देश में एक बहस चल रही है। यही नहीं, वक्फ बोर्ड की संपत्ति पर आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय भी टिप्पणी कर चुका है। एपी सज्जादा नसीन बनाम भारत सरकार के मामले में 2009 में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था, ‘‘देशभर में वक्फ की करीब 3,00,000 संपत्तियां दर्ज हैं, जो लगभग 4,00,000 एकड़ जमीन है। इस तरह वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और रक्षा विभाग के बाद सबसे अधिक जमीन है।’’
नई दिल्ली में कनॉट प्लेस स्थित मस्जिद, जो बिल्कुल सड़क पर है। इस तरह की मस्जिदों से ही वक्फ बोर्ड की संपत्ति बढ़ रही
आंकड़े बताते हैं कि 12-13 वर्ष में वक्फ बोर्ड ने तेजी से दूसरों की संपत्तियों पर कब्जा करके उसे वक्फ संपत्ति घोषित किया है। यही कारण है कि दिनोंदिन वक्फ की संपत्ति बढ़ रही है। ‘वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम आॅफ इंडिया’ के आंकड़ों के अनुसार जुलाई, 2020 तक कुल 6,59,877 संपत्तियां वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज हैं। ये संपत्तियां लगभग 8,00,000 एकड़ जमीन पर फैली हैं। अधिवक्ता हरिशंकर जैन कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून 1995 की धारा-5 में कहा गया है कि सर्वेक्षण कर सारी वक्फ संपत्ति की पहचान कर ली गई है। इसके बावजूद दिनोंदिन वक्फ संपत्ति बढ़ रही है। 2009 में वक्फ बोर्ड के पास 4,00,000 एकड़ संपत्ति थी और 2020 में यह बढ़कर 8,00,000 एकड़ हो गई। देश में जमीन उतनी ही है, जितनी पहले थी। फिर वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है?’’ इसका जवाब वे खुद ही देते हैं, ‘‘देश में जहां भी कब्रिस्तानों की चारदीवारी की गई, उसके आसपास की जमीन को उसमें शामिल कर लिया गया। इसी तरह अवैध मजारों और मस्जिदों को वैध करके वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बढ़ा ली है।’’
1945 में ही शुरू हुई मक्कारी
1945 में ही कुछ लोगों को लगने लगा था कि अब पाकिस्तान बन कर रहेगा। इसलिए उस समय के अधिकतर मुस्लिम नवाबों और जमींदारों ने अपनी संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए एक चाल चली। इसके तहत हर जमींदार और नवाब ने अपनी संपत्ति का वक्फ बना दिया और भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। बाद में तुष्टीकरण की राजनीति के कारण इस तरह की सारी संपत्ति वक्फ बोर्ड के पास चली गई। एक अनुमान के अनुसार इस तरह 6-8 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन वक्फ बोर्ड के पास गई है। बता दें कि भारत विभाजन के समय पाकिस्तान को 10,32,000 वर्ग किलोमीटर भूमि दी गई थी। यानी मुसलमानों ने पाकिस्तान देश के नाम पर भी जमीन ली और वक्फ के नाम पर भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया। यही नहीं, बाद में सरकारी और गैर-सरकारी जमीन पर भी मजार, मस्जिद और मदरसे बनाकर वक्फ की संपत्ति बढ़ाई गई। इसे षड्यंत्र नहीं तो और क्या कहेंगे? कानूनविद् संजय कुमार मिश्र का मानना है, ‘‘सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उन संपत्तियों की सचाई बाहर आएगी, जिन्हें एक षड्यंत्र के अंतर्गत 1947 से पहले वक्फ में बदल दिया गया था।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘1947 के बाद भी जिन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार बताता है, उसके कागज उसे दिखाने होंगे कि वह संपत्ति उसके पास आई कहां से? यदि वक्फ बोर्ड अपनी किसी संपत्ति का वैध कागज नहीं दिखाएगा तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार वह संपत्ति उसके मूल स्वामी को वापस दे दी जाएगी।’’
सेकुलरों से मिली ताकत
बता दें कि वक्फ कानून-1995 के कारण ही वक्फ बोर्ड बहुत ताकतवर बन चुका है। कोई मुसलमान कहीं भी अवैध मजार या मस्जिद बना लेता है और एक अर्जी वक्फ बोर्ड में लगा देता है। बाकी काम वक्फ बोर्ड करता है। यही कारण है कि पूरे भारत में अवैध मस्जिदों और मजारों का निर्माण बेरोकटोक हो रहा है। वक्फ बोर्ड की मनमानी को कई अदालतों में चुनौती देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दिग्विजयनाथ तिवारी कहते हैं, ‘‘वक्फ बोर्ड का काम सिर्फ जमीन पर कब्जा करने का रह गया है। यह बहुत ही खतरनाक है। वक्फ बोर्ड को मिले अधिकारों में कटौती करने की जरूरत है, नहीं तो इसका दुष्परिणाम गैर-मुसलमानों को भुगतना पड़ेगा।’’ दिग्विजयनाथ बताते हैं कि वक्फ बोर्ड द्वारा जमीन कब्जाने का षड्यंत्र 2013 के बाद तो और तेज हो गया है। बता दें कि 2013 में सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ बोर्ड को अपार शक्तियां दे दी थीं। सोनिया-मनमोहन सरकार ने वक्फ कानून-1995 में संशोधन कर उसे इतना घातक बना दिया कि वह किसी भी संपत्ति पर दावा करने लगा है। वक्फ कानून-1995 के अनुसार वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता है, चाहे वह अवैध ही क्यों न हो। भले ही इस कानून को संसद ने बनाया हो, पर विधि विशेषज्ञ इसे गलत मानते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. बलराम सिंह कहते हैं, ‘‘वक्फ कानून-1995 संविधान की मूल भावना के विपरीत है। ऐसा कानून संसद भी नहीं बना सकती। यदि बन जाए तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और मुझे पूरा विश्वास है कि न्यायालय उसे निरस्त कर देगा।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘अवैध तो अवैध ही रहेगा। उसे कोई वैध नहीं कर सकता है। जो विधि अवैध कार्य को वैध बनाए, वह कभी भी संवैधानिक नहीं हो सकती।’’
पाकिस्तान जाने से पहले मुस्लिम नवाबों और जमींदारों ने अपनी संपत्ति को वक्फ में बदल दिया। इस तरह 6-8 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन वक्फ बोर्ड के पास चली गई। फिर भारत विभाजन के समय पाकिस्तान को 10,32,000 वर्ग किलोमीटर भूमि दी गई। यानी मुसलमानों ने पाकिस्तान के नाम पर भी जमीन ली और वक्फ के नाम पर भी लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया।
यही कारण है कि वक्फ कानून-1995 के विरुद्ध आवाज उठने लगी है। मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका में वक्फ कानून-1995 के प्रावधानों को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये प्रावधान गैर-मुस्लिमों के साथ भेदभाव करते हैं। इसलिए इन प्रावधानों को खत्म कर देना चाहिए। समाजसेवी जितेंद्र सिंह और 5 अन्य लोगों ने यह याचिका दायर कर मांग की है कि न्यायालय यह घोषित करे कि संसद को वक्फ और वक्फ संपत्ति के लिए वक्फ कानून-1995 बनाने का अधिकार नहीं है। संसद सातवीं अनुसूची की तीसरी सूची के अनुच्छेद 10 और 28 से बाहर जाकर किसी न्यास, न्यास संपत्ति, मजहबी संस्था के लिए कोई कानून नहीं बना सकती। न्यायालय से मांग की गई है कि वह वक्फ कानून-1995 के अंतर्गत जारी कोई भी नियम, अधिसूचना, आदेश अथवा निर्देश हिंदू अथवा अन्य गैर-इस्लामी समुदायों की संपत्तियों पर लागू नहीं होगा, यह आदेश दे। याचिका के अनुसार वक्फ कानून में वक्फ की संपत्ति को विशेष दर्जा दिया गया है, जबकि न्यास, मठ तथा अखाड़े की संपत्तियों को वैसा दर्जा प्राप्त नहीं है। याचिका में वक्फ कानून-1995 की धारा 4, 5, 8, 9(1)(2)(ए), 28, 29, 36, 40, 52, 54, 55, 89, 90, 101 और 107 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। उम्मीद है कि इस याचिका का निपटारा जल्दी होगा।
खैर, यह तो वक्फ कानून की बात है, पर मनमोहन मलिक जैसे लाखों लोगों के साथ जो हो रहा है, उसे सुनकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कैसे, क्यों और कितना बड़ा है।
बहुत से लेख हमको ऐसे प्राप्त होते हैं जिनके लेखक का नाम परिचय लेख के साथ नहीं होता है, ऐसे लेखों को ब्यूरो के नाम से प्रकाशित किया जाता है। यदि आपका लेख हमारी वैबसाइट पर आपने नाम के बिना प्रकाशित किया गया है तो आप हमे लेख पर कमेंट के माध्यम से सूचित कर लेख में अपना नाम लिखवा सकते हैं।